सोयाबीन में लगने वाले प्रमुख कीट तथा उनका प्रबन्धन निम्नलिखित है –

 

तना मक्खी

यह छोटे आकार (2 मिमी.) की चमकदार काले रंग की होती है। इसके पैर, श्रृंगिकाए तथा पंखों की शिरायें हल्के भूरे रंग की होती है। इस कीट की इल्ली अवस्था ही हानिकारक होती है। नवविकसित मेगट पत्तियों के डठंलों से तने के अंदर घुसती है, और टेढी, मेढ़ी बनाती है। ग्रसित पौधों में प्रारंभ में पत्तियों की ऊपरी सतह भाग सूख जाता है। इसकी शंखी भी तने के अंदर ही बनती है अत: छिद्र का उपयोग मक्खी पौधे के बाहर निकलने में करती है। यह कीट सोयाबीन की संपूर्ण अवधि तक सक्रिय रहता है।

इसके नियंत्रण हेतु निम्न उपाय अपनाने चाहिए

● एक ही खेत में लगातार सोयाबीन की फसल न ले। फसल चक्र अपनाने से इस कीट की संख्या में प्रभावी रूप से कमी देखी जा सकती है।
● बुवाई के समय फोरेट 10% दानेदार दवा या कार्बोफ्यूरॉन 3% दानेदार दवा 1.5 किग्रा सक्रिय तत्व एक हैक्यटेर की दर से कूंड़ों में डालें।
● क्विनालफॉस 25 ई.सी.800 मिली.पानी में घोलकर प्रति हे. छिड़काव करें।
● कटाई के पश्चात फसल के शेष डठंलों को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए।

● जैविक नियंत्रण के लिय प्रेयिंग मेंटिड क्रायसोपर्ला कॉक्सीनेलीड बीटल को फसल में छोड़ देना चाहिये।
● सोयाबीन की उन किस्मों का चयन करना चाहिए जो जिसमे इन कीटों का प्रकोप कम हो।

गर्डल बीटल

इस कीट का वयस्क भृंग 7 से 10 मिमी. लंबा तथा मटमैले भूरे रंग का होता है। नर में इसके अग्र पंखों का आधा भाग गहरे हरे रंग का तथा एक तिहाई भाग मादा में होता है। इल्ली या ग्रब पीले रंग की 19-20 मिमी. लंबी होती है। ग्रब का शरीर उभरा हुआ होता है। यह कीट जून-जुलाई में सक्रिय अक्रमण करते हैं। इसके अण्डे पीले रंग के होते है जो दाने के आकार के होते है। अण्डे 3-4 दिन मेे फूटते हैं।

इस कीट के नियंत्रण हेतु –

● ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें, जिसमें भूमि में सुषुप्तावस्था में पड़ी इल्लियां भूमि की सतह पर आ जाये और धूप के कारण नष्ट हो जाये।

● फसल के अवशेष को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए।

● सहिष्णु किस्मों को उगाना चाहिए। जैसे- जेएस 93.05, जेएस 71.05, आदि
● खेत के चारों और ढेंचा, आदि की हरी फसल को लगाये जिससे गर्डल बीटल को अपनी ओर आकर्षित कर सोयाबीन फसलों में होने वाली हानि को कम करने में उपयोगी हो।
● लाईट ट्रेप का उपयोग करना चाहिए।
● नीम का घोल उपयोग में ले सकते हैं।
● रासायनिक नियंत्रण हेतु ट्राइजोफॉस 800 मि. ली. 1 हे. या इथोफेनप्राक्स 1ली. 1 हे.से छिड़काव करें।

 रेड हेरी केटरपिलर/कामलिया कीट


वयस्क षलभ मध्यम आकार का मजबूत शरीर वाला होता है। वयस्क का उदर लाल रंग का होता है जिस पर काली बिन्दियां पायी जाती है। इल्लियां अपनी पूर्ण विकसित अवस्था में गहरे भूरे रंग की होती है इनका पूरा शरीर बालों से ढंका होता है उदर के प्रथम खण्ड पर पुष्ट की सतह पर दो काले धब्बे होते है। इस कीट की रूयेदार सूंड़ी हानिकारक होती है जो अपने काटने चबाने वाले मुखांग से पत्तियों और पौधों के कोमल भागों को खाती है। वयस्क मादा पत्तियों के निचले सतह तक अंडे देती है अंडे खसखस के दानों के समान हल्के पीले रंग के होते हैं जो कि पकने पर काले रंग के हो जाते हैं।

इसके नियंत्रण हेतु –

● अण्डों और सूंड़ीयों को हाथ से एकत्रित कर केरोसिन मिश्रित पानी में डालकर नष्ट करना चाहिये।
● एक खेत व दूसरे खेत के बीच नाली बनाकर केरोसीन तेल डालकर नियंत्रित कर सकते है।
● ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करनी चाहिए।
● ट्राईजोफॉस 40 ई.सी 800 मि.ली./हेक्टेयर का छिड़काव करें।
● नीम के तेल का उपयोग कर इल्लियों को नष्ट करे।
● फसल चक्रण अपनाये।
● बेसिलस थुरेंजिंएसिस या ब्लूबेरिबेसियाना 1ली.या 1किलो ग्राम प्रति हे.के हिसाब से छिड़काव करे।
● एन.पी.वी. 250 एलई को प्रति हे.से छिड़काव करे।

 तम्बाकू इल्ली

यह एक बहुभक्षी कीट है। इसके अगले पंख सुनहरे एवं धूसर भूरा रंग लिए होते है तथा पंख सफेद होते है। इस कीट की सूंडी 3.5 से 4 सेमी लंबी हरे भूरे रंग की होती है। शरीर पर भूरे रंग के धब्बे तथा आड़ी तिरछी व लंबी पट्टियांं होती हैं। इल्ली की पीठ पर दोनो ओर एक-एक तथा निचले भाग में दोनों ओर पीली धारियांं होती है। इस कीट की सूंडी फसल का नुकसान पहुंचाती है। प्रारंभ में झुण्ड में सूण्डियां एक साथ पत्तियों को काटने व चबाने के मुखांगों से काटकर क्षति पहुुचाती है।कभी-कभी ये कलियों, फूलों तथा फसलों को भी नुकसान पहुंचाती है।

इस कीट के नियंत्रण हेतु –

● फसल कटने के बाद गहरी जुताई करें।
● अण्डों के गुच्छों को पत्तियों के सहित तोड़कर नष्ट कर देना चाहिये।
● प्रकाश पॉश एंव फेरोमान पॉश का प्रयोग करना चाहिए। ताकि वयस्क कीटो को नष्ट किया जा सके।

● एन.पी.वी. न्यूक्लियर पोलीहैडोसिस वायरस 250 एल.ई.250 सूंडी के बराबर के घोल को प्रति हैक्टेयर छिड़काव करेे। या ट्रायजोफॉस, क्लोरोपायरीफॉस 25 ई.सी. का प्रयोग करना चाहिए।

सेमी लूपर

हरे सेमीलूपर सोयाबीन की फसल में अगस्त से सितम्बर के माह में आक्रमण करते है। वयस्क हरे रंग के होते है। नवीन विकसित लार्वा हल्के हरे रंग के होते है। जिस पर कोमल ऊतक शिराओं पर उपस्थित होते हैं। इस कीट की इल्लियां पौधों की पत्तियों को खाकर नुकसान पहुँचाती हैं। अधिक प्रकोप होने पर यह कोमल प्ररोहों, कलियों एवं पत्तियों की नसों को छोड़कर शेष सभी हरे भागो को खाकर नष्ट कर देती है।

इसके नियंत्रण हेतु निम्न उपाय अपनाने चाहिए-

● जैविक नियंत्रण में इल्लियों की शुरूआती अवस्था में बैसिलस थुरिजिंएसिस ब्लूबेरिया बेसियाना 1लीटर प्रति हैक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें। यह संभव न होने पर काईटिन इनहिबिटर जैसे डायफ्लूबेन्जूरान 25 डब्ल्यू.पी. 300 – 400 ग्रा.प्रति हैक्टेयर या ल्यूफेनरान 5E.C. 400-600 मिली. प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करेे।

● रासायनिक विधि से नियंत्रण हेतु क्लोरोपायरीफॉस 20E.C.का 1.5 ली. प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।

● छिड़काव करते समय उपर्युक्त रसायन के साथ प्रति हैक्टेयर क्षेत्र में कम से कम 750 लीटर पानी का उपयोग करें।

 

सफेद मक्खी

वयस्क सफेद मक्खी लगभग 1.5 मिमी.लंबाई युक्त होती है। जिसके पंख सफेद एंव शरीर पीला जिस पर सफेद मोमीया पाउडर की सतह होती है। यह पौधों की पत्तियों पर नीचे की सतह पर पाये जाते है। थोड़ी सी आहट पाकर उडऩे लगते है। इस कीट के मुखांग रस चूसने वाले होते हैं। इस कीट के शिषु तथा वयस्क दोनों ही हानिकारक होते हैं। यह कीट मधुरस भी उत्सर्जित करता है जिस पर काली फफूंद विकसित हो जाती है। ग्रसित पौधों की पत्तियां कमजोर व पीली पड़ जाती है।

इसके नियंत्रण हेतु –

● फसल चक्र अपनाये।
● जल निकास की उचित व्यवस्था करेे।
● मिथाईल डेमेटान 25 ई.सी.का छिड़काव करें।
● खाद व उर्वरक का संतुलन बनाये रखे।

 


ब्लू बीटल

इस कीट का वयस्क चमकदार हरे तथा भूरे तांबिया रंग के पंख होते है। जिसकी लंबाई 3 से 8 इंच की होती है। यह मई-जून में आक्रमण करती है। इसके नियंत्रण हेतु खेत में बेसिलस पोपीली का छिड़काव फसल की दूधिया अवस्था में करना चाहिए।

● नेमेटोड हेटेरोराबिडिटिस बेक्टीरियोफॉरा को प्रयोग कर जैविक नियंत्रण करना चाहिए।
● फसल चक्र अपनाना चाहिए।

● ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करके कीटो का नियंत्रण किया जा सकता है।

ग्रासहॉपर

प्रौढ़ टिड्डा हरे पीले रंग का 35 से 50 मिमी.का लंबा होता है। इस कीट के शिषु एंव वयस्क दोनों ही हानिकारक होती है। विशेषत: शिषु अधिक हानि करते हैं। इस कीट का आक्रमण अगस्त से सितम्बर में अधिक होता है।

इसके नियंत्रण हेतु गहरी जुताई करनी चाहिए। तथा मानसून के शुरू होते ही प्रकाश प्रपंच लगाने से इनकी संख्या कम हो जाती है। निम्फ को जलाकर नष्ट कर देना चाहिये। ट्राईजोफॉस 40 ई.सी.800 मिली. तथा क्लोरोपायरिफॉस 25 E.C. का प्रयोग करना चाहिए।

 

 

 हैलीकोवरपा आर्मीजेरा

इस कीट की नव विकसित इल्ली हरे रंग की होती है पूर्ण विकसित इल्ली 35 मिमी.लंबी हरे रंग की होती है। अग्रपंख पीले भूरे रंग के तथा इनके किनारे काले होते है। इस कीट सूंडी हानिकारक होती है जो फसल पर जून से जुलाई तक सक्रिय रहती है। इल्ली प्रारंभ में कोमल टहनियों को खाती है। तथा फली अवस्था में फलियों को खाती है। इसके वयस्क कीट मानसून शुरू होने पर अंडे का निरोपण करते है।

इसके नियंत्रण हेतु –

● फसल की बुवाई समय पर करना चाहिये।
● ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करनी चाहिए ।
● 50 परभक्षी पक्षियों का फली अवस्था में फसल में छोड़ देना चाहिए।
● प्रोफेनोफॉस 50ई.सी./ 1500 मि.ली. प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करना चाहिए।