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                भिण्डी की खेती
◆ महत्त्व_ भिंडी की खेती मुख्यत: सब्जी के लिए की जाती है। इसकी सब्जी बहुत ही लोकप्रिय तथा प्रसिद्ध है। भिंडी के पौधों को पीटकर, पानी में मसलकर इसका लसदार रस गन्ने के रस की निखरी (सफाई) में प्रयोग किया जाता है, जिससे गुड़-शक्कर के रंग में सुधार आ जाता है। भिंडी की फलियों का रस औषधियों के बनाने में भी प्रयोग किया जाता है। भिंडी में विटामिन ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’ प्रोटीन तथा खनिज लवण प्रचूर मात्रा में पाये जाते
◆ भूमि (Soil)_ किसान भाइयों भिंडी को विभिन्न प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है किन्तु जीवांश प्रदार्थ युक्त, उचित जल निकास वाली दोमट भूमि इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम रहती है। 6 से 6.8 पी.एच. वाली भूमि भिंडी की खेती के लिए उपयुक्त रहती है पहले जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें इसके उपरांत 2 से 3 बार हैरो चलायें।
◆. जातियां – इसकी मुख्य जातियां निम्नलिखित हैं-
(i) पूसा मखमली- इस किस्म के फल चिकने व हरे रंग के होते हैं। यह किस्म ‘पूसा सावनी’ से अधिक पैदावार देती है, किन्तु इसमें मौैजेक नामक रोग अधिक लगता है जिसके कारण इसकी कम पैदावार मिलती है।
02. पूसा सावनी – भारत के विभिन्न भागों में सफलतापूर्वक उगाई जा रही है। इसे ग्रीष्म और वर्षाकालीन फसल के रूप में भी उगाया जा सकता है।
(iii) सलेक्शन 1- इस किस्म के पौधे “पूसा सावनी” की अपेक्षा कुछ छोटे और फैलावदार होते हैं, फलों में रोएँ “पूसा सावनी” नामक किस्म से अधिक होते हैं।प्रति हैक्टेयर उपज 100 से 120 क्विंटल तक मिल जाती है।
(iv) सलेक्शन 2 – इस किस्म के फल “पूसा सावनी” की तुलना में पतले, लंबे और गहरे हरे रंग के होते हैं। प्रति पौधा फलों की संख्या “पूसा सावनी” नामक किस्म से अच्छी होती है। यह ‘पीत शिरा मौजेक’ नामक रोग की प्रतिरोधी किस्म है।
(v) पंजाब – इस किस्म का विकास पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किया गया है। यह किस्म पीले विषाणु मौजेक रोगरोधी किस्म है। इसकी फलियां हरी, लंबी, कोमल और पंचकोणीय होती है। इस किस्म की उपज ‘पंजाब पद्मिनी’ नामक किस्म की अपेक्षा 40% अधिक और ‘पूसा सावनी’ किस्म की अपेक्षा 80% अधिक प्राप्त होती है। इस किस्म की उपज प्रति हेक्टेयर 102 कुंतल तक मिल जाती है।
◆ बोने का समय और बीज की मात्रा-
(i) ग्रीष्मकालीन फसल – जनवरी से मार्च (18-20 kg)
(ii) वर्षाकालीन फसल – जून से जुलाई (10-12 kg)।
◆ अंतरण (Spacing) _ किसान भाइयों ग्रीष्मकालीन फसल के लिए पंक्तियों और पौधों में क्रमश: 30 सेमी और 35 सेमी दूरी रखनी चाहिए।
◆ खाद एवं उर्वरक _ किसान भाइयों भिंडी की फसल में गोबर की 250 से 300 कुंतल खाद फसल बोने से 1 माह पूर्व जुताई के समय देनी चाहिए तथा नाइट्रोजन 100 किलोग्राम, फास्फोरस 50 किलोग्राम, पोटाश 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पर्याप्त होती है फास्फोरस और पोटाश की संपूर्ण मात्रा एवं नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के पूर्व अंतिम जुताई के समय डालनी चाहिए। नाइट्रोजन की शेष मात्रा एक माह बाद दी जाती है।
◆ सिंचाई (irrigation) _ किसान भाइयों ग्रीष्मकालीन भिंडी के लिए निरंतर सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसके लिए प्रति सप्ताह सिंचाई करनी चाहिए वर्षाकालीन पर फसल की सिंचाई वर्षा के ऊपर निर्भर करती है।
◆ निराई -गुड़ाई _ खेत को खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिए। ग्रीष्मकालीन और वर्षाकालीन फसल के लिए क्रमश: 3-4 व 2-3 निराइयां पर्याप्त होती हैं। वर्षाकालीन फसल में मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए।
◆ कीट तथा रोग नियंत्रण_
(i) जैसिड- यह हरे रंग का छोटा सा कीट होता है जो पत्तियों का रस चूसता है जिससे पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है। और पत्तियां ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं।
• रोकथाम-1400 मिली मेलाथियान 50 ई. सी. को 875 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
(ii) भिंडी का तना छेदक – यह कीट भिंडी के तनों में प्रवेश कर जाता है जिससे तने खोखले हो जाते हैं।
• रोकथाम- 2% एल्ड्रिन का छिड़काव करना चाहिए चाहिए।
◆ रोग (Diseases)-
(i) येलो बेन मौजिक(Yellow Vein Mosaic)- यह भिंडी का सबसे भयंकर रोग है यह रोग विषाणु द्वारा फैलता है। पत्तियां और फल पीले पड़ जाते हैं। फल छोटे बेडौल और कठोर हो जाते हैं।
• रोकथाम -(i) रोगी पौधों को उखाड़ कर जला दें।
(ii) फसल पर 0.15% मेलाथियान का छिड़काव करें।
(iii) फसल को खरपतवार से मुक्त रखें।
(iv) रोग प्रतिरोधी जातियां, जैसे -पूसा सावनी, आई. एच. आर. 20-31 उगायें।
(ii) चूर्णीय फफूंदी (powdery Mildew)- यह रोग Erysiphe Cinchora Cearum नमक फफूंदी द्वारा होता है। पत्तियों की निचली सतह में सफेद चूर्ण जैसा पदार्थ जमा रहता है। पत्तियां गीली होकर गिरने लगती हैं।
• रोकथाम – 25 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से गंधक के चूर्ण का छिड़काव करें।
◆ तुड़ाई (Harvesting) _ किसान भाइयों भिण्डी की प्रथम बार फलियां बनने के प्रत्येक 2-3 दिन बाद फलियों की तुड़ाई करें। देरी से उनकी तुड़ाई करने से वे कठोर हो जाती हैं। फल तोड़ने के लिए सर्वोत्तम समय फूल खिलने के 6-7 दिन बाद होता है। लेकिन फलियों की तुड़ाई उनकी जातियों पर निर्भर करती हैं।
◆ उपज (Yield) _ किसान भाइयों ग्रीष्मकालीन व वर्षाकालीन फसल से प्रति हेक्टेयर क्रमश: 50 क्विंटल तथा 100 क्विंटल उपज मिल जाती है।