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                    बैंगन की खेती
◆ महत्व -किसान भाइयों बैंगन भारत के मैदानी भागों में सब्जी की एक मुख्य फसल है। इसका फल पूरे वर्ष मिलता रहता है। और सब्जी बनाने में प्रयोग किया जाता है। इसमें विटामिन ए, बी, सी तथा प्रोटीन, वसा, कार्बोज तथा अन्य खनिज लवण जैसे कैल्शियम, फास्फोरस तथा लोहा आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं यह प्रकृति में गर्म और रुक्ष होता है। पाचन क्रिया को तेज करके भूख बढ़ाता है।
◆ जलवायु _बैगन के लिए हल्की गर्म और नम जलवायु उत्तम मानी जाती है पाला और तेज लू दोनों ही इसे हानि पहुंचाते हैं इसके बीज के अंकुरण के लिए लगभग 25°C तापक्रम उपयुक्त रहता है।
◆ जातियां_किसान भाइयों साधारणत: आकार के आधार पर बैंगन की निम्न मुख्य जातियां पाई जाती हैं।
(i) लंबे फल वाली किस्में_ पूसा परपिल लौंग, पूसा अनमोल, पूसा क्रांति, पूसा परपिल कलस्टर, पंत सम्राट, एल.बी.डी.-2,आदि।
(ii) गोल फल वाली किस्में _पूसा परपिल राउंड, टा. 3 पंजाब बहार, पंत ऋतुराज, N.D.B.H.-1आदि।
(iii) बैंगन की संकर जातियां_ पंत संकर बैंगन-1, पूसा हाइब्रिड-1, पूसा हाइब्रिड 6, नरेंद्र देव हाइब्रिड-1, विजय हाइब्रिड।
◆ भूमि एवं खेत की तैयारी_ किसान भाइयों बैंगन के लिए उपजाऊ बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है। साधारणत: बैगन को सभी प्रकार की भूमियों में पैदा किया जा सकता है भूमि का p.H. मान 6.5-7.5 के बीच रहना चाहिए। बैंगन की रोपाई करने से पूर्व खेत को अच्छी प्रकार तैयार कर लेना चाहिए पहले एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करके बाद में 4-5 जुताई देशी हल से करके प्रत्येक जुताई पर पाटा लगाकर खेत की मिट्टी को भुरभुरा तथा समतल कर लिया जाता है। खेत की अच्छी तैयारी पैदावार को प्रभावित करती है।
◆ पौध तैयार करना_ बैंगन की पौध तैयार करने के लिए पहले 1 मीटर चौड़ी क्यारियों को अच्छी तरह गोबर की खाद मिलाकर तैयार कर लेते हैं। क्यारी की लंबाई आवश्यकतानुसार रख सकते हैं। साधारणत: 5 x 1 मीटर आकार की 20 क्यारियां एक हेक्टेयर की रोपाई के लिए पर्याप्त रहती हैं। केवल वर्षा ऋतु में क्यारियों को भूमि तल से 20 सेमी ऊंचा बनाया जाता है बीज क्यारियों में छिटककर बोया जाता है एक हेक्टेयर खेत के लिए पौध तैयार करने के लिए 500 ग्राम बीज काफी होता है बीज को बोने से पहले 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से थायराम या सेरेसन से शोधित कर लेना चाहिए इस बीज को लगभग 100 वर्ग मीटर पौध क्षेत्र में बोया जाता है। बीज बोने के बाद उसके ऊपर राख या बारीक मिट्टी की एक पतली तह डालकर ऊपर से फव्वारे से सिंचाई करके भूमि को तब तक नम रखते हैं जब तक पौध ना उग आये। लगभग 4 से 5 सप्ताह में पौधे रोपने योग्य हो जाती है। सर्दियों में बोई जाने वाली पौध लगभग 6 से 8 सप्ताह में रोपने योग्य हो जाती है। पाले से बचाने के लिए पौध क्षेत्र के ऊपर छप्पर आदि की व्यवस्था भी करनी चाहिए।
◆ बुवाई का समय _ किसान भाइयों भारत के मैदानी भागों में बैगन की नर्सरी में बुवाई वर्ष में तीन बार की जाती है।
(i) पहली बुवाई – जून-जुलाई में,
(ii) दूसरी बुवाई – अक्टूबर-नवंबर में,
(iii) तीसरी बुवाई – मार्च में की जाती है,
(iv) पहाड़ी क्षेत्र में बुवाई – फ़रवरी- मार्च में की जाती है।
◆ पौध की रोपाई _किसान भाइयों पौध क्षेत्र में जून-जुलाई में बोई गई पौध लगभग 1 माह में रोपाई के योग्य हो जाती है जिसे जुलाई-अगस्त के महीने में खेत में रोप दिया जाता है। अक्टूबर-नवंबर में बोई गई पौध की रोपाई नवंबर दिसंबर में तथा मार्च में बोई गई पौध की रोपाई अप्रैल-मई में की जाती है। पौध क्षेत्र में पौध निकालने के 2 से 3 दिन पूर्व एक हल्की सिंचाई करके ही पौध उखड़नी चाहिए। लंबे बैंगन की पौध 60 x 60 सेमी, गोल बैंगन की पौध 75 x 60 सेमी, तथा संकर किस्में 90 x 60 सेमी की दूरी पर रोपी जाती हैं। पौधे रोपने के बाद एक हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए।
◆ खाद तथा उर्वरक_किसान भाइयों बैंगन खेत में काफी समय तक खड़ी रहने वाली फसल है इसलिए अपने वृद्धिकाल में काफी अधिक मात्रा में पोषक तत्वों को खींचती है। इसकी पूर्ति के लिए 200 से 250 कुंतल गोबर की खाद खेत की तैयारी करते समय ही मिट्टी में मिला देते हैं इसके अतिरिक्त 100 किग्रा नाइट्रोजन की ½ मात्रा (50 KG) 50 किग्रा फास्फोरस तथा 50 किग्रा पोटाश रासायनिक उर्वरकों द्वारा आखिरी जुताई के समय मिट्टी में मिला देते हैं। नाइट्रोजन की शेष मात्रा को दो बार में आधा-आधा करके, एक बार रोपाई के एक माह बाद तथा दूसरी बार फूल आने पर खड़ी फसल में रासायनिक उर्वरकों द्वारा Top Dressing कर देना चाहिए। नाइट्रोजन की Top Dressing के पहले या बाद में हल्की सिंचाई आवश्यक होती है।
◆. निकाई-गुड़ाई एवं सिंचाई _ किसान भाइयों अच्छी फसल लेने के लिए बैंगन की फसल में निकाई-गुड़ाई की जाती है पहली निकाई रोपाई के 1 माह बाद दूसरी रोपाई के 2 महीने बाद की जाती है। यदि आवश्यकता हो तो तीसरी निकाई-गुड़ाई भी कर देनी चाहिए। गर्मियों की फसल में रोपाई के तुरंत बाद एक हल्की सिंचाई करते हैं तथा फिर प्रत्येक सप्ताह पश्चात सिंचाई करते रहते हैं कुल 10-12 से सिचाईयां काफी होती हैं वर्षा ऋतु की फसल में अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। वर्षा ना होने पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए। सर्दियों की फसल को 12-15 दिन के अंतर पर 4-5 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है।
• किसान भाइयों रासायनिक विधि से भी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है इसके लिए लासो 2 किग्रा सक्रिय अवयव प्रत्यय का प्रयोग खरपतवारों को नष्ट करने में काफी उपयोगी है।
◆ कीट नियंत्रण_ किसान भाइयों बैंगन की फसल में निम्न कीट लगते हैं-
(i) शाखा तथा फल बेधक_ इस कीट की सूंडी नई बढ़ती हुई कोमल शाखाओं में छेद करके उन्हें अंदर से खाती हैं जिससे शाखाएं मुरझाकर सूख जाती है। फल आने की दशा में ये कीट फलों में छेद करके उन्हें अंदर से खा जाते हैं, जिससे फल सब्जी के योग्य नहीं रहते। इस कीट की रोकथाम के लिए 150 मिली सुमिसीडीन 1000 लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अंतर से छिड़काव करते रहना चाहिए। फलों को उपयोग करने के लिए छिड़काव से पूर्व ही तोड़ लेना चाहिए।
(ii) तना बेधक_ यह कीट वयस्क पौधों के तनों में छेद करके अंदर से खाने लगते हैं और पौधा सूख जाता है। इसकी रोकथाम के लिए सेविन (50%) का 0.2 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
(iii) जैसिड (हरा तेला) _ यह हरे रंग के छोटे कीट होते हैं, जो पत्तियों का रस चूसते हैं इनके नियंत्रण के लिए साइपरमेथ्रिन दवा का .15% का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
(iv) लाल माइट _ यह एक छोटा सा कीट होता है, जो पत्तियों का रस चूस कर हानि पहुंचाता है इसके नियंत्रण के लिए साइपरमेथ्रिन दवा का .15% का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
◆किसान भाइयों बैंगन की फसल में लगने वाली मुख्य बिमारियां-निम्नलिखित हैं-
(i) आर्द्रपतन या डंपिंग ऑफ_ इस रोग में पौधे सड़कर मर जाते हैं। यह रोग पौधशाला में उगे पौधों पर लगता है। नर्सरी में पौधों का मुरझाना और सूख जाना इस बीमारी का मुख्य लक्षण है। इससे बचने के लिए बीज को कैप्टन या थायराम दवा से उपचारित करके बोना चाहिए 1 ग्राम दवाई से 500 ग्राम बीज उपचारित किया जा सकता है।
(ii) फोमाप्सिस ब्लाइट तथा फल सड़न रोग_ इस रोग में फल सड़ने लगते हैं इसकी रोकथाम के लिए 200 ग्राम कैप्टान को 100 लीटर पानी में घोल कर 10 दिन के अंतर से 2-3 छिड़काव फसल पर करने चाहिए। इंडोफिल M-45 का 0.2 प्रतिशत का घोल भी रोपाई के बाद पौधों पर छिड़कने से लाभ होता है ।
(iii) लिटिल लीफ _ इस रोग में पौधों की पत्तियां छोटी हो जाती हैं पौधों पर फूल आते हैं परंतु फल नहीं बनते और पौधा झाड़ीनुमा हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए रोगग्रस्त पौधों को खेत से उखाड़कर गहरी मिट्टी में दबा देना चाहिये और रोग फैलाने वाले कीटों को नष्ट करने के लिए मेलाथियान का 0.1% घोल छिड़कना चाहिए।
(iv) मूल ग्रन्थि रोग _इस रोग में पौधों की जड़ों में गांठें पड़ जाती हैं। रोगी पौधे बोने रह जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए 25 क्विंटल नीम की खली प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलानी चाहिए। अथवा नेमागान 12 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि का फसल बोने या रोपने के दो सप्ताह पूर्व शोधन करना चाहिए।
◆ फल तोड़ना _ फसल की रोपाई के लगभग 70 से 80 दिन बाद फसल फल देना प्रारंभ कर देते हैं फलों को मुलायम अवस्था में ही तोड़ना चाहिए बैंगन का फल लगने के लगभग 8-10 दिन बाद तोड़ने योग्य हो जाता है।
◆ बैंगन की औसत उपज 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। संकर किस्मों की उपज 350-400 क्विंटल/हैक्टेयर तक हो जाती।