नमस्कार किसान भाइयों! Thekrishi में आप सभी का स्वागत है। आज हम बात करेंगे बाजरे की खेती के बारे में।
                                     
★ बाजरे की खेती ★
महत्व – बाजरे की फसल चारे और दाने के लिए बोई जाती है। यह पशुओं का भोजन है तथा मनुष्य भी इसके दाने की रोटियां और खिचड़ी बनाकर शरद ऋतु में खाते हैं। इसके अतिरिक्त इसकी बाल को भी भूनकर भी खाया जाता है।
                                                   ★ जलवायु ★
किसान भाइयों बाजरे के लिए नम तथा गर्म जलवायु उपयुक्त रहती है। तथा फसल में फूल आने पर स्वच्छ वायुमंडल, गर्म मौसम की आवश्यकता होती है। इसकी फसल के लिए 20℃-30℃ ताप उपयुक्त माना जाता है। इसकी फसल 40 सेमी. से 100 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में भी की जा सकती है।
                                                     ★ भूमि (Soil)★
किसान भाइयों बाजरे की खेती के लिए बलुई तथा बलुई दोमट भूमि अधिक उपयुक्त मानी जाती है। इसके अतिरिक्त यह काली मिट्टी, दोमट, कंकरीली आदि मिट्टियों में उगाया जा सकता है। इसकी फसल के लिए अधिक उपजाऊ भूमि का होना अनिवार्य नहीं समझा जाता है।
                                    ★ उन्नत जातियां ★
किसान भाइयों बाजरे की उन्नतशील जातियां निम्नलिखित हैं-
(i) देसी उन्नतशील जातियां ;- बाजरा मैनपुर, बाजरा घाना, बाजरा बाबापुरी, बाजरा फतेहाबाद-1, बाजरा एस-530 ।
(ii) संकर जातियां ;- निम्नलिखित हैं-
• एच. बी.-5 ;- इस जाति के बाजरे की उपज अच्छी होती है। इसकी फसल 90 से 95 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसके दाने की उपज 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। इस जाति में हरित बाली रोग की रोधक क्षमता होती है। यह सभी बाजरा क्षेत्रों में उगाई जाती है।
पी.एच.बी.-10 ;- यह जाति कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त मानी जाती है। यह 90 से 95 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसकी बालियों की लंबाई 30-35 सेमी होती है। तथा इसके दानों की उपज 30-40 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है। यह जाति हरित बाली रोग की रोधक क्षमता रखती है।
• एच.एच.बी-60 ;- यह सूखे क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह 70 से 80 दिनों में तैयार हो जाती है। इसके दाने की उपज 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
(iii)  संकुल जातियां-
(i) एम.पी.-15_ यह जाति लगभग 90 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसके पौधों की ऊंचाई 200-210 सेमी होती है। तथा दाने की उपज 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा सूखी कड़वी की उपज 75 क्विंटल के लगभग होती है।
(ii) पी.एच.बी.- 8_ यह जल्दी पकने वाली जाति है। इसकी फसल 75 से 80 दिन में पक जाती है। इसके पौधों की ऊंचाई लगभग 215 सेमी होती है इसके दानों की उपज लगभग 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा सुखी कड़वी के उपज 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
विजय कम्पोजिट _ यह फसल 80-85 दिन में पक जाती है। इसके पौधों की औसत ऊंचाई 225 सेमी होती है। इसके दानों की उपज 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा सूखी कड़वी 90 से 95 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
                                                       ★ खेत की तैयारी ★
बाजरे की बुवाई के लिए खेत तैयार करने के लिए पहले मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई (लगभग 15 सेमी) करनी चाहिए। इसके बाद 2-3 जुताई देसी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए जिससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाये तथा खेत पर पटेला लगाकर खेत को समतल कर देना चाहिए। अंतिम जुताई के समय 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हैप्टाक्लोर की धूल डालनी चाहिए। जिससे खेत में दीमक न लग सके।
                                                         ★ बुवाई का समय ★
बाजरे की फसल की बुवाई का उपयुक्त समय 15 जुलाई से 15 अगस्त तक माना जाता है। इस समय में किसान वर्षा होने पर अपनी फसल की बुवाई करते हैं क्योंकि बाजरे की अधिकतर खेती वर्षा पर निर्भर करती है।
                                                         ★ बीज की मात्रा ★
                          बाजरे की फसल के लिए बीज की मात्रा इस प्रकार है-
(i) दाने के लिए 4 से 5 किग्रा प्रति हेक्टेयर।
(ii) चारे के लिए 12 से 14 किग्रा प्रति हेक्टेयर।
                                                             ★ बीजोपचार ★
अंकुरण के समय फसल को रोग और कीटों से बचाने के लिए बीज को बोने से पूर्व उपचारित कर लेना चाहिए। इसके बीज को 2.5 ग्राम थाइरम से 1 किग्रा बीज को उपचारित कर लेना चाहिए।
                                                              ★ खाद और उर्वरक ★
बाजरा की अच्छी पैदावार लेने के लिए फसल में उर्वरक का उपयोग करना चाहिए जो निम्नलिखित मानक से देना चाहिए-
• बाजरे की फसल को खाद देने से पूर्व भूमि की जांच करनी चाहिए और कृषि विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार ही खाद की मात्रा देनी चाहिए। वैसे सामान्यता उर्वरकों की निम्नलिखित मात्राएं इस की फसल के लिए पर्याप्त होती हैं-
(i) देसी जातियों के लिए – 45 किग्रा नाइट्रोजन, 25 किग्रा फास्फोरस, 25 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए।
(ii) संकर जातियों के लिए – 90 किग्रा नाइट्रोजन, 40 किग्रा फास्फोरस, 40 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए।
• विधि _ बुवाई से पूर्व कार्बनिक खाद फसल की बुवाई के एक महीना पहले देनी चाहिए जिससे वह मिट्टी में अच्छी प्रकार से सड़ जाये तथा उर्वरकों के नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फास्फोरस तथा पोटाश की संपूर्ण मात्रा बुवाई के समय गहरे संस्थापन विधि से देनी चाहिए। इसके बाद शेष बची नाइट्रोजन की आधी मात्रा फसल में 25-30 दिन बाद तथा नाइट्रोजन की मात्रा बलियाँ निकलते समय नाइट्रोजन के रूप में देनी चाहिए।
                                              ★ सिंचाई तथा जल निकास ★
किसान भाइयों अधिकांश क्षेत्रों में बाजरे की फसल वर्षा पर निर्भर करती है। जिन क्षेत्रों में सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं वहां पर यदि वर्षा न हो तो 2-3 सिंचाई करनी चाहिए। जिससे खेत में पर्याप्त नमी बनी रहे। किसान भाइयों यदि अधिक वर्षा हो जाए और खेतों में अतिरिक्त जल भर जाता है तो उसकी निकासी कर देना चाहिए।
                                        ★ निराई-गुड़ाई तथा खरपतवार नियंत्रण ★
फसल के अंकुरण के 20-25 दिन बाद इसकी निराई-गुड़ाई खुरपी से कर देनी चाहिए।
• किसान भाइयों खरपतवार खेत में न उगे इसके लिए 1 किग्रा एट्राजिन को 800 लीटर पानी में घोलकर फसल के अंकुरण से पूर्व बुवाई के बाद एक हेक्टेयर भूमि में छिड़काव कर देना चाहिए।
                                                             ★ कटाई ★
किसान भाइयों बाजरे की फसल 2.5 से 3.5 मास के बीच पककर तैयार हो जाती है। जब बालियों में दाने अच्छी प्रकार से पक जायें तो खेत की कटाई कर लेते हैं। तथा कटी हुई फसल को खलिहान में एकत्र कर लेते हैं। जहां पर उनकी बालियों को काटकर धूप में सुखा देते हैं। तथा चारे के लिए बोई गई फसल को बालियों के निकलते ही काट कर पशुओं को खिला देते हैं।
                                                                  ★ उपज ★
बाजरे की देसी जातियों की उपज 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा संकर जातियों की उपज 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। सूखी कड़वी की उपज 80-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा हरे चारा की उपज 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है।

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