किसान भाइयों, फरवरी माह में बोये जाने वाले १ और फसल की जानकारी आपतक पहुँचाना चाहता हूँ। जैसा कि मैंने अपने पिछले लेख (कपास की खेती) में कहा था कि फरवरी से जून तक के महीने में उगने वाले कई फ़सलों की जानकारी आपतक पहुंचाई जाएगी, इस लेख में हम बात करेंगे उरद की खेती के बारे में।

इस लेख में आपको उरद की खेती का सम्पूर्ण विवरण मिलेगा।

कुल- लेग्यूमिनोसी

वानस्पतिक नाम – विग्ना मुंगों( Vigna mungo L)

महत्व – उर्द की फसल एक दलहनी फसल है तथा इसके दाने में लगभग 25% प्रोटीन, 60% कार्बोहाइड्रेट, 11% वसा तथा शेष अन्य पोषक तत्व पाए जाते हैं। उर्द की दाल, इमरती, इडली, डोसा, आदि व्यंजनों के रूप में खाया जाता है। पशुओं को इसके दाने का छिलका तथा भूसा खिलाया जाता है।

उत्पत्ति- बैवीलोन के अनुसार उड़द का जन्म स्थान भारतवर्ष है।

उत्पादन केंद्र- यह संसार के बहुत से देशों में उत्पन्न किया जाता है। भारतवर्ष में इसकी खेती मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पंजाब कर्नाटक आदि प्रदेशों में की जाती है।

• उत्तर प्रदेश में इसकी खेती अधिकतर सीतापुर, लखनऊ, कानपुर, बरेली, बदायूं, झांसी, ललितपुर, बाराबंकी, मेरठ, मुजफ्फरनगर आदि जनपदों में की जाती है।

जलवायु – उर्द की फसल के लिए गर्म और नम जलवायु की आवश्यकता पड़ती है। उत्तर प्रदेश में उड़द की फसल मुख्य रूप से खरीफ की फसल में उगाई जाती है। परंतु आजकल उर्द को जायद की फसल में भी उगाया जाता है। इसकी फसल के उचित वृद्धि के लिए 25°C-30°C का तापमान उपयुक्त रहता है।

भूमि – उर्द की फसल के लिए दोमट भूमि उपयुक्त होती है। वैसे सभी प्रकार की भूमियों में इसकी खेती की जा सकती है। अम्लीय, क्षारीय भूमि में इसकी खेती नहीं होती है। इसकी फसल में वर्षा होने पर खेतों से जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए अन्यथा इसकी फसल अधिक पानी में नष्ट हो जाती है।

 

उरद की उन्नत प्रजातियां कौन सी हैं। 

(i) टाइप-9_ यह जायज तथा खरीफ के लिए उपयुक्त मानी जाती है। यह जल्दी पकने वाली जाति है जो खरीफ की फसल में 90 से 95 दिन में तथा जायद की फसल में 80 से 85 दिन में पक जाती है। इसकी पैदावार लगभग 10 से 11 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

 

(ii) टाइप-27_ यह खरीफ की फसल में उगाई जाती है। यह लगभग 130 दिन में पक जाती है। इसकी उपज 10 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

 

(iii) पंत उड़द- 19_ इस जाति की उर्द जयद और खरीफ की फसलों में उगाई जाती है। इसकी उपज 10 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। यह 80 से 85 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह जाति पीला मौजेक रोग की प्रतिरोधक क्षमता रखती है।

 

(iv) पंत उड़द-30_इस जाति की उर्द जायद तथा खरीफ की फसल में उगाई जाती है। यह 80 से 90 दिन में पक जाती है। इसकी उपज 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। इसमें पीला मौजेक रोग की प्रतिरोधक क्षमता होती है।

 

 

(v) पूसा-1_ इस जाति की उर्द जायद तथा खरीफ की फसल में उगाई जाती है। यह लगभग 85 दिन में पक जाती है। इसके उपज 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

 

खेत की तैयारी कैसे की जाती है?

उर्द की फसल की बुवाई के लिए खेत तैयार करते समय पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से लगभग 15 सेमी गहरी करनी चाहिए।इसके बाद 2-3 जुताई देशी हल तथा हैरो से करके मिट्टी को भुरभुरा करना चाहिए और खेत को समतल करने के लिए खेत में पाटा लगा देना चाहिए।

 

बुवाई का समय- खरीफ की फसल की बुवाई के लिए उर्द की फसल को 20 जून से 15 जुलाई तक बो देना चाहिए तथा जायद की फसल की बुवाई 20 फरवरी से 20 मार्च तक कर देनी चाहिए।

 

बीज की मात्रा तथा बीजोपचार –उर्द की फसल की बुवाई के लिए बीज की मात्रा इस प्रकार प्रयोग करनी चाहिए।

(i) मात्रा- खरीफ की फसल के लिए 12 से 16 किग्रा/है., तथा जायद की फसल में 22 से 25 किग्रा/है. बीज की मात्रा पर्याप्त होती है।

 

(ii) बीजोपचार- उर्द के बीज को बोने से पूर्व राख डालकर हल्के हाथ से मसलकर बोना चाहिए।

 

 

12. बुवाई की विधि- उर्द की फसल को हल के पीछे कूंडों में बोना चाहिए। खरीफ की फसल में एक कूंड से दूसरे कूंड का अंतर 40-45 सेमी तथा जायद की फसल में 20-25 सेमी रखना चाहिए।

 

13. खाद एवं उर्वरक – उर्द की फसल में गोबर की खाद फसल बोने से 1 माह पूर्व जुताई के समय देनी चाहिए जिससे वह मिट्टी में मिल कर अच्छी प्रकार सड़ जाए उर्द की फसल के लिए 20 किग्रा नाइट्रोजन, 45 किग्रा फास्फोरस तथा 3 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से पर्याप्त होती है। उर्वरकों को फसल की बुवाई के समय बीज की पंक्ति वाले कूंड से 5 सेमी की दूरी पर बीज से 5 सेमी गहराई पर डालना चाहिए।

14. सिंचाई एवं जल निकास – खरीफ की फसल में अधिकतर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। यदि बरसात न हो और फसल मुरझाने लगे तो फसल में सिंचाई कर देनी चाहिए। तथा अधिक वर्षा होने पर खेत से जल की निकासी कर देनी चाहिए तथा जायद की फसल में 10 से 12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए।

15. निराई-गुड़ाई तथा खरपतवार नियंत्रण – खरपतवारों के नियंत्रण हेतु उर्द की फसल में बुवाई के 20 से 25 दिन बाद खुरपी से निराई-गुड़ाई कर देनी चाहिए यदि आवश्यक हो तो 15 दिन बाद दूसरी निराई-गुड़ाई भी खुरपी से कर देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त खरपतवार के नियंत्रण हेतु बुवाई के पूर्व 2 किग्रा बेसालीन को 8,000 ली. जल में घोलकर एक हेक्टेयर भूमि पर छिड़ककर हैरो से जुताई कर देनी चाहिए। ऐसा करने से खेत में खरपतवार नहीं उगते।

रोग नियंत्रण – उर्द की फसल में निम्नलिखित रोग लगते हैं-

(i) पीला मौजेक (Yellow mosaic) – यह रोग एक वायरस के द्वारा फैलता है। इस वायरस को सफेद मक्खी से एक पौधे से दूसरे पौधे पर फैलता है। इस रोग में पहले पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे बनते हैं और अंत में पत्ती पीली होकर सूख जाती है इस रोग के उपचार हेतु मेटासिस्टॉक्स 0.1% के घोल का फसल पर कई बार छिड़काव करना चाहिए।

(ii) चारकोल विगलन- यह रोग फफूंदी द्वारा उत्पन्न होता है इसमें पौधे की जड़े तथा तना सड़ जाता है। इस रोग से फसल के बचाव हेतु उर्द की फसल को ज्वार, बाजरा जैसी फसलों के साथ मिलाकर उगाना चाहिए तथा बीज को बोने से पहले 0.25%  ब्रेसीकाल से उपचारित करके बोना चाहिए।

(iii) एन्थ्रेक्नोज- यह रोग फफूंदी से फैलता है इस रोग के कारण पत्तियों तथा फलियों पर भूरे रंग के गोल धब्बे पड़ते हैं जो बाद में गहरे रंग के हो जाते हैं। इस रोग से बचाव हेतु फसल पर डाइथेन एम-45 के 0.25% घोल का छिड़काव करना चाहिए।

कीट नियंत्रण- उड़द की फसल में निम्नलिखित कीट हानि पहुंचाते हैं-

(i) कमला (रोयेदार सूंडी ) – यह कीट पौधे की सभी पतियों को खा जाता है जिससे पौधा पत्तियों विहीन हो जाता है। इस कीट की रोकथाम हेतु इंडोसल्फान 35 ई. सी. के 2 लीटर को 800 लीटर जल में घोलकर 1 हेक्टेयर फसल पर छिड़काव करना चाहिए।

 

(ii) सफेद मक्खी- यह पौधों की पत्तियों का रस चुस्ती है। तथा पीला मौजेक रोग के वाइरस को एक पौधे से दूसरे पौधे पर फैलाती है। इस कीट की रोकथाम हेतु फसल पर 0.1% मैटासिस्टाक्स के घोल का छिड़काव करना चाहिए।

 

(iii) हरा तेला ( jassids) – यह कीट पत्तियों का रस चूस लेता है जिससे पत्तियां मुड़ जाती है। तथा पौधा बीमार हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए नुवाक्रान 40 ई.सी. के 0.4% का घोल फसल पर छिड़कना चाहिए।

 

कटाई- जब फसल पक जाती है तो इसकी फलियां पूर्ण रूप से काली हो जाती हैं। इस अवस्था में दरांती के द्वारा इसकी कटाई कर ली जाती है। तथा फसल को किसी टाट की गठियां में बांधकर खलियान में एकत्रित कर लेते हैं।

मंडाई – खेत में फसल को कई दिन तक डालकर अच्छी प्रकार सुखा लेते हैं। तथा फिर इस पर बैलों की दायं चलाई जाती है। इसके बाद भूसे को दाने से अलग कर लिया जाता है।

उपज(Yield)- खरीफ की फसल में उर्द के उपज 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा जायद की फसल में 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है।

भंडारण – उर्द के दानों में ढोरे पैदा हो जाते हैं। अतः इसका भंडारण करने से पहले इसके दानों को अच्छी प्रकार सुखाकर लोहे की टंकी में रखकर दवाई रखकर वायुरोधी कर देना चाहिए।

विपणन – उर्द की बाजार में बहुत अधिक मांग होती है। अतः किसान अपनी आवश्यकता से अधिक फसल को बाजार में बेच सकते हैं।


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