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                 प्याज की खेती
◆ महत्व _ प्याज कंद वाली सब्जियों के अंतर्गत आता है। प्याज का प्रयोग कच्चे तथा पके दोनों रूपों में तथा मसालों के साथ भी किया जाता है। प्याज में गंधक की मात्रा अधिक होने के कारण यह रक्त-वर्धक तथा रक्त-शोधक का गुण रखता है। प्याज में विटामिन ‘बी’, ‘सी’, लोहा तथा कैल्सियम भी सूक्ष्म मात्रा में पाये जाते हैं। प्याज की लोकप्रियता इसमें उपस्थित खनिज पौष्टिक तत्वों तथा रोग निवारक गुण (औषधि के रूप में प्रयोग) के कारण से अधिक है। इसमें चरपरापन चरपराहट अथवा तीखापन एलाइल प्रोपाइल डाइ सल्फाइड एक विशेष प्रकार के तेल अंश के कारण होती हैं।
◆ जलवायु _ प्याज का उत्पादन विभिन्न प्रकार की जलवायु में किया जा सकता है परंतु हल्की गर्मी एवं सर्दी तथा कम वर्षा वाले नम जलवायु इसके लिए सर्वोत्तम समझी जाती है। प्याज की अच्छी उपज के लिए 15 से 21 डिग्री सेल्सियस तापमान, 10 घंटे का दिन तथा 70% आद्रता उपयुक्त होती है।
◆ भूमि तथा खेत की तैयारी _ प्याज को लगभग सभी भूमियों में पैदा किया जा सकता है परंतु बलुई दोमट तथा दोमट भूमियों में यह अच्छी प्रकार से पैदा की जा सकती है। दोमट भूमि प्याज के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। प्याज की खेती के लिए अधिक गहरी जुताई की आवश्यकता नहीं होती। खेत में 4-5 जुताइयां करके, पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरा कर लेते हैं। गोबर की सड़ी हुई खाद भी पर्याप्त मात्रा में खेत की तैयारी करते समय ही खेत में मिला देते हैं।
◆ उन्नतशील प्रजातियां- किसान भाइयों प्याज की उन्नतशील प्रजातियां निम्नलिखित हैं-
पूसा रेड, पूसा रतनार, निफाद-53, पटना रेड, अर्कानिकेतन, अर्का कल्याण,भीमा सुपर, भीम लाल, भीमा श्वेता, भीमा शुभ्रा।
◆ बीज की मात्रा _ किसान भाई एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में रोपाई के लिए 8-10 किग्रा बीज की नर्सरी पर्याप्त रहती है। यदि सीधे कन्द बोये जाये तो 10-12 क्विंटल कन्दों की प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है।
◆ बोने का समय _ मैदानी क्षेत्रों में बीज को नर्सरी में अक्टूबर के अंत से नवंबर के मध्य तक होना चाहिए। खरीफ फसल की बुवाई जून में करते हैं। बीज को बोने से पहले कैप्टान या थायराम नामक दवा से 2.5 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।
◆ पौध तैयार करना _ किसान भाइयों प्याज की नर्सरी ऐसे स्थान पर बनानी चाहिए जहां सिंचाई और पानी के निकास का अच्छा प्रबंध हो। भूमि समतल और उपजाऊ होनी चाहिए। जिस भूमि में पौध तैयार करनी हो उसके अछी प्रकार से जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए। इसके बाद 5 मीटर लंबी तथा 1 मीटर चौड़ी क्यारियां भूमि से लगभग 15-20 सेमी ऊँची बनानी चाहिए। प्रत्येक क्यारी में 10-15 किलोग्राम गोबर की खाद तथा 10-15 ग्राम दानेदार फ्यूराडान अच्छी प्रकार से मिला देना चाहिए। क्यारियों को तैयार करने के बाद बीज को 8-10 सेमी की दूरी पर लाइनों में 1½ सेमी की गहराई पर बोया जाए। बीज को बोने के बाद हजारे से हल्की सिंचाई करके क्यारियों को सूखी घास की हल्की परत से ढक देना चाहिए। एक दिन के अंदर से हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए। जब बीजों का जमाव हो जाये तो घास की परत को हटा देना चाहिए तथा सिंचाई करते रहना चाहिए। फसल पर डाइथेन M-45 दवा का 0.25% का घोल बनाकर पौधों पर 1-2 छिड़काव कर देने से बीमारी आदि का भय नहीं रहता। बुवाई के लगभग 60-70 दिन बाद पौधे रोपाई योग्य हो जाते हैं। तब तक पौधे 8-10 सेमी ऊंचे हो जाते हैं।
• किसान भाइयों एक हेक्टेयर में रोपाई के लिए लगभग 500 वर्ग मीटर क्षेत्र में पौध तैयार करने की आवश्यकता होती है।
◆ पौध की रोपाई _ पौध की रोपाई अच्छी तरह से तैयार किए गये खेतों में मध्य दिसंबर से मध्य जनवरी तक आवश्यक कर देनी चाहिए। पौधों की रोपाई करते समय पंक्ति से पंक्ति की दूरी 15 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखी जाती है। एक स्थान पर एक से अधिक पौध नहीं लगानी चाहिए।
फरवरी माह में भी रोपाई करते हैं। रोपाई करने से पहले पौधे के ऊपरी भाग को काट देना चाहिए जिससे पौधों को स्थापित करने में मदद मिलती है। रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए।
◆ खाद तथा उर्वरक _ किसान भाइयों एक हेक्टेयर में लगभग 200 से 250 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद तैयारी के समय पौध रोपने से 3-4 सप्ताह पहले खेत में मिला देनी चाहिए। इसके बाद सामान्यत: 100 kg नाइट्रोजन, 50 KG फास्फोरस, 100 kg पोटाश और 25 kg गंधक प्रति हेक्टेयर देना चाहिए।
• किसान भाइयों, नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस, पोटाश एवं गन्धक की सम्पूण मात्रा अंतिम जुताई के समय खेत में मिला देनी चाहिये।
• नाइट्रोजन की शेष मात्रा को रोपाई के एक माह बाद खड़ी फसल में देना चाहिए।
◆ निकाई गुड़ाई _ किसान भाइयों प्याज के खेत में अधिक निकाई-गुड़ाई की आवश्यकता नहीं होती है। लगभग 2 बार निकाई-गुड़ाई पर्याप्त होती है- पहली रोपाई के एक माह बाद तथा दूसरी रोपाई के दो माह बाद।
• रासायनिक विधि से खरपतवारों के नियंत्रण के लिए टोक E 25, 6 लीटर मात्रा 1,000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के बाद छिड़काव करने से खरपतवार नहीं उगते।
◆ सिंचाई _ प्याज की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए भूमि में पर्याप्त नमी का रहना अति आवश्यक होता है इसलिए लगभग 10-12 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। दो सिंचाइयों के बीच का अंतर मौसम के अनुसार निर्भर करता है। आमतौर पर जाड़ों में 12-15 दिन के अंतर से तथा गर्मियों में 7-8 दिन के अंतर पर सिंचाई करना ठीक होता है। सिंचाई पूरे खेत में एक समान तथा हल्की करनी चाहिए।
◆ प्याज में लगने वाले कीड़े व रोग तथा उनकी रोकथाम
◆ (A) कीट, एवं नियंत्रण- प्याज में निंलिखित कीट लगते हैं-
(i) थ्रिप्स या (भुनगा) _ ये बहुत छोटे कीट होते हैं जो पौधों की पत्तियों का रस चूसते हैं जिससे पत्तियों के ऊपरी सिरे सूखने लगते हैं। इनसे बचने के लिए फसल पर 0.15% साइपरमेथ्रिन का 600 लीटर घोल प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
(ii) मैगट प्याज की मक्खी_ इसकी सूंडी सफेद रंग की होती है जो पौधों की गाँठों में घुसकर बहुत नुकसान पहुंचाती है। इससे बचने के लिए खेत में रोपाई के पूर्व 15 kg थिमेट 10 जी. प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी तरह भूमि में मिला देना चाहिये। किसान भाई इस दवाई के प्रयोग से लगभग 2 माह तक कच्ची प्याज का कोई भी भाग प्रयोग नहीं करना चाहिये। जब मक्खी खड़ी फसल में दिखाई दे तो उस पर साइपर मेथ्रिन का 0.15% के घोल का छिड़काव अच्छा रहता है।
(iii) तम्बाकू की सूंडी (ix) ये दोनों प्रकार की सूंडी भी फसल को हानि पहुंचाती हैं। इनके नियंत्रण के लिये भी 0.15% साइपरमेथ्रिन के घोल का फसल पर छिड़काव करना चाहिए। किसान भाइयों फसल पर 4% सेविन धूल का भी बुरकाव किया जा सकता है।
◆ (B) रोग _ प्याज में लगने वाले रोग निम्नलिखित हैं-
(i) बैंगनी धब्बा (परपिल ब्लाच)_ किसान भाइयों यह रोग प्याज की पत्तियों तथा गाँठों पर लगता है। रोगग्रस्त भाग पर छोटे सफेद धंसे हुए धब्बे बनते हैं जिनका मध्य भाग बैंगनी रंग का होता है। इन धब्बों की सीमायें लाल या बैंगनी रंग की होती हैं और उनके चारों ओर कुछ दूरी पर फैला एक पीला क्षेत्र पाया जाता है। रोग के प्रभाव से पत्तियां और तने सूखकर गिर जाते हैं। रोग की उग्र अवस्था में कंद भी गलने लगते हैं।
● रोकथाम_ बीज को थायराम दवा से 2.5 ग्राम दवा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।
• इन्डोफिल M-45 की 2.5 किग्रा मात्रा को 1,000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए।
• जिन प्याज के खेतों में यह रोग लग गया हो उसमें आगामी 2-3 वर्ष तक प्याज या लहसुन नहीं बोना चाहिए।
(ii) मृदु रोमिल आसिता _ किसान भाइयों इस रोग में पीले आयताकार या अंडाकार धब्बे बनते हैं। रोग के प्रभाव से पत्तियों का रोगग्रस्त भाग सूख जाता है। रोगी पौधे से प्राप्त कंद छोटे होते हैं। इस रोग के नियंत्रण के लिए फसल पर इन्डोफिल M-45 की 2.5 किग्रा मात्रा 1,000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए। तथा खेत में जल निकास का उचित प्रबंधन करना चाहिए।
(iii) प्याज का कंड रोग_ इस रोग में रोगी पत्ती तथा बीज पत्रों पर काले रंग के स्फोट बनते हैं। इन स्फोटों के फट जाने पर असंख्य जीवाणु काले चूर्ण के रूप में निकलते हैं। रोगी पौधे 3-4 सप्ताह में मर जाते हैं।
● रोकथाम_
• किसान भाइयों बीज को बोने से पूर्व थायराम अथवा कैप्टान 2.5 ग्राम दवा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।
• मृदा को मेथिल ब्रोमाइड (एक किलोग्राम प्रति 25 वर्ग मीटर) के घोल से पौध रोपण से पूर्व उपचारित कर लेना चाहिए।
(iv) जीवाणु मृदु विगलन _ इस रोग में कंद के ऊपरी एक या दो छिलके सड़ जाते हैं। सड़े भाग से बदबू आती है। बाद में सड़न और बढ़ जाती है। इस रोग के नियंत्रण के लिए प्याज को अच्छी प्रकार सुखाकर, ऊपरी छिलकों की छंटाई करके रखना चाहिए। प्याज को हवादार तथा कम नमी वाले भण्डारों में रखना चाहिए।
◆ प्याज की खुदाई तथा उपज_ किसान भाइयों जब प्याज के पौधों की पत्तियां सूखकर नीचे गिरने लगे लेकिन पूरी तरह से सूखी न हो बल्कि उनका लगभग 70% भाग सूख चुका हो तो समझना चाहिये कि प्याज पककर तैयार हो गई है। ऐसी अवस्था में प्याज को खुर्पी की मदद से खोद लिया जाता है। प्याज को शीघ्र पकाने के लिए कभी-कभी प्याज की पत्तियों को तोड़कर नीचे झुका दिया जाता है जिससे पत्तियां शीघ्र सूख जाती हैं और प्याज शीघ्र पक जाती है। किसान भाइयों प्याज की फसल रोपाई के लगभग 140-150 दिन बाद पककर तैयार हो जाती है।
◆ प्याज की प्रति हेक्टेयर उपज 200 से 250 कुन्तल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो जाती है। हरी प्याज 60-70 कुन्तल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है।
◆ प्याज को सुखाना तथा भण्डारण – किसान भाइयों खुदाई के पश्चात प्याज को छाया में तथा किसी हवादार स्थान पर सुखाया जाता है। खुदाई के पश्चात प्याज को सीधी धूप तथा वर्षा से बचाना आवश्यक होता है। इस प्रकार 2-3 सप्ताह तक सुखाई गई प्याज का भण्डारण हवादार गोदामों में लकड़ी के खुले बक्सों में पतली तह में फैलाकर किया जाता है।