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महत्व – भारतवर्ष के परिपेक्ष में ज्वार की खेती का बहुत महत्व है। हमारे देश में ज्वार मनुष्य तथा पशुओं का भोजन है। गरीब मनुष्य ज्वार के दानों की रोटियां बना कर खाते हैं जबकि पशु हरे चारे के रूप में खाते हैं। ज्वार के हरे पौधों को चरी के नाम से जानते हैं जो पशुओं का पौष्टिक भोजन होता है। इसके अतिरिक्त किसान ज्वार की फसल को पकने के बाद इसके दानों को अलग कर लेता है तथा सूखे हुए पौधे (कड़वी) को सुरक्षित रख लेता है जिसे आवश्यकतानुसार शरद ऋतु में पशुओं को खिलाता है। साइलेज बनाकर भी इसका उपयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त ज्वार का प्रयोग एल्कोहॉल बनाने में भी किया जाता है।

                                     ★ जलवायु ★

किसान भाइयों ज्वार की खेती के लिए नम जलवायु की आवश्यकता होती है इसकी वृद्धि के लिए 30℃ से 35℃ का ताप उपयुक्त माना जाता है तथा जिन क्षेत्रों में 60 सेमी. से 110 सेमी. तक वर्षा होती है वहां पर इसकी खेती अच्छी होती है।

★ उन्नत जातियाँ ★

(i) दाने के लिए-

● ज्वार की देसी जातियाँ – किसान भाइयों ज्वार की कई उन्नतशील देसी जातियों में से निम्नलिखित जातियाँ मुख्य हैं-

● वर्षा – इस जाति की ज्वार बुंदेलखंड को छोड़कर शेष उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त मानी जाती है। यह दो दनिया ज्वार है यह लगभग 130 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इसके दाने की उपज 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा सूखी कड़वी की उपज 65 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। इसका रंग पीला होता है।

● टाइप 22 ;- यह ज्वार मध्य उत्तर प्रदेश के लिए अधिक उपयुक्त है। यह दो दनिया ज्वार है। यह लगभग 140 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इसके दाने के उपज 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा सूखी कड़वी के उपज 80 से 90 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। इसका रंग सफेद होता है।

● मऊ टा-1_ इस जाति की ज्वार बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए उपयुक्त मानी जाती है। एक दनिया ज्वार है। यह लगभग 140 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इस ज्वार के दाने के उपज 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा सूखी कड़वी की उपज लगभग 75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। इसके भुट्टे लंबे और तिकोने होते हैं तथा इनका रंग दूधिया होता है।

● हंगरी ज्वार _ यह ज्वार की छोटी जाति है इसकी दाने और चारे की अच्छी पैदावार होती है। यह कम समय में पकने वाली दो दाने वाली फसल है।

◆ ज्वार की संकर जातियां – मुख्य संकर जातियां निम्नलिखित हैं-

सी.एस. एच.-01 _ इस जाति की ज्वार मध्यम वर्ग की भूमि में औसत वर्षा और संचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त मानी जाती है। यह 100 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इसकी दाने की उपज सिंचित क्षेत्र में लगभग 45 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तथा सूखी कड़वी लगभग 72 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है। इसके दाने का रंग क्रीमी सफेद होता है सी या जाति मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त मानी जाती है।

सी.एस.एच. _ यह जाति मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त मानी जाती है। यह 120-122 दिन में पक जाती है। इसकी दाने की पैदावार लगभग 35 से 36 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक होती है।

अन्य उन्नत जातियाँ – ज्वार की अन्य जातियाँ अग्रलिखित हैं-

सी.एस.वी.( स्वर्ण)_ इस जाति की ज्वार उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में उगाई जाती है। इसकी बुवाई अगेती की जाती है तथा मिलवां फसल के लिए उपयुक्त होती है। इसकी पत्तियों का फैलाव कम और ऊपर की दिशा में उठी रहती हैं। इसकी फसल 105 से 110 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इसके दानों की उपज 35 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा कड़वी की उपज 60 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

• सी.एस.वी.-2,

• सी.एस.वी.-3,

• सी.एस.वी.-6,

                                  ★ भूमि (Soil) ★

भारतवर्ष में ज्वार की खेती विभिन्न प्रकार की भूमियों में की जाती है परंतु फिर भी इसके लिए दोमट, बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है, वैसे यह काली मिट्टी में भी उगाई जाती है। इसकी फसल के लिए भूमि से जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।

                                    ★ खेत की तैयारी ★

ज्वार के लिए खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से कर देनी चाहिए। इसके बाद 2-3 जूतियां देशी हल से करनी चाहिए जिससे जमीन भुरभुरी हो जाये। भूमि में अंतिम जुताई के समय 20-30 किग्रा प्रति हैक्टेयर, बी.एच.सी. 10% का चूर्ण खेत में मिला देना चाहिए जिससे फसल पर दीमक का प्रभाव ना हो सके।

                             ★ बुवाई का समय ★

ज्वार की फसल की बुवाई का समय निम्नलिखित हैं-

● चारे के लिए _ चारे के लिए ज्वार की बुवाई मई-जून में की जाती है।

● दाने के लिए_ फसलें देसी जातियों की बुवाई 25 जून से 15 जुलाई तक की जाती है। संकर तथा संकुल जातियों की बुवाई 1 जुलाई से 15 जुलाई तक करते हैं।

                               ★ बीज की मात्रा

बीज की मात्रा बीच क्या कर घूम में नमी बीच की शुद्धता बीज के अंकुरण क्षमता तथा बीज बोने की विधि आदि कई कारणों पर निर्भर करता है शुद्ध बीच का निम्नलिखित मात्रा पर्याप्त होती है

ने के लिए 12 से 15 किग्रा प्रति हेक्टेयर

चारे के लिए 30 से 40 किग्रा प्रति हेक्टेयर

                                 ★ बीजोपचार ★

बीज को बोने से पूर्व थायरम के 2.5 ग्राम 1 किग्रा बीज को उपचारित करके बनाते हैं जिससे अंकुरण के समय पौधों पर किसी बीमारी का प्रकोप ना हो सके

                                 ★ खाद व उर्वरक ★

• देसी जातियों के लिए _ 40 से 50 किग्रा नाइट्रोजन 25 से 30 किग्रा फास्फोरस तथा 20 किलोग्राम पोटाश को प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में डालना चाहिए

• संकर जातियों के लिए _100 से 120 किग्रा नाइट्रोजन, 55-60 किग्रा फास्फोरस, तथा 40 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर सिंचित क्षेत्रों में देनी चाहिए। असिंचित क्षेत्रों में इसकी मात्रा को नमी के आधार पर कम कर देना चाहिए।

• चारे वाली फसलों में_ 60-70 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा फास्फोरस तथा 40 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर

भूमि डालना चाहिए।

• नाइट्रोजन के आधी मात्रा तथा फास्फोरस, पोटाश की कुल मात्रा को एक साथ मिलाकर मिश्रण तैयार करके बीज वाले कूँड़ के पास दूसरा खाली कूँड़ बनाकर उसमें डालनी चाहिए यह खाद बीज वाले कूँड़ से लगभग 4-5 सेेमी गहरा होना चाहिए। नाइट्रोजन

की शेष मात्रा को एक मास बाद खड़ी फसल में देनी चाहिए।

                          ★ सिंचाई तथा जल निकास ★

मई के महीने में चारे के लिए बोई गई फसल में वर्षा होने तक 15-20 दिन के अंतर से सिंचाई करनी चाहिए। वर्षा होने के बाद भी यदि समय से वर्षा न हो तो फसल की सिंचाई कर देना चाहिए। जब फसल में बालियां निकलें तथा दाने बनने लगें तो भूमि में पर्याप्त मात्रा में नमी रहनी चाहिए।

• किसान भाइयों जिन क्षेत्रों में अधिक वर्षा हो जाए और खेतों में पानी भर जाए तो खेतों से पानी के निकास की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए।

                ★ निराई-गुड़ाई तथा खरपतवार नियंत्रण ★

खेत में खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए जब फसल छोटी हो तो 2-3 बार उसकी निराई-गुड़ाई कर देनी चाहिए तथा खरपतवार खेत में न उगे इसके लिए खेत में बुवाई के 2 दिन बाद बीज के अंकुरण से पूर्व एट्राजीन 1.5 किग्रा मात्रा लेकर उसे 1,000 लीटर जल में घोलकर एक हेक्टेयर जमीन में छिड़काव कर देना चाहिए।

                         ★ रोग नियंत्रण ★

◆ भुट्टो का कंडुआ रोग _ यह रोग भुट्टे के निकलते ही दिखाई देने लगता है। इस रोग से पूरी पुष्प शाखा काली हो जाती है तथा इसमें काले रंग के जीवाणु पाये जाते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए रोगी पौधे को काट कर जला देना चाहिए

◆ दाने का कंडुआ रोग _ इस रोग को ज्वार का आवृत्त कन्डुआ भी कहते हैं। यह बीमारी दानों में होती है। इस बीमारी में दाने फूल कर बड़े हो जाते हैं तथा इसके अंदर काला चूर्ण भरा होता है। यह बीमारी बीजों के द्वारा फैलती है, अतः बुवाई से पहले बीज को 3 ग्राम कैप्टान से एक किग्रा बीज को उपचारित करते हैं।

◆ ज्वार की गेरुई (रतुआ) या किट्ट बीमारी _ इस बीमारी से ग्रस्त पौधों की पत्तियों पर लाल तथा बैंगनी रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जिससे पत्तियां सूख जाती हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए जिनेब दवाई का 0.2% प्रतिशत का घोल फसल पर छिड़कना चाहिए।

◆ मूल विगलन रोग _ यह रोग फफूंदी के द्वारा लगता है। इस रोग के प्रभाव से पहले पत्तियां मुरझाने लगती हैं तथा पत्तियों का ऊपरी भाग पीला पड़ने लगता है। अन्त में पत्तियां सूखकर गिर जाती हैं तथा पौधा मर जाता है। इसकी रोकथाम के लिए बीज को उपचारित करके बोना चाहिए तथा रोगरोधी जाति की फसले बोनी चाहिए।

◆ तना विगलन रोग _ यह फफूंदी जनित रोग है। इस से पौधे का तना खोखला हो जाता है जिससे पौधा गिर जाता है। इसकी रोकथाम के लिए फसल बोने से पूर्व फफूंदी रोधी दवा मिट्टी में मिलानी चाहिए तथा रोग रोधी फसल उगानी चाहिए।

                        ★ कीट नियंत्रण ★

◆ तना छेदक _ यह कीट फसल को बहुत हानि पहुंचाता है। इसकी गिडारे पौधे के तने में घुसकर तने को अंदर ही अंदर खाकर खोखला बना देती हैं। जिससे पौधे की गोभ सूख जाती है। इसकी रोकथाम के लिए इंडोसल्फान-35 ई.सी. की 1.5 लीटर को 800 लीटर पानी में घोलकर एक हैक्टेयर फसल पर छिड़काव करना चाहिए।

◆ तना मक्खी _ यह कीट पौधों के उगते ही लग जाता है। इसकी गिडारे पौधों की गोफ को काट देती हैं जिससे पौधा सूख जाता है। इस कीट की रोकथाम के लिए 1.0 लीटर मैटासिस्टाक्स को 800 लीटर पानी में घोलकर पौधे जमने के 5-6 दिन बाद ही प्रति हेक्टेयर में छिड़क देना चाहिए।

                          ★ देखभाल ★

किसान भाइयों जब ज्वार की फसल में भुट्टे निकल आए तो उन्हें पक्षियों तथा अन्य जंगली पशुओं से बचाने के लिए रखवाली करनी चाहिए अन्यथा फसल की उपज में बहुत हानि हो जाती है।

★ कटाई ★

(i) चारे के लिए ज्वार की कटाई उस समय करनी चाहिए जब फसल में फूल निकल आयें।

(ii) दाने के लिए ज्वार की फसल 100 से 130 दिन में पककर तैयार हो जाती है। जब बालियों में दाने पड़ जाए तभी फसल को काटना चाहिए।

                               ★ उपज (Yield) ★

हमारे देश में देसी ज्वार की औसत पैदावार 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर निकलती है तथा संकर जातियों की 35 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा चारे की उपज 350 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।