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आज हम बात करेंगे चमेली की खेती के बारे में

◆महत्व _ किसान भाइयों सुगंधित पुष्पों में चमेली के पुष्प का अपना अनोखा ही महत्व है। चमेली की कुल मिलाकर 20 प्रजातियां हैं, जो कि संसार के विभिन्न भागों में पाई जाती हैं। इसके फूलों का प्रयोग मंदिरों में मूर्तियों को अर्पित करने हेतु मालाओं के रूप में, स्त्रियों के बालों को सुगंधित व सुशोभित करने तथा इत्र के निर्माण हेतु किया जाता है। शहरों के निकट बड़े पैमाने पर इसकी खेती की जाती है जिससे कृषक अच्छा लाभ उठाते हैं। ऊष्ण व उपोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में इसकी खेती आसानी से की जा सकती है। दक्षिणी भारत में तो इसके फूल लगभग आठ माह तक वर्ष में उपलब्ध होते रहते हैं, जबकि उत्तरी भारत में चार माह ही उपलब्ध होते हैं।

 

◆ जलवायु _किसान भाइयों यह एक उपोष्ण जलवायु का पौधा है। इसकी खेती ऊष्ण व नम जलवायु में सबसे अच्छी होती है। साधारण दशाओं में ऊष्ण व उपोष्ण जलवायु इसके लिए उत्तम समझी जाती है। इसकी कुछ जातियां शीतोष्ण जलवायु में भी आसानी से उगाई जा सकती हैं। इसके पौधों की उचित वृद्धि के लिए 24℃-32℃ तापमान सबसे उत्तम रहता है।

 

◆ भूमि और उसकी तैयारी _किसान भाइयों चमेली की खेती दोमट भूमि जिसमें जीवांश पर्याप्त मात्रा में हो, सिंचाई व जल निकास के उचित साधन हो व भूमि में किसी तरह की कड़ी सतह न हो, सबसे उत्तम समझी जाती है। भूमि की पहली खुदाई 50 से 60 सेमी गहरी करें और उसे लगभग 1 सप्ताह के लिए खुला छोड़ दें ताकि सूर्य का प्रकाश आसानी से जमीन के नीचे की सतह में भी पहुंच जाय। इसी तरह से बहुवर्षीय खरपतवारों की जड़े भी सूखकर समाप्त हो जाती हैं। बाद में तीन-चार गुड़ाई करके भूमि को समतल बना लें। भूमि की तैयारी के समय पुरानी फसलों के अवशेषों को इकट्ठा करके जला दें। इसी समय 300 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी खाद भी मिला दें और भूमि को पूर्णतया समतल कर दें।

 

◆ चमेली की विभिन्न जातियां निम्नलिखित है_

(i) जैसमिनस क्लोफाइलम – इसकी पत्तियां कुछ पीलापन लिए हुए हरे रंग की होती हैं। पौधे चढ़ने वाला, झाड़ीनुमा होते हैं जिसे सहारे की आवश्यकता होती है। इसके पुष्प लगभग वर्षभर उपलब्ध होते रहते हैं। प्रतिवर्ष प्रति पौधा लगभग 3 से 4 किलोग्राम फूल मिलते हैं। पौधों की वृद्धि एवं फूलों की पैदावार ऊष्ण जलवायु में अच्छी होती है। फूल आकार में छोटे सफेद व खुशबूदार होते हैं

 

(ii) जैसमिनस फेक्सिल – यह जाति उपरोक्त प्रजाति से काफी मिलती-जुलती है। इसके फूल खुशबूदार होते हैं जो कि ग्रीष्मकाल में मनमोहक होते हैं। फूलों की औसत पैदावार प्रति पौधा प्रतिवर्ष 2 से 3 किलोग्राम होता है।

 

(iii) जैसमिनस पवलिसेंस_ इस जाति के पौधों पर हरे रंग की घनी पत्तियां होती हैं जिसके कारण इस जाति का प्रयोग बाड़ के लिए किया जाता है। पौधों को किसी तरह के सहारे की आवश्यकता नहीं होती है। फूल सफेद, खुशबूदार एवं गुच्छों में (तीस की संख्या में) शाखाओं के आखिरी सिरों पर लगते हैं। पौधों पर लगभग पूरे वर्ष फूल आते हैं जिसकी औसत पैदावार पति पौधा प्रतिवर्ष 500 ग्राम से एक किलोग्राम तक होती है।

 

(iv) जैसमिनस रिजिडम _ इस जाति के पुष्प मध्यम आकार के सुगंधित तथा वर्षभर फूलते हैं। फूलों के सिरों पर हल्का गुलाबी रंग होता है। इसकी औसत पैदावार प्रति पौधा प्रतिवर्ष 1 से 1.5 किलोग्राम है। इसका पौधा चढ़ने वाला होता है जिसे सहारे की आवश्यकता होती है। पत्तियां देखने में काफी सुंदर लगती हैं।

 

(v) जैसमिनस एरीकूलाटम _ इस जाति की खेती बड़े पैमाने पर दक्षिणी भारत में की जाती है। इसके फूलों को इत्र बनाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। फूल सफेद, छोटे व खुशबूदार होते हैं। पत्तियां हरी व देखने में सुंदर होती हैं। इसका पौधा मध्यम ऊंचाई का झाड़ीनुमा होता है।

 

◆ प्रसारण;- चमेली जाति के पौधों का प्रसारण वानस्पतिक विधि द्वारा ही किया जाता है जिसकी दो निम्न मुख्य विधियां हैं-

 

◆ कर्तन द्वारा _ एक वर्ष पुरानी शाखाओं से लगभग 15-20 सेमी आकार की कर्तनें तैयार कर ली जाती हैं। तैयार कर्तनों को 30 x 30 सेमी की दूरी पर वर्षा ऋतु में पौधशाला में लगा दिया जाता है। इनको लगाने के तुरंत हल्की-सी सिंचाई कर देते हैं। कर्तन लगाने के तीन माह बाद पौधे तैयार हो जाते हैं।

 

◆ लेयरिंग द्वारा_ जैसमिनस एरीकूलाटम और जैसमिनस का प्रसारण लेयरिंग द्वारा ही किया जाता है। जून-जुलाई के महीनों में पौधों की टहनियों को जमीन में दबा दिया जाता है। लगभग तीन माह में पौधा बनकर तैयार हो जाता है जिसको मुख्य पौधे से काटकर अलग कर दिया जाता है।

 

 

◆पौधे लगाना _ पौध लगाने का समय उत्तरी भारत में जून-जुलाई है। दक्षिणी भारत में वर्ष के किसी भी माह में लगाया जा सकता है। पौधे से पौधे की दूरी तथा कतार से कतार की दूरी किस्म पर निर्भर करती है। यह दूरी 1 मीटर से लेकर 1.5 मीटर तक रखी जा सकती है।

 

◆खाद एवं उर्वरक _ 300 से 400 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद को खेत की तैयारी के समय ही जमीन में मिला देना चाहिए। जब पौधों पर फूल आना शुरू हो जाए तो उस समय उर्वरक देना अति आवश्यक है। उर्वरकों की मात्रा, किस्म, भूमि व सिंचाई के साधनों पर निर्भर करती हैं। साधारणत: निम्न उर्वरक प्रतिवर्ष प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए-

• यूरिया – 200 किलोग्राम

• सिंगल सुपर फास्फेट – 500 किलोग्राम

• म्यूरेट ऑफ पोटाश – 125 किलोग्राम।

 

• किसान भाइयों उपरोक्त उर्वरकों का मिश्रण बनाकर फरवरी, मई व सितंबर के महीनों में पौधों के चारों तरफ खुदाई करके 15 सेमी गहराई तक मिला देना चाहिए। उर्वरक देते समय यह ध्यान देना चाहिए कि भूमि में नमी पर्याप्त मात्रा में हो अन्यथा पौधों पर इसका कुप्रभाव पड़ता है।

 

◆ निकाई तथा गुड़ई_ अच्छे फूल प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि पौधों के चारों तरफ खरपतवार न हों। समय-समय पर पौधों के चारों तरफ गुड़ाई करनी चाहिए। पौधों के पास जब और जैसे ही खरपतवार दिखाई दें उन्हें तुरन्त निकाई करके निकाल देना चाहिए। पौधों के चारों तरफ 30 सेमी जगह छोड़कर फावड़े से खुदाई करें। वर्ष में कम-से-कम तीन खुदाई करना अति आवश्यक है, इससे पौधों की वृद्धि अच्छी होती है।

 

 

◆सिंचाई _किसान भाइयों चमेली जाति के पौधों में अधिक सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। सिंचाई की संख्या जमीन, किस्म व जलवायु पर निर्भर करती है। साधारणत: ग्रीष्मकाल में 1 सप्ताह के अंतर से और शीतकाल में 2 सप्ताह के अंतर से सिंचाई करते रहना चाहिए। बरसात में सिंचाइयों की आवश्यकता नहीं होती है। फूल आने की समय यदि पानी की कमी हो जाती है तो फूलों की पैदावार में कमी आ जाती है और साथ ही सुगंध पर भी कुप्रभाव पड़ता है। अतः इस अवस्था पर सिंचाई अवश्य कर देनी चाहिए।

 

◆ कटाई-छँटाई _ किसान भाइयों जिस समय फूल आना समाप्त हो जाय उस समय से रोगग्रस्त सूखी तथा उन शाखाओं को जो दूसरी शाखाओं की वृद्धि पर कुप्रभाव डालती हैं, काट देना चाहिए। कभी-कभी जब पौधे पुराने हो जाते हैं और फूलों की पैदावार भी कम हो जाती है तो उस समय ऐसे पौधों को जमीन की सतह से 15 सेमी की ऊंचाई से काट देते हैं। इसके बाद इन पौधों के चारों तरफ खुदाई करके गोबर की सड़ी खाद मिट्टी में मिला देते हैं तथा पानी दे देते हैं। इससे जो नई शाखाएं निकलती हैं उनमें से भी कुछ स्वास्थ शाखाओं को छोड़कर शेष शाखाओं को काट देते हैं। इस तरह स्वस्थ पौधों की प्राप्ति हो जाती है और उनसे उत्तम पैदावार मिलती है।

 

 

◆ फूलों की चुनाई _पौधा लगाने के लगभग दस माह बाद फूल आना प्रारंभ हो जाता है, लेकिन कुछ जातियों में फूल पूरे वर्ष उपलब्ध रहते हैं। अधिकांश जातियों में फूल आने का समय मार्च से अक्टूबर तक रहता है। फूल सुबह सूर्य निकलने से पहले ही तोड़े जायें तो काफी अच्छा रहता है अन्यथा इसकी सुगंध पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। यदि क्षेत्र बहुत अधिक हो तो फूलों की तुड़ाई सायं 4 बजे के बाद से भी शुरू की जाती है और तोड़े गये फूल रात को खुले स्थान पर रखे जा सकते हैं। आवश्यकतानुसार इन फूलों पर पानी भी छिड़कते रहना चाहिए।

 

◆ कीट एवं बीमारियां _चमेली के पौधों पर माहू माहू, माकटूस, बडवम आदि कीटों का प्रकोप होता है। इसकी रोकथाम के लिए थायोडान नमक कीटनाशक दवा का 0.20% डायथेन एवं कवकनाशी दवा का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।