गेरुई- जिस प्रकार लोहे पर जंग लगा हुआ नजर आता है, उसी प्रकार गेहूं पर गेरुई का प्रकोप होता है।
• गेहूं में तीन प्रकार की गेरुई लगती हैं।
1-पीली गेरुई:- इस रोग के लक्षण पत्तियों पर धारियों में पीले धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं। पत्तियों पर छोटे-छोटे हल्के पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं, जो रोग की अंतिम अवस्था में काले पड़ जाते हैं। ये धब्बे रोग के अधिक बढ़ने पर तने और बालियों पर भी पहुंच जाते हैं। रोग अधिक ठंडे और नम वातावरण में फैलता है।
• रोग से प्रभावित पौधे की बालियों में जो दाने होते हैं, वे हल्के तथा कमजोर होते हैं। जब रोग बालियों पर पहुंच जाते हैं तो बाली में दाने नहीं बन पाते हैं।
2. भूरी गेरुई):- इस रोग से भी पत्तियों पर धब्बे बन जाते हैं। जिनका रंग भूरा नारंगी होता है, यह धब्बे बाद में काले हो जाते हैं और बिखरी हुई अवस्था में रहते हैं। रोग के अधिक प्रकोप के कारण ये धब्बे तने पर भी बन जाते हैं।
• यह रोग दिसंबर के अंतिम सप्ताह में दिखाई देता है जब फसल 5 या 6 सप्ताह की हो जाती है। इसके लिए 15°C से 25°C का तापमान अनुकूल है।
3. काली गेरुई):- इसका प्रकोप देर से बोई गई फसल पर अधिक होता है और यह गर्म और नम वातावरण (20°C से 30°C) में अधिक पनपता है।
• साधारणतया यह मार्च के प्रथम सप्ताह में देखा जाता है। इसका प्रकोप तने पर होता है और तने के ऊपर लंबे लाल-भूरे धब्बे बन जाते हैं। जो रोग के अधिक प्रकोप में पौधों के अन्य भागों पर भी देखे जाते हैं।
रोकथाम कैसे करें?
01.गेरुई की रोकथाम के लिए गेरुई निरोधक किस्मों को उगाना चाहिए- कुंदन, PBW 343, राज 3077 आदि।
02. कार्बाडाजिम (बाविस्टिन) 0.1% घोल का धब्बे देखते ही छिड़काव करें।
03. इंडोफिल एम-45 नामक दवाई का छिड़काव 0.2% के हिसाब से करना चाहिए। इसके लिये 1,000 लीटर पानी में 2 kg दवाई डालनी चाहिए। जनवरी के अंतिम या फरवरी के शुरू के सप्ताह में छिड़काव करना चाहिए। 10 या 15 दिन के अंतराल पर 3 या 4 छिड़काव करने पड़ते हैं।