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आज हम बात करेंगे गुलाब की खेती के बारे में।
• गुलाब की खेती करके किसान भाई अच्छा लाभ कमा सकते हैं। फूलों की बढ़ती मांग और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में बड़ी फूल मंडी उपलब्ध होने से इनकी बिक्री की कोई समस्या नहीं है। जैसे फलों का राजा आम है तो फूलों की बेगम गुलाब है। गुलाब का रंग व सुगंध सबके मन को मोह लेते हैं। गुलाब के फूलों से गुलकंद, गुलाब जल, तेल, इत्र, जैम, जेली पेय पदार्थ बनाए जाते हैं। फूलों की डंडी व गुलदस्ते बड़े पसंद किये जाते हैं। नवीनतम तकनीक से गुलाब की अच्छी पैदावार ली जा सकती है
◆ जलवायु – किसान भाइयों गुलाब की विभिन्न किस्में विभिन्न प्रकार की जलवायु में उगाई जाती हैं। वैसे इसका पौधा समशीतोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों से लेकर उष्ण जलवायु वाली फसलों तक उगाया जा सकता है। शीतोष्ण जलवायु के लिए कुछ विशेष किस्में हैं जिन्हें उष्ण जलवायु में नहीं उगाया जा सकता है इसके पौधे अधिक ताप एवं लू को बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। अधिक तापक्रम से फूलों का रंग फीका पड़ जाता है तथा पंखुड़ियां शीघ्र ही बिखर जाती हैं। इसकी सफल खेती के लिए 15°C-17°C तापमान की आवश्यकता होती है।
◆ भूमि का चुनाव – किसान भाइयों गुलाब की खेती किसी भी भूमि में आसानी से की जा सकती है, लेकिन अच्छी किस्म के पुष्प प्राप्त करने के लिए दोमट भूमि जिसमें जीवांश की पर्याप्त मात्रा हो, सिंचाई व जल निकास की उचित व्यवस्था हो तथा भूमि में किसी तरह की कड़ी सतह न हो, सबसे उत्तम रहती है। भूमि का p.h. मान 6-7 के बीच में होना चाहिए। सुन्दर फूल प्राप्त करने के लिए खुले सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है। मकान तथा वृक्षों की छाया का इसकी वृद्धि तथा सुन्दरता पर प्रभाव पड़ता है। अधिक नमी वाले क्षेत्रों में इस पर तरह-तरह की बीमारियां लगती हैं। तेज हवाओं का प्रभाव भी इसके फलों पर पड़ता है। गुलाब के लिए जमीन का चुनाव करते समय इन बातों का ध्यान रखना अति आवश्यक है।
★ गुलाब की जातियाँ★
गुलाब की कुछ प्रमुख प्रजातियाँ इस प्रकार हैं-
◆ हाइब्रिड परपेचुअल – यह बड़े आकार के फूलवाला मिश्रित समूह है। इस समूह की जातियों के फूलों का रंग गहरा लाल कीरमिजी तथा कभी-कभी गुलाबी एवं सफेद होता है। इसके फूलों की बनावट पातगोभी जैसी होती है तथा इसमें खुशबू आती है। भारतवर्ष में इस समूह की जातियाँ शरदकाल में फूलती हैं। तथा दोमट भूमि में अच्छी तरह उगाई जाती हैं। इस समूह की निम्न जातियाँ हैं-
(i) ब्लैक मुगल – इस जाति के फूलों का रंग गहरा किरमिजी होता है।
(ii) ग्रांड मुगल – इस जाति के फूलों का रंग गहरा चमकीला किरमिजी होता है।
(iii) हफ डिक्सन – इस जाति के फूलों का रंग गहरा लाल होता है।
◆ टी रोजेज – इसकी उत्पत्ति चीन से हुई है तथा इस पर बड़ी व मोटी पंखुड़ियाँ आती हैं। फूल साधारणत: हल्के, गुलाबी, पीले व क्रीमी रंग के आते हैं। इसकी वृद्धि बहुत होती है तथा अच्छे फूल पार्श्विक शाखाओं पर आते हैं।इस समूह में निम्न जातियाँ हैं-
• अलैक्जेण्डर – इस जाति के फूलों का रंग पीला होता है व अधिक वृद्धि वाले होते हैं।
• दी ब्रिज – इस जाति के फूलों का रंग हल्का गुलाबी होता है।
◆ चाइना रोजेज – इसके पौधे कठोर, लगातार फूलने एवं सहारे से चढ़ने वाले होते हैं। फूल छोटे अनियमित आकार वाले लाल गुलाबी एवं सफेद रंग के होते हैं। इस समूह की जातियां निन्नलिखित हैं-
(i) फेअर क्वीन – इस जाति के फूलों का रंग गुलाबी होता है
(ii) मैडम ब्रीऔन – जाति के फूलों का रंग गुलाबी होता है
◆ परनीसियाना रोजेज – इस समूह के फूलों का रंग पीला तथा नारंगी होता है। पत्तियां गहरे हरे रंग, व चमकीली होती हैं। पौधों पर चूर्णी फफूँदी का प्रभाव नहीं होता है, लेकिन काले धब्बे का प्रभाव काफी होता है। यह समूह ठण्डे स्थानों में आसानी से उगाए जा सकते हैं। इस समूह के निम्न उन्नतशील जातियाँ हैं-
• औटम – इस जाति के फूलों का रंग नारंगी एवं लाल होता है।
• चैरी – इस जाति के फूलों का रंग गुलाबी होता है।
• गोल्डन ग्लीम – इस जाति के फूलों का रंग पीला होता है।
◆ मोहिनी – इस जाति के फूलों का रंग पीला होता है।
◆ हंस – इस जाति के फूलों का रंग सफेद होता है।
◆ क्यारियों की तैयारी – मई-जून के माह में 50 से 60 सेमी. गहरी जमीन की खुदाई करें ताकि नीचे की मिट्टी को भी सूर्य का तेज प्रकाश मिल जाये। 10-15 दिन खुली जमीन छोड़ने के पश्चात इसकी 3-4 बार गुड़ाई करें। यदि क्षेत्र अधिक है तो यह कार्य ट्रैक्टर द्वारा भी किया जा सकता है। 300 से 400 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी खाद, 20-25 क्विंटल सिंगल सुपर फास्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलायें। क्यारियों की तैयारी के समय अन्य फसलों के अवशेष इकट्ठा करके जला दें।
◆ पौधे लगाना – मैदानी क्षेत्रों में गुलाब लगाने का उपयुक्त समय 15 अक्टूबर से 15 दिसंबर है। कुछ क्षेत्रों में इसके पौधे 15 जनवरी 15 मार्च तक भी लगाये जाते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में अक्टूबर मार्च तथा अप्रैल सबसे उत्तम समय है।
● पौधा लगाने की दूरी किस्म पर निर्भर करती है। छोटे एवं मध्यम ऊँचाई वाले गुलाबों के लिए 60-75 सेमी तथा बड़े गुलाबों के लिए 90-120 सेमी दूरी रखी जाती है। प्रत्येक किस्म को अलग-अलग क्यारियों में लगाना चाहिए। पौधे की पिण्डी के आकार का गड्ढा खोदकर पौधा लगा दिया जाता है तथा हल्की-सी सिंचाई कर दी जाती है। पौधा लगाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि निरोग एवं स्वस्थ पौधे ही लगाये जायें तथा कलिकायन किया हुआ भाग भूमि से 5 सेमी ऊंचा रखा जाये जिससे सम्मिलन को किसी प्रकार की हानि ना पहुंचे।
◆ खाद एवं उर्वरक – गुलाब के लिए उर्वरक अत्यंत आवश्यक है, लेकिन आवश्यकता से अधिक या कम मात्रा में देना दोनों ही हानिकारक हैं। अधिक मात्रा में देने पर वृद्धि अधिक होती है तथा फूल कम आते हैं और कम मात्रा में देने पर पौधों का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। इसलिए उर्वरक सही मात्रा में दिये जाने चाहिए। और पौधों की कटाई-छंटाई के बाद तथा वृद्धि से पहले दें। पहले पौधों के चारों तरफ गुड़ाई करें और फिर उर्वरक देकर हल्की-सी सिंचाई करते हैं। हालांकि उर्वरकों की मात्रा गुलाब की किस्म, भूमि व जलवायु पर निर्भर करती है, परंतु साधारणत: निम्नलिखित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए-
(i) यूरिया 250 – किलोग्राम
(ii) सिंगल सुपर फास्फेट 500 – किलोग्राम
(iii) म्यूरेट ऑफ पोटाश 120 – किलोग्राम
• उपरोक्त उर्वरकों की मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।
छिड़काव के रूप में उर्वरकों का प्रयोग – किसान भाई निम्न उर्वरकों का मिश्रण घोल के रूप में पौधों पर छिड़काव करें-
(i) यूरिया 30 ग्राम
(ii) अमोनियम फास्फेट 30 ग्राम
(iii) पोटेशियम फॉस्फेट 30 ग्राम।
• उपरोक्त मिश्रण की 30 ग्राम मात्रा को 10 लीटर पानी में घोलकर 10-15 दिन के अंतर से छिड़काव के रूप में प्रयोग कर सकते हैं।
◆ प्रसारण – किसान भाइयों गुलाब का प्रसारण अग्रलिखित तरीकों द्वारा किया जा सकता है-
01• बीज द्वारा – इस विधि द्वारा गुलाब का प्रसारण पौधों को बाढ़ या मूलवृंत के रूप में उगाने के लिए किया जाता है। इस विधि से तैयार किये गये पौधे मूलवृंत के लिए उत्तम समझे जाते हैं।
02• कर्तन द्वारा – देशी गुलाब जिसका प्रयोग अधिकांशत: मूलवृंत के रूप में किया जाता है। कुछ अधिक ओजस्वी गुलाब चढ़ने व रेंगने वाले गुलाब आदि इस विधि द्वारा आसानी से तैयार किए जा सकते हैं। पौधे की कटाई-छँटाई के समय स्वस्थ एवं निरोग शाखाएं चुन ली जाती हैं और फिर उनमें से 25 से 30 सेमी आकार की कर्तनें में तैयार कर ली जाती हैं।50 x 50 सेमी केे फासले पर दो-दो कर्तनें लगा देते हैं। किसान भाई कर्तन लगाानेे के बाद जमीन की सिंचाई करना अति आवश्यक है।
03• पौधों को अलग करके – वर्षा ऋतु में मुख्य तने के पास मिट्टी चढ़ा दी जाती है जिससे कुछ समय बाद पौधे आधार से निकलकर तैयार हो जाते हैं। उन पौधों को सावधानी से जड़ों के साथ मुख्य पौधों से हटाकर दूसरे स्थान पर लगा दिया जाता है।
04• कलिकायन द्वारा – यह एक सफल विधि है तथा अधिकांश किस्मों का प्रसारण इसी विधि द्वारा किया जाता है। यह क्रिया उस समय करनी चाहिए जब मूलवृंत तथा शाखाएं अधिक वृद्धि कर रहे हो क्योंकि ऐसी अवस्था में मूलवृंत का छिलका सरलतापूर्वक आसानी से अलग हो जाता है। यह
क्रिया सितंबर तथा मार्च के महीनों में करनी चाहिए।
• किसान भाइयों यदि कलियां बाहर भेजनी हों तो ऐसी शाखाओं की सभी पत्तियां हटा दी जाती हैं और शाखा के दोनों कटानों पर मोम की परत लगा देते हैं। ताकि शाखा का रस बाहर ना निकले व प्रकाश में सूखने न पाये। इसके बाद तैयार शाखाओं को नम मौस घास में लपेटकर पॉलिथीन पेपर के थेलों में बंद कर देते हैं।
• यदि इस क्रिया को करने के 10 दिन बाद तक कली हरी ही रहती है तो पूरी सफलता मिलती है। बाद में कली फूटना शुरु कर देती है।
◆ गुलाब की कटाई छँटाई – गुलाब की खेती में सबसे महत्वपूर्ण कृषि कार्य पौधों की कटाई- छँटाई ही है। नियमित रूप से कटाई छटाई किये गये पौधे देखने में स्वस्थ एवं सुंदर लगते हैं तथा उनसे सुंदर एवं उत्तम आकार वाले फूल प्राप्त होते हैं। वैसे तो अनावश्यक एवं रोग ग्रस्त शाखाओं को निकालना ही कटाई छटाई कहलाती है लेकिन गुलाब के संबंध में यह कहना उचित नहीं है। कटाई-छंंटाई का उद्देश्य निम्न समूह के जातियों के लिए भिन्न-भिन्न है वैसे गुलाब की कटाई छटाई के मुख्य उद्देश्य निम्न है-
01• उत्तम पुष्प प्राप्त करने के लिए स्वास्थ शाखाएं चुनना, जिससे उनको पर्याप्त भोज्य पदार्थ मिल सके व उत्तम पुष्प प्राप्त हो सके।
02• पाले से बचाने के लिए भी कटाई छँटाई आवश्यक होती है। कभी-कभी फरवरी-मार्च में जिस समय नई वृद्धि शुरू होती है उस समय पाले के बचाव के लिए भी यह क्रिया आवश्यक है।
03• पौधे के केंद्र में पर्याप्त हवा व प्रकाश पहुँचाने के लिए भी यह आवश्यक है कि समयानुसार पौधों की कटाई छँटाई की जाए।
◆ कटाई छँटाई का समय – उष्ण जलवायु वाले क्षेत्र में कटाई छँटाई का सबसे उत्तम शरद ऋतु माना जाता है, जबकि वर्षा समाप्त हो जाती है और शीतकाल शुरू हो जाता है। अधिकांश गुलाब उगाने वाले किसान 15 अक्टूबर के बाद इसकी कटाई छँटाई शुरू कर देते हैं ताकि बड़े दिन तक उनको पुष्प मिलना शुरू हो जाय। समुद्र तल से 2,000 मीटर ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जिस विशेष समय पर पुष्पों की आवश्यकता हो, उससे 60 से 65 दिन पूर्व कटाई छँटाई करें। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में गुलाब की कटाई छँटाई 20 अक्टूबर से 15 नवंबर तक करनी चाहिए।
• पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी कटाई-छँटाई का सबसे उत्तम समय मार्च के आखिरी सप्ताह से अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक होता है। उन क्षेत्रों में अक्टूबर-नवंबर में कटाई छँटाई नहीं की जाती है।
• भारतवर्ष के पश्चिमी भाग में जहां पर गुलाब की खेती बड़े पैमाने पर गुलाबजल बनाने के लिए की जाती है, इसकी कटाई-छँटाई जनवरी में की जाती है।
◆ कटाई-छँटाई के ढंग – गुलाब के पौधों की कटाई-छँटाई उस समय तक नहीं करनी चाहिए जब तक वे पूर्णत: तैयार ना हो जायेे। साधारणत: पौधे लगाने के एक वर्ष बाद ही यह क्रिया करनी चाहिए।
कटाई-छँटाई विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न रूपों में की जाती है, जिसका विवरण इस प्रकार है-
01• जड़ों की कटाई-छँटाई – जड़ों की कटाई-छँटाई उन क्षेत्रों में की जाती है जहां पर ठण्ड बहुत कम होती है और पौधों को आराम नहीं मिलता है, लेकिन जिन क्षेत्रों में शीत अधिक होता है वहां पर शीत की वजह से पौधों को आराम मिलता है व जड़ों की कटाई-छँटाई की आवश्यकता नहीं होती है।
जड़ों की कटाई-छँटाई के लिए पौधों के चारों तरफ 15 से 20 सेमी. गहरी नाली बना दी जाती है तथा जड़ों को एक या दो दिन के लिए खुला छोड़ देते हैं।किसान भाइयों इस क्रिया से निरोग व सुंदर शाखाएं मिलती हैं, जिन पर उत्तम आकार के पुष्प लगते हैं।
02• तनों की कटाई-छँटाई – समयानुसार रोगग्रस्त, पुरानी एवं अधिक घनी शाखाओं को उनके आधार से ही निकाल दें। इससे पौधों के केंद्र को पर्याप्त मात्रा में हवा व प्रकाश मिलेगा। चुनी गई शाखाओं की उचाई को ध्यान में रखते हुए कली से एक सेमी की ऊंचाई से काटते दें। काटते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि कट तिरछा ही लगाया जाय।
03• फूल तथा फलों की छँटाई – किसान भाइयों अच्छे आकार के सुंदर फूल प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि कुछ पुष्प कलियों को भी तोड़ दें। जिससे भोज्य पदार्थ केवल चुनी हुई पुष्प कलियाां ही प्राप्त कर सकें जिसके फलस्वरुप पुष्प उत्तम आकार व अच्छे रंग वाले ही मिलेंगे।
04• शाखाओं को दबाना – कुछ जातियाँ जिनके पौधे बहुत ही बड़े होते हैं, जैसे हिज मैजिस्टी, हफ डिक्सन आदि में यह क्रिया की जाती है। इस क्रिया में कुछ स्वस्थ शाखाओं को चुना जाता है। व अन्य शाखाओं को अनावश्यक समझकर आधार बिंदु से काट दिया जाता है। इन चुनी हुई शाखाओं को भूमि के समानांतर भूमि में दबा दिया जाता है। इन दबी हुई शाखाओं में उपलब्ध कलियों से नई स्वस्थ शाखाएं बनती हैं जिन पर सुंदर बड़े आकार के पुष्प बनते हैं। यह क्रिया फिर पुष्प बनी शाखाओं में अपनाई जाती है।
◆ सिंचाई – गुलाब के पौधों की वृद्धि एवं फूल आते समय अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। बरसात में गुलाब के पौधों को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। शुष्क मौसम में सप्ताह में एक या दो बार सिंचाई करनी चाहिए तथा शीतकाल में 10-15 दिन के अन्तर से सिंचाई करते रहना चाहिए। पौधों की कटाई-छँटाई के समय आवश्यक है कि पौधों में सिंचाई ना की जाय ताकि उनमें नई वृद्धि ना हो सके।
◆ निकाई गुड़ाई – गुलाब की क्यारियों में जब और जैसे ही खरपतवार दिखाई दे तुरंत निकाई करें। पौधों की कटाई-छँटाई के तुरंत बाद पौधों के चारों तरफ 15 सेमी. गहरी खुदाई करें। वर्ष में कुल 5-6 निकाई व दो
गुड़ाई की आवश्यकता होती है।
◆ कलियों को तोड़ना – किसान भाइयों अधिकांश गुलाब की जातियों में पुष्प कलिकाएं गुच्छों में बनती हैं। यदि सभी कलियां फूल बनने के लिए छोड़ दी जायें तो फूलों का आकार छोटा रह जाता है। इसलिए गुच्छे के मध्य वाली कली को छोड़कर शेष कलियां तोड़ देनी चाहिए ताकि अच्छे फल प्राप्त हो सके।
◆ विंटरिंग – विंटरिंग का मुख्य उद्देश्य कमजोर शाखाओं को स्वस्थ बनाना तथा अच्छे आकार के फूल प्राप्त करना होता है। इसलिए यह आवश्यक है कि इस क्रिया द्वारा गुलाब के पौधों को आराम दिया जाय। इस क्रिया से पौधे को स्वस्थ एवं सूर्य के प्रकाश की तीव्रता के अनुसार 10-15 दिन के लिए पानी रोक दिया जाता है व जड़ों के चारों तरफ से मिट्टी हटाकर उन्हें खोल देते हैं। इन्हें दो-तीन दिन तक खुला रखते हैं ताकि पत्तियां गिर जायें इसके बाद जमीन में खाद की उचित मात्रा मिलाकर भर देते हैं। और सिंचाई करते हैं, बाद में पौधों की कटाई-छँटाई कर देते हैं। इस तरह आने वाली शाखाएं व फूल उत्तम होते हैं।
★गुलाब में लगने वाले कीट व उनकी रोकथाम★
● दीमक – यह गुलाब को भारी हानि पहुंचाते हैं। इसके बचाव के लिए पौधों की खुदाई के समय 20 किलोग्राम थाइमेट कीटनाशक दवा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से भूमि में मिला दें।
● हरी मक्खी – यह कीट पुष्प की कोमल कलियों को खाकर समाप्त कर देता है। इसके बचाव के लिए थार्योडान नामक कीटनाशक दवा का 0.2% का घोल बनाकर छिड़काव करें।
● पत्ती खाने वाले कैटरपिलर – ये कैटरपिलर गुलाब की पत्तियां खाकर उन्हें नष्ट कर देते हैं। इसके बचाव के लिए रोगर नामक कीटनाशक दवा का 0.15% का घोल बनाकर छिड़काव करें।
• किसान भाइयों गुलाब के पौधों पर इन कीटों के अलावा कभी-कभी माहूं, थ्रिप्स व माइरस भी दिखाई पड़ते हैं। इसके बचाव के लिए मैटासिस्टाक नामक कीटनाशक दवा का 0.15% का घोल बनाकर छिड़काव करें।
★गुलाब में लगने वाली बीमारियां★
● मिल्ड्यू – इस बीमारी का प्रकोप गुलाब के पौधों पर होता है। इसके बचाव के लिए कैराथेन नमक फफूंदी नामक दवा का 0.1% का घोल बनाकर छिड़काव करें
● काला धब्बा मौसम में लगने वाला या प्रमुख रोग है जिसमें पत्तियों की ऊपरी सतह पर काले धब्बे पड़ जाते हैं और पत्तियां समय से पूर्व सूख कर गिर जाती हैं
● इस रोग से ग्रसित पौधों पर डाईथेन जेड-78 अथवा डाईथेन एम-45, 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से पानी के साथ कटाई-छँटाई के बाद 15 दिन के अंतराल पर 3-4 छिड़काव करें।