महत्व- अरहर एक दलहनी फसल है। जो खरीफ की फसल के साथ बोई जाती है।इसके दानों के ऊपर का छिलका पशुओं के खिलाने के काम आता है। इसकी हरी पत्तियां पशुओं के चारे के रूप में खिलाई जाती है तथा फसल के पकने पर इसकी लकड़ी ईधन के रूप में काम आती है। इसकी फसल से भूमि में उर्वरा शक्ति की वृद्धि होती है।
जलवायु )- अरहर की फसल को फलने फूलने के लिए गर्म तथा नम जलवायु की आवश्कता होती है। इसकी फसल 70 सेमी से 100 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जाती है।इसकी फसल में फूल आने पर शुष्क और गर्म वातावरण की आवश्यकता होती हैं अधिक वर्षा इस फसल के लिए हानिकारक होती है।
• भूमि)-अरहर की फसल के लिए दोमट तथा बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती हैं ।वैसे इसकी फसल कंकरीली भूमि में भी की जाती है। इसके लिए ढालू भूमि अच्छी रहती है जिसमें जल निकास की अच्छी व्यवस्था होती है।
• उन्नत जातियां)– किसान भाइयों अरहर की उन्नत जातियां अग्रलिखित हैं-
(i) प्रभात)- यह अरहर की जल्दी पकने वाली जाति है यह 110 से 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है इसके उपज लगभग 15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है।
(ii) आई. सी. पी. एल-151)-यह जाति भी जल्दीjighu पकने वाली है यह 130 से 135 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं इसकी उपज लगभग 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
(iii) पूसा-84- इस जाति को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है। इसके दाने भूरे रंग के होते हैं। यह 145 से 150 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसके दाने की उपज 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है।
(iv) पन्त A-120)-यह शीघ्र पकने वाली जाति है जिसकी फसल 120 से 125 दिन में पककर तैयार हो जाती है इसके दाने के उपज 18 से 20 कुंतल प्रति हैक्टेयर होती है।
• खेत की तैयारी)- खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से लगभग 15 सेमी गहरी करनी चाहिए। फिर दो से तीन जुताई देसी हल तथा कल्टीवेटर से करनी चाहिए।जमीन भुरभुरी हो जाए उसके बाद खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए।
• बुवाई का समय)- अरहर की फसल की बुवाई जून और जुलाई में की जाती है जिन स्थानों पर सिंचाई की व्यवस्था होती है वहां पलेवा करके जून के प्रथम पखवाड़े 1 से 15 तक बुवाई करनी चाहिए।
जिन क्षेत्र में सिंचाई की व्यवस्था नहीं है तथा वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता है वहां इसकी बुवाई जुलाई के प्रथम पखवाड़े 1 से 15 तक बुवाई कर देनी चाहिए।
• बीज की मात्रा तथा बीजोपचार)- अरहर का बीज निम्नलिखित मात्रा में बोया जाता है-
01. बीज की मात्रा-
(a) कम समय में पकने वाली जातियां 14 से 15 किग्रा प्रति हेक्टेयर।
(b) अधिक समय में पकने वाली जातियां 10 से 12 किग्रा प्रति हेक्टेयर।
02. बीजोपचार)-बीज को फफूंदी आदि से सुरक्षित करने के लिए बोने से पहले 2.5 ग्राम कैप्टान से 1 किग्रा बीज को उपचारित करके बोना चाहिए।
• बुवाई की विधि)- अरहर की बुवाई हाल के पीछे कूंडों में करनी चाहिए। कम समय में पकने वाली जातियों की पंक्तियों में लगभग 60 सेमी तथा देर से पकने वाली जातियों की पंक्तियों में लगभग 120 सेमी का अंतर होना चाहिए। तथा फसल बोने के बाद पौधों की छंटाई करके कम समय में पकने वाली फसल के पौधों के बीच 20 सेमी तथा अधिक समय में पकने वाली फसल के पौधों के बीच 30 सेमी का अंतर रखना चाहिए।
• खाद और उर्वरक की मात्रा- अरहर की फसल एक दलहनी फसल है जिसमें नाइट्रोजन की पूर्ति स्वयं पौधे कर लेते हैं। केवल थोड़ी नाइट्रोजन बुवाई के साथ देनी चाहिए। तथा कार्बनिक खाद फसल बोने से एक मास पहले भूमि में डालकर जुताई कर देनी चाहिए।
बुवाई के समय 20 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा फास्फोरस तथा 40 किग्रा पोटाश बुवाई के समय बीज वाले कूंड के साथ 5 सेमी दूर दूसरे कूंड में बीज से 5 सेमी गहराई कर देना चाहिए।
• सिंचाई तथा जल निकास)- जो फसलें पलेवा करके जून के मास में बोई जाती हैं। उनमें वर्षा होने से पूर्व आवश्यकता अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। तथा जब फसल पर फलियां आनी प्रारंभ हो जाए तो एक सिंचाई उस समय का देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त देर से पकने वाली फसल को पाले से बचाने के लिए दिसंबर जनवरी में सिंचाई करनी चाहिए। यदि वर्षा ऋतु में फसल में पानी भर जाता है और जमीन उसे सोख नहीं पाती है, तो ऐसी स्थिति में किसान भाई जल को अवश्य निकाल देना चाहिए।

 

• निराई गुड़ाई तथा खरपतवार नियंत्रण)- फसल में पहली निराई-गुड़ाई फसल बोने के 20 से 25 दिन बाद कर देनी चाहिए तथा अतिरिक्त पौधों को खेत से निकाल देना चाहिए। तथा दूसरी निराई-गुड़ाई फसल बोने के 40 से 45 दिन बाद करना चाहिए जिससे खेत के खरपतवार नष्ट हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त खरपतवारों को उगने से रोकने के लिए फसल बोने से पहले 1 किग्रा बेसालिन को 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव कर जुताई कर देते हैं।
• कटाई)- कम समय में पकने वाली अरहर की फसल अक्टूबर-नवंबर में पक जाती है तथा अधिक समय में पकने वाली फसल मार्च-अप्रैल में पक जाती है इसकी कटाई गड़ासे से की जाती है। अतः फसल को अधिक पकाकर नहीं काटना चाहिए ऐसा करने से फलियों के दाने झड़ जाते हैं।
• मिलवा फसल- किसान भाई अरहर की खेती अन्य फसलों को उगाकर अधिक लाभ कमा सकते हैं – ज्वार, बाजरा, उर्द, मूंगफली आदि के साथ मिलाकर बोते हैं।

 

• उपज)- अरहर की उपज उसकी जाति तथा अन्य कारकों पर निर्भर करती है आमतौर पर इसके दानों की उपज 12 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा लकड़ी 50 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

1 Comment

Jitendra · October 26, 2018 at 4:40 pm

फसलों की लाभकारी जानकारी धन्यवाद और नई जानकारी दे दीजिए

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