भारत संरचनात्मक दृष्टि से गांवों का देश है, और सभी ग्रामीण समुदायों में अधिक मात्रा में कृषि कार्य किया जाता है इसी लिए भारत को “भारत कृषि प्रधान देश” की संज्ञा भी मिली हुई है। लगभग 70% भारतीय किसान हैं। वह भारत देश की रीढ़ की हड्डी के समान है। खाद्य फसलों और तिलहन का उत्पादन करते हैं वह वाणिज्यिक फसलों के उत्पादक ही नही वह हमारे उद्योगों के लिए भी कुछ कच्चे माल का उत्पादन करते हैं इसलिए वह हमारे राष्ट्र के जीवन रक्त हैं।
● खेत में कार्य करते समय किसानों को होने वाले खतरें-
• खेती करने वाले किसानों को खेत में कई सारे खतरनाक जीव जंतुओं का सामना करना पड़ता है। खेत में काम करते समय बिच्छू, चींटियों, मधुमक्खियों, आदि के काटने का बहुत बड़ा खतरा रहता है।
• किसानों को भी बहुत भारी और बड़ी मशीनों के साथ काम करना पड़ता है इनसे चोट लगने पर किसान की मौत होने की संभावना रहती है।
● इतने खतरें उठाने के बाद भी इनकी स्थिति के बारे में जानते हैं आप ?
इनकी गरीबी पूरी दुनिया के लिए प्रसिद्ध है किसान को दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं हो पाता, उन्हें मोटे कपड़े का एक टुकड़ा नसीब नहीं हो पाता, अपने बच्चों को शिक्षा नहीं दे पाते।
● आखिर क्यों ?
01 जून से 10 जून तक होने वाले आंदोलन के बारे में जानकारी-
1 से 10 जून तक मध्य प्रदेश समेत देश के 22 राज्यों में किसान आंदोलन होगा। इस दौरान गांवों से शहर में फल, सब्जी, दूध नहीं आने देंगे। शहरवासियों के लिए हम गांवों में ही दुकानें, स्टॉल लगाकर फल, सब्जी व दूध बेचेंगे। यह बात राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा ने अपने ग्वालियर प्रवास के दौरान कही। शहर में वे 12 घंटे रुके और इस दौरान उन्होंने 10-10 के ग्रुप में शिवपुरी, भिंड,मुरैना, दतिया व ग्वालियर के 50 से अधिक कार्यकर्ताओं से बात कर किसान आंदोलन की रुपरेखा तय की।
● अंचल में संगठन कमजोर –
श्री शर्मा ने स्वीकारा कि अंचल में हमारा संगठन कमजोर है। मंदसौर व मालवा के अन्य 15 जिलों में आंदोलन का जो स्वरूप देखने को मिला था, वैसा अंचल में नहीं था।
• लेकिन इस बार आंदोलन का असर अंचल में भी दिखे, इसके लिए किसानों व दूधियों के संगठनों व उनके प्रमुखों से बात कर उन्हें आंदोलन में शामिल करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
राजनीतिक दलों को मंच नहीं देंगे-
• पत्रकारों से चर्चा में श्री शर्मा बोले, आंदोलन किसानों का है। इसलिए राजनीतिक दलों को मंच नहीं देंगे। लेकिन अगर कोई साथ आना चाहता है तो आंदोलन में भाग ले सकता है लेकिन राजनीति नहीं करने देंगे।