किसान मित्रों, आशा करता हूँ आप सब लोगों ने दिवाली बड़े धूम धाम से मनाई और यह त्योवहार आने वाले समय में आप सब के खेतों और घरों में खुशियों का भण्डार ले आएगी।
अभी कुछ और दिनों तक हमारे देश में अलग अलग जगहों पर अलग अलग त्योहारों का सिलसिला चलता रहेगा और मुझे यकीन है कि हम सब इन त्योहारों का भरपूर लुफ्त उठाते रहेंगे। thekrishi.com आप सभी को इन त्योवहारों की हार्दिक बधाई देता है और साथ ही खेती से जुड़ी बातें भी आप तक बिना किसी रूकावट के नियमित रूप से पहुँचाने की कोशिश में लगा हुआ है।
तो इसी बात को दृष्टिगत करते हुए आइये, आज हम बात करते हैं मसाला फसलों में से एक महत्वपूर्ण फसल – लहसुन की जिसका इस्तेमाल भारतीय जायकों में जम कर किया जाता है। संभवतः दिवाली के मौके पर आप सब के घरों में भी पकवान बनाने में लहसुन का इस्तेमाल किया गया होगा। भारत में लहसुन की सबसे ज्यादा खेती दो राज्यों- उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में की जाती है। इसके अलावा पंजाब, बिहार आदि जगहों पर भी लहसुन की अच्छी फसल उपजाई जाती है।
इसकी पारम्परिक विधि से की गयी खेती से उत्पादन 1.5 मेट्रिक टन से लेकर 5.5 मेट्रिक टन प्रति हेक्टेयर तक होती है। जबकि अगर लहसुन की खेती में वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाए तो उत्पादन 15 मेट्रिक टन प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। दोस्तों, आज हम बात करेंगे लहसुन की उन्नत प्रजातियों के बारे में। इस लेख से मेरा उद्देश्य आपको लहसुन की कुशल प्रजातियों से परिचय करना है। हालांकि, इस लेख के अंत में लहसुन की खेती में वैज्ञानिक विधियों की जानकारी भी संछेप में जरूर दूंगा।
कमेंट्स के माध्यम से आप अपने अमूल्य सुझाव व प्रश्न हम तक पंहुचा सकते हैं, कोशिश करूँगा कि शीघ्र ही जवाब दे सकूँ। यदि आपके पास लहसुन की खेती से सम्बंधित कोई और जानकारी हो तो बेझिझक कमेंट में लिखें, लाखों किसानों तक आपकी बात पहुंचेगी।
लहसुन के मुख्य प्रजाति
यमुना सफ़ेद (G-1)
उपज – 15 – 17.5 टन प्रति हेक्टेयर से अधिक
इसके कंद (clove) काफी स्वस्थ व ठोस होते हैं, दिखने में लौंग के आकार का होता है । दिखने में चांदी सा सफ़ेद होता है और इसका व्यास (diameter) 4-4.5 सेंटीमीटर तक होता है। इसके पौधे में 25-30 कंद प्रति गाँठि पाए जाते हैं। पूरे देश में इसकी खेती की जा सकती है।
यदि आप इसे ऑनलाइन आर्डर करना चाहते हैं तो इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं.
*thekrishi.com का किसी भी विक्रेता के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है, यह लिंक पाठकों की सुविधा मात्र के लिए दी गयी है।
यमुना सफ़ेद 2 (G -50)
उपज – 15 से 20 टन प्रति हेक्टेयर
इसके कंद भी मलाईदार सफ़ेद व ठोस होते हैं, और औसत व्यास 3.5-4 सेंटीमीटर होती है। लवणों की संख्या 35-40 होती है। उत्तरी भारत में लहसुन के खेती के लिए यमुना सफ़ेद G-52 उपयुक्त माना जाता है।
यमुना सफ़ेद 3 (G-282)
इसके कंद सफ़ेद रंग के व बड़े आकार के होते हैं। व्यास 4.5-6 सेंटीमीटर तक होता है तथा कंदों की लम्बाई अच्छी होती है। हरेक गाँठि में 15-16 कंद ही उगते हैं। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, गुजरात, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए यह एकदम सटीक किस्म का लहसुन है।
एग्रीफॉउन्ड सफ़ेद (G-41)
उपज – 10 टन प्रति हेक्टेयर
इसके कंद चुस्त होते हैं व उनकी लम्बाई भी अच्छी होती है, रंग चांदी सा सफ़ेद होता है। प्रत्येक गाँठि में 20 से 25 कंद होते हैं, व व्यास 3.5 से 4.5 सेंटीमीटर तक होती है। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के लिए लहसुन का यह किस्म अच्छा माना जाता है
यमुना सफ़ेद 4 (G-323)
इसकी सारी गुणवत्ता एग्रीफॉउन्ड सफ़ेद (G-41) से मिलती है, पर इसकी खेती के लिए उत्तर भारत और मध्य भारत सही माना जायेगा। यदि आप ऑनलाइन आर्डर करना चाहें तो इस लिंक को क्लिक कर सकता हैं।
*thekrishi.com का किसी भी विक्रेता के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है, यह लिंक पाठकों की सुविधा मात्र के लिए दी गयी है।
यमुना सफ़ेद 5 (G-189)
इसके कंद क्रीमी सफ़ेद व बड़े आकार के होते हैं। कंदों का औसत व्यास (diameter) 4.5 – 5 सेंटीमीटर होता है। प्रत्येक गाँठि में 22 से 30 कंद होते हैं। यदि इसकी खेती आपको फ़ूड प्रोसेसिंग (खाद्य संस्करण) के उद्देश्य से करनी है तो या आपके लिए सबसे उपयुक्त होगा। इसकी खेती सिक्किम, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, अंडमान और निकोबार द्वीप, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में की जा सकती है।
एग्रीफॉउन्ड पार्वती (G -313)
उपज – 17.5 से 22.5 टन प्रति हेक्टेयर
यह लहसुन बड़े आकार का होता है, जिसका व्यास 5 – 6.5 सेंटीमीटर तक हो सकता है। इसका रंग सफ़ेद होता है, पर इसपे गुलाबी धब्बे दिखाई देते हैं। प्रति गाँठि 10 से 16 कंद ही पाए जाते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त यह उपयुक्त प्रजाति मानी जाती है, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल, जम्मू कश्मीर सिक्किम समेत कई उत्तर पूर्वी राज्यों में इसकी अच्छी खेती होती है।
एग्रीफॉउन्ड पार्वती (G -408)
इसकी गुणवत्ता बिलकुल एग्रीफॉउन्ड पार्वती (G -313) जैसी ही है, मानों दोनों प्रजातियाँ सगी बहनें हों। इसकी खेती भी पर्वतीय क्षेत्रों में ही की जाती है।
लहसुन की कुछ अन्य प्रजातियां
पंत लोहित
उपज – 12-13 टन प्रति हेक्टेयर
यमुना सफ़ेद 5
17-18 टन प्रति हेक्टेयर
वी. एल. लहसुन 1
9 – 10 टन प्रति हेक्टेयर
वी. एल. लहसुन 2
15 टन प्रति हेक्टेयर – पर्वतीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त
इन प्रजातियों को किसी प्रमाणित संस्थान से ही खरीदना चाहिए
लहसुन की खेती में वैज्ञानिक विधि
मिटटी की तैयारी
1. सबसे पहले जल निकास युक्त मिटटी वाली खेत तैयार करें
2. मिटटी में जीवांश पदार्थ तथा पोटाश की अच्छी मात्रा होनी चाहिए
3. 40-45 टन प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में गोबर को डाल कर जुताई के साथ भूमि में मिला दें
रासायनिक खाद व उर्वरक
4. रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग मृदा परिणाम के अनुसार होना चाहिए, यदि मृदा जांच न हो पायी हो तो प्रति हेक्टेयर निम्नलिखित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करें –
नत्रजन – 115 (आधा बुआई के पहले, बाकी खड़ी फसल)
फॉस्फोरस – 50
पोटाष – 70
5. इसके अलावा खेत की तैयारी के समय 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बोरेक्स का प्रयोग करने से कंदों के आकार व वजन में वृद्धि होती है।
6. खेत की 3-4 जुताई कर के मिटटी को समतल तथा भुरभुरी बना लें।
7. पुरे खेत को छोटी छोटी क्यारियों में बाँट दें
8. बुआई के लिए बड़े आकार की कलियों का चयन करना चाहिए जिनका व्यास लगभग 8-10 सेंटीमीटर हो
9. 4-5 क्विंटल बीज कलियाँ प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहेंगी
10. बुआई से पहले इन कलियों को कार्बोनडोजिम 0.2 प्रतिशत घोल में 5 मिनट तक डुबो कर उपचारित कर लें
11. पर्याप्त दूरी पर बुआई करना अति आवश्यक है, 15 x 8 cm की दूरी पर कलियों को बोना चाहिए
12. बुआई के 3 दिनों के अंतर्गत जब मिटटी में नमी होती है, पेंडीमिथलीन 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से खेती में छिरकाव कर देने से खर पतवारों के प्रकोप से आप बच सकते हैं। फिर भी बेहतर होगा कि यदि आपके पास मानव श्रम की दिक्कत न हो तो 40-45 दिनों के बाद हाथों से खर पतवारों की सफाई करवा दें.
13. बुआई के तुरंत बाद एक सिंचाई आवश्यक है और दूसरी सिंचाई 1 हफ्ते के भीतर हो जानी चाहिए
14. कंदों की वृद्धि के दौरान 10-15 दिनों की अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए।
पत्तियों में रोग व उनके उपचार
लहसुन के पौधों में लगने वाले प्रमुख रोग हैं – बैंगनी ब्लॉच और stemphylium blight
इनके रोकथाम के लिए mancozeb (Dithane M-45) @ 0.25% या Ziram (Dithane Z-78) @ 0.3 %, sticker Triton @ 0.06% के साथ 15 दिन के अंतराल पर देना उचित होता है।
थ्रिप्स पे नियंत्रण
इनके अलावा थ्रिप्स रोग भी काफी मुख्य माना जाता है जिसके नियंत्रण के लिए deltamethrin 2.8% EC @ 0.095% का 15 दिनों के अंतराल पे स्प्रे करवाएं, या fipronil 5% SC @ 0.1% का स्प्रे 10 दिन के अंतराल पे कराएं। यदि थ्रिप्स अब भी ना रुकें तो profenofos 50% EC @ 0.1% के साथ spinosad 45% SC @ 0.1% का प्रयोग करें
लहसुन की फसल का संरक्षण
दोस्तों, लहसुन एक ऐसा फसल है जिसे कुछ महीनों तक आप संरक्षित कर बाजार में बेच सकते हैं, कतई के वक्त कुछ बातों का ध्यान जरूर रखें –
1. रोपण के पहले 15 मिनट के लिए लहसुन कंदों को पोटेशियम ऑर्थोफॉस्फेट समाधान (Potassium orthophosphate solution @1%) के साथ उपचार कर लेने से लहसुन में भंडारण हानि को कम करने की सलाह दी जाती है।
2. लहसुन में फसल की हानि को कम करने के लिए नायलॉन-नेटेड बैगों में भंडारण करने का सुझाव दिया जाता है।
3. फसल को पत्तियों सहित काट कर 7 – 10 दिनों तक छाये वाले स्थान पर रख दें
4. सूखने के बाद इनका संरक्षण छाए वाली जगह या अच्छी हवादार कमरों में करना चाहिए
इस प्रकार वैज्ञानिक विधि द्वारा की गयी खेती व संरक्षण से आप लहसुन के उत्पादन को अच्छी मात्रा में बढ़ा सकते हैं। लिखने को और बहुत कुछ है पर अभी के लिए यहीं समाप्त करता हूँ और लहसुन की खेती से समबन्धित और आवश्यक जानकारियां आप तक पहुंचाता रहूँगा। यह खेती 1 बार जरूर करें और बाकी किसान भाइयों को उसके बारे में बताएं। यदि आपको यह लेख पसंद आया हो या उपयोगी लगा हो तो बाकी किसान मित्रों से जरूर शेयर करें।
3 Comments
Sunil shukla · October 21, 2017 at 2:30 pm
हम लहसुन की खेती करना चाहते है आप से बात करना है नम्बर दीजिए
KL Prajapati · October 27, 2017 at 9:35 pm
Call WhatsApp on 7877591275
Ritesh Kumar · March 3, 2018 at 9:48 am
Very good