नंदनी कॉलेज कालेज, नबावगंज गोंडा
पलईडीह परशा (बलरामपुर )। पिछले एक वर्ष से जीरो बजट से जैविक खेती करना शुरू किया है। अब फसल की बोआई से लेकर कटाई तक पैसे की कोई चिंता नहीं रहती है क्योंकि शून्य लागत में जैविक ढंग से खाद घर पर ही तैयार हो जाती है। ऐसे में इस बार प्रति एक बीघा धान की लागत सिर्फ 1000 से1500रुपये ही आयी है। यह कहना है किसान धनराज का।
बोआई से लेकर कटाई तक लागत सिर्फ एक हजार(1000रु)
सिर्फ श्री गुरुप्रसाद वर्मा ही नहीं, अन्य 126 किसान
धान की बोआई में प्रति बीघा 5000 रु लागत बचाने वाले बात सिर्फ श्री गुरुप्रसाद वर्मा ही नहीं, बल्कि गैंसड़ी ब्लॉक के 126 किसान की सैकड़ों बीघा धान की लागत की बात है। पिछले कुछ वर्षों से बढ़ती महंगाई की वजह से किसान खेती करना घाटे का सौदा समझ रहे थे क्योंकि उनकी बाजार पर निर्भरता बहुत ज्यादा थी। खेत की जुताई से लेकर बीज, खाद, रपतवार-कीटनाशक दवाइयां सब बाजार से ही खरीदते थे। किसानों ने इस समस्या के समाधान के लिए आपस में मिलकर किसान संगठन का निर्माण किया और उनकी जो भी समस्याएं होती थी, इन समूहों में चर्चा करना शुरू किया।
तब स्वयं सहायता समूह से जुड़ी पुरुष
श्री गुरुप्रसाद वर्माजी बताते हैं कि हम स्वयं सहायता समूह से जुड़े हैं। मीटिंग के दौरान जब समूहों में जाते तो हर पुरुष खेती की बढ़ती लागत से परेशान दिखाई देती। हम सब ने स्वयं सहायता समूह में ही रहकर खेती से जुड़ी समस्याओं पर गम्भीरता से चर्चा की। वो आगे बताते हैं कि पिछले एक साल से हमारे समूह की सैकड़ो पुरुष जीरो बजट से खेती कर रहे हैं। अभी शुरुआत एक और दो बीघे से की है। इस बार सभी किसानों की धान बहुत अच्छी है, जबकि लागत शून्य है।
मिट्टी भी उपजाऊ और किसान की सेहत भी बेहतर
श्री गुरुप्रसाद वर्मा खुश होकर बताते हैं कि इस बार गेहूं की बुआई भी जीरो बजट से के है । घर की खाद, घर की पांस, घर की कीटनाशक दवाइयां, सब कुछ हम लोग बना लेते हैं जिसकी लागत बहुत न्यूनतम होती है। जीरो बजट खेती करने से इन किसानों को बहुत लाभ हो रहा है और ये अपने पुराने पारंपरिक तरीके पर वापस आ रहे हैं। जैविक ढंग से खेती होने से मिट्टी का उपजाऊपन और ग्रामीणों की सेहत दोनों की बेहतर होगी। अभी किसान सिर्फ खुद के खाने के लिए जैविक खेती कर रहे हैं। आने वाले समय में पूरी खेती जैविक ढंग से शुरू हो सकती है।
जीवामृत बनाने की विधि
200 लीटर पानी, 10 किलो देशी गाय का गोबर, 5-10 लीटर देशी गाय का गोमूत्र, 2 किलो बेसन, 2 किलो गुड़, एक मुट्ठी पीपल या बरगद के पेड़ की मिट्टी को 250 लीटर वाले ड्रम में मिलाकर कर छाया में 48 घंटे के लिए ढंककर रख दें। फसल की बोआई से पहले एक बार एक बीघे खेत में डालें और बाद में सिंचाई के दौरान एक बार बनाकर डाल दें। बोआई से पहले जीवामृत से बीज का शोधन भी कर लें। इससे जमाव अच्छा होगा।
घनामृत बनाने की विधि
100 किलो गोबर, 2 किलो बेसन, 2 किलो गुँड़, 5-10 लीटर गोमूत्र, 100 ग्राम पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी, सभी को आपस में मिलाकर पतले जूट के बोरे से 48 घंटे के लिए ढंककर रख दें। इस खाद को एक बार जुताई से पहले और दूसरी बार फसल के बीच में पानी लगने से पहले फैला दें। इन दोनों खादों के प्रयोग से खेत में करोड़ों की संख्या में जीवाश्म की संख्या बढ़ेगी, इससे फसल की पैदावार बढ़ेगी।
जीवामृत और घनामृत दो ऐसी देशी खादें हैं, जिसे किसान घर पर ही बना लेते हैं। बीज शोधन से लेकर खाद तक, ये दोनों खादें पूरे फसल में किसानों के लिए कारगर साबित हो रही हैं।पुरुष एक-दूसरे की फसल की बेहतर उपज को देखकर खुद भी जीरो बजट की खेती करना शुरू कर रहे हैं। इस पूरी कम्पनी में स्वयं सहायता समूह की महिलाएं हैं, जो इसकी निदेशक और प्रशिक्षक हैं। ये महिलाएं गाँव-गाँव जाकर लोगों को जागरूक कर रही हैं।
गोंडा( बलरामपुर) तुलसीपुर गैंसड़ी
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Amar Singh Rathore · March 19, 2018 at 1:11 pm
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