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आज हम आप लोगों को बतायेंगे सूरजमुखी के महत्व तथा उसकी खेती के बारे में!

 

★सूरजमुखी की खेती★

 

◆ महत्व – किसान भाइयों सूरजमुखी हमारे देश के लिए तिलहन की एक नई फसल है। इसके बीज से 46-52 प्रतिशत तक तेल व प्रोटीन 20-25 प्रतिशत प्राप्त हो जाती है। सूरजमुखी 90-100 दिन में तैयार हो जाती है, इसलिए इसे सघन फसल चक्रों में सफलतापूर्वक उगाया जाता है। सूरजमुखी का तेल शीघ्रता से खराब नहीं होता। अतः काफी समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। सूरजमुखी के लिए संतृप्त वसीय अम्लों की मात्रा कम होने के कारण इसका तेल हृदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए काफी लाभकारी रहता है। किसान भाइयों इसके तेल का उपयोग वनस्पति घी के तैयार करने में भी किया जाता है। इसकी गिरी काफी स्वादिष्ट होती है। इसे कच्चा या भूनकर मूंगफली की तरह खाया जाता है। इसकी खली मवेशियों को खिलाने के काम में लाई जाती है। खली में उच्च कोटि की 40-44% तक प्रोटीन होती है।

 

इसको कुछ क्षेत्रों में चारे के लिए व बाग बगीचों में अलंकारिक पौधों के रूप में भी उगाया जाता है।

 

◆ जलवायु-  प्रकाश अवधि का इसकी वृद्धि व विकास पर कोई अंतर नहीं पड़ता अर्थात सूरजमुखी एक अप्रदीप्तिकाल पौधा है। इसके इस गुण के कारण इसे खरीफ, रबी व बसंत में आसानी से उगाया जा सकता है। अधिक आपेक्षिक आद्रता व बादलों के छाये रहने से उपज में कमी आती है। इसमें सूखा सहन करने की काफी क्षमता होती है। जलवायु की विभिन्न विभिन्नताओं में यह फसल पैदा की जा सकती है। 50-80 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती की जा सकती है।

 

★सूरजमुखी की उन्नत जातियां★

किसान भाइयों सूरजमुखी की उन्नत जातियां निम्नलिखित हैं-

• अमिवर्ट्स (E.C.69874)  किसान भाइयों इस किस्म के पौधे की ऊंचाई 1-2.4 मीटर, फूल 12-16 सेमी. यह प्रजाति 125-135 दिन में पक जाती है। इसकी उपज 10-15 कुंतल/हैक्टेयर, तेल 43% तेल अच्छे गुणों का, आंध्र प्रदेश में तथा उत्तर प्रदेश में बसंत में उगाना चाहिए।

 

02. यू. पी. एस.2-   फसल अवधि से 145 दिन, पैदावार 20 से 25 कुंतल प्रति हेक्टेयर, तेल 45% पाया जाता है।

 

03. यू. पी. एस. 5 – फसल अवधि 142 दिन, में पककर तैयार हो जााती है। इसकी उपज 23 कुंतल प्रति हेक्टेयर दानों में तेल 45% तक पाया जाता है।

 

04. DRISHI – सूरजमुखी की यह एक संकर प्रजाति है। दानों में तेल का प्रतिशत 42-44% तथा दानों की उपज 1300-1600kg/हेक्टेयर है। यह प्रजाति सभी क्षेत्रों में रबी सीजन हेतु उपयुक्त है।

 

◆ भूमि –  रबी की फसल के लिए भारी दोमट व खरीफ की फसल के लिए एल्यूवियल दोमट मृदा, उचित जल निकास के साथ अति उत्तम है। सूरजमुखी की खेती कम उर्वरक, पथरीली व विभिन्न प्रकार की भूमियों में की जा सकती है। सिंचित और असिंचित मृदाओं में पैदा होने के कारण, दोनों क्षेत्रों में बहु-फसलीय सस्य योजना में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। पी.एच. 6.5 से 8 तक होनी चाहिए।

 

 

◆ भूमि की तैयारी – खेत में एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करने के बाद दो-तीन बार हैरों या देशी हल से जुताई करके और पाटा लगा देना चाहिए। सूरजमुखी के बीजों का छिलका कड़ा और मोटा होता है, इसलिए बहुत धीरे-धीरे पानी सोखता है। अतः इसके जमाव के लिए पर्याप्त नमी जरूरी है। नमी की कमी होने पर पलेवा करके बुवाई करनी चाहिए।

 

◆ बुवाई का समय – सूरजमुखी दिनों की अवधि तथा ऋतु विशेष से प्रभावित नहीं होती अर्थात सूरजमुखी साल भर उगाई जा सकती है। फसल वृद्धि की विभिन्न अवस्थाओं में उपयुक्त जलवायु का अनुभव करें, इसके लिए फसल बुवाई विभिन्न मौसमों में निम्नवत की जानी चाहिए-

(i) खरीफ_ जुलाई के प्रथम सप्ताह से अगस्त तक।

(ii) रबी_ मध्य अक्टूबर से 30 नवंबर।

(iii) जायद _15 फरवरी से 15 मार्च।

 

प्राय: यह देखा गया है कि प्रारंभ फरवरी में बोई गई फसल से, सबसे अधिक उपज मिलती है। इसकी बुवाई अत्यंत अधिक ठंडे मौसम को छोड़कर साल के सभी महीनों में कर सकते हैं।

 

◆ बीज की मात्रा –  एक हेक्टेयर में 8-10 किलोग्राम बीज डालना चाहिए। सदैव प्रमाणित बीज प्रयोग करें। अगर अपनी फसल का बीज बोना हो तो 1 किलो बीच में 3 ग्राम के हिसाब से डाइथेन एम-45 या कैप्टान नामक दवा मिला दें। इस दवा से रोग पैदा करने वाली फफूंदियां नष्ट हो जाती है। बुवाई पूर्व बीज को 10-12 घंटे पानी में भिगोकर बोने से, अंकुरण प्रतिशत बढ़ती है। तथा अंकुरण शीघ्र होता है।

 

◆ बोने की विधि – बीजों को 60-80 सेमी. की दूरी पर बनी हुई कतारों में बोना चाहिए। कतार में 20-25 सेमी. की दूरी पर बीज डालना चाहिए। बीज 3-4 सेमी. से गहरा ना पड़े। बड़े पैमाने पर मक्का बोने की मशीन से इसकी बुवाई की जा सकती है। असिंचित क्षेत्र में 50 से 60 हजार व सिंचित क्षेत्रों में 80 से 100 हजार पौधे प्रति  हेक्टेयर  होने चाहिए।

 

◆ खाद एवं उर्वरक की मात्रा – किसान भाइयों अधिक उपज के लिए खेत में उर्वरक डालना जरूरी है। उर्वरक डालने से पहले मिट्टी की जांच अवश्य करा लेना चाहिए। यदि आप किसी कारण से मिट्टी की जांच न करा सकें तो सामान्य भूमि में एक हेक्टेयर के लिए 60 से 80 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फॉस्फोरस, 40-50 किलो पोटाश की जरूरत पड़ती है। इन पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए सही मात्रा में उर्वरक डालें। 50 किलो नाइट्रोजन और फास्फोरस पोटाश की पूरी मात्रा खेत की अंतिम जुताई के समय मिट्टी में बिखेरकर मिला दें। बची हुई 30 किलो नाइट्रोजन दूसरी सिंचाई के समय या फसल में फूल निकलते समय फसल की कतारों के बीच डालनी चाहिए।

 

◆ निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण –  बुवाई के 10-12 दिन बाद घने उगे हुए पौधों को उखाड़ देना चाहिए ताकि कतार में पौधे के बीच की दूरी 20 सेमी रह जाये। खरपतवारों की रोकथाम करना भी जरूरी है। खरीफ की फसल में दो बार और रबी तथा बसंत ऋतु की फसल में एक बार निराई-गुड़ाई जरूर कर देनी चाहिए। निकाले गये पौधे खाली स्थानों पर रोपे जा सकते हैं। पहले दो महीनों में 1-2 बार निराई-गुड़ाई आवश्यक है।

 

सूरजमुखी का फूल बहुत भारी और बड़ा होता है, जिसके कारण आंधी-पानी से पौधे गिर सकते हैं। इसलिए दूसरी सिंचाई अर्थात बुवाई के करीब 50 दिन बाद पौधों पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए।

 

◆ हाथ से पराग सेंचन – फूल आने पर सुबह 8 से 10 बजे तक एकान्तर दिनों पर हाथ से पराग सेंचन की क्रिया करने से लाभ मिलता है। इसके लिए किसान भाइयों वायल के कपड़े को हथेली पर लपेट कर, खुले फूलों को हल्के-हल्के सावधानी से रगड़ते हैं।

 

• किसान भाइयों से आग्रह है कि सूरजमुखी के खेत के चारों तरफ 50 मीटर की दूरी तक 2,4-D नामक खरपतवार नाशक दवा का छिड़काव नहीं करना चाहिए। यह खरपतवारनाशी दवा सूरजमुखी की फसल के लिए बहुत हानिकारक हैं।

 

◆ सिंचाई – किसान भाइयों रबी में 2 बार और बसन्त ऋतु में 5-6 बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। फसल उगने के 25- 30 दिन बाद पहली और करीब 50 दिन बाद दूसरी सिंचाई कर देनी चाहिए। तीसरी सिंचाई फूल निकलने और दाने भरने की अवस्था में कर देनी चाहिए। खरीफ में आवश्यकतानुसार 3-4 सिंचाई करते हैं।

 

◆ रखवाली –  सूरजमुखी के अकेले पकते हुए खेतों में, विशेषकर जब आसपास के खेतों में किसी अन्य फसल में दाना न पड़ रहा हो, पक्षी बहुत नुकसान पहुंचा सकते हैं। ऐसी स्थिति में पक्षियों को उड़ान अत्यन्त आवश्यक है। मौसमी फसलों के साथ या बाद में पकने वाली फसल को पक्षी नुकसान नहीं पहुंचाते।

 

◆ कटाई एवं मड़ाई – जब सूरजमुखी के बीज पककर कड़े हो जाये, तो उसके फूलों की कटाई कर लेनी चाहिए। पके हुए फूलों का पिछला भाग पीले भूरे रंग का हो जाता है। फूलों को काटकर धूप में सुखा लेना चाहिए। इसके बाद फूलों को हाथ से या डंडों से पीटकर मडांई की जा सकती है।  बीजों में 10-12% नमी होने पर गेहूं वाले थ्रेसर से भी इसकी मडांई की जा सकती है।

• पकने का समय, मौसम और सूरजमुखी की किस्म पर निर्भर करता है। शीतकालीन फसल 130-140 दिन में पककर तैयार हो जाती है। जायद की फसल 90-100 दिन में और खरीफ की फसल 120-130 दिन में पकती है।

 

◆ उपज एवं भण्डारण – किसान भाइयों सूरजमुखी की फसल को उन्नत विधियों से उगाने पर एक हेक्टेयर में 20 कुंतल से अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है।सूरजमुखी के बीजों को सामान्य विधियों से भण्डारित किया जा सकता है। परन्तु बीजों में नमी 10% से अधिक नहीं होनी चाहिए। भण्डारण ठण्डी और सूखी जगह पर करना चाहिए।

 

★ पादप सुरक्षा ★

 

◆ रोग एवं उनकी रोकथाम –  किसान भाइयों वर्षा ऋतु में झुलसा याा अंगमारी रोग का प्रकोप अधिक होता है, जिसके फलस्वरुप सूरजमुखी की उपज में बहुत कमी हो जाती है। पौधे पर गहरे भूरे रंग और काले रंग के धब्बों में प्रकट होने के शीघ्र बाद फसल पर 0.3 प्रतिशत डाइथेन एम-45 या ड्यूटर का छिड़काव कर देना चाहिए। 10 दिनों के अंतर पर 4-5 बार छिड़काव करना चाहिए।

 

• इस रोग के अलावा जुलाई और अगस्त में बोई गई फसल में स्क्लेरोशियम म्लानि, शीतकालीन फसल में स्क्लेरोटिनिया म्लानि और मार्ग में बोई गई फसल में चारकोल विगलन नामक बीमारियों का प्रकोप भी हो जाता है। इन बीमारियों से बचाव के लिए खेत में से रोगी पौधों को उखाड़कर जला देना चाहिए तथा सूरजमुखी को दीर्घकालीन फसल चक्रों में उगाना चाहिए। फसल को रोग मुक्त रखने के लिए जिनेब (डाइथेन जैैैड-78) की 2.5 किग्रा. मात्रा 1,000 लीटर पानी में घोलकर प्रभावित फसल पर छिड़काव करें। आवश्यकता पड़ने पर 10-15 दिन के अंतर पर छिड़काव करते रहें।

 

★कीट एवं उनकी रोकथाम★

 

किसान भाइयों सूरजमुखी पर हानिकारक कीड़ों का अधिक प्रकोप नहीं होता, फिर भी अंकुरण की अवस्था में अंकुर को कुछ कीड़े काटते हैं, जिससे नुकसान हो सकता है। फूल खिलने की अवस्था में शिराबेधक हानि पंहुचा सकते है। इसके अतिरिक्त जैसिड के आक्रमण से भी हर समय फसल की रक्षा की जानी चाहिए। बुवाई से पहले खेत में 15 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से हैप्टाक्लोर (5% धूल) मिलाकर इनकी रोकथाम की जा सकती है। 0.025 प्रतिशत मेटासिस्टाक्स या डाइमक्रेन (25 ई.सी.) एक मिली दवा को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

किसान भाइयों से आग्रह है कि वे सूरजमुखी की खेती अवश्य करें और खुभ लाभ कमाएं ।


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