बीज स्रोत का नियंत्रण (Control of seed source)

बीज उत्पादन के दौरान यह ध्यान रहे कि बीज उपयुक्त स्रोत से लिया जाये जिससे उसकी वंशावली के साथ-साथ शुद्धता का भी पता चल जाये।

खेत का चुनाव (Selection of the field)

बीज फसल का चयन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि खेत की स्थिति, बीज की अलगाव दूरी और उस खेत में पिछली बार वही फसल न उगायी गयी हो। खेत स्वयं अन्य फसलों और खरपतवारों से मुक्त हो।

संदूषण स्रोतों से पृथक्करण (Isolation from contamination)

बीज फसल में पर परागण के कारण होने वाली अशुद्धता तथा रोगों के फैलाव आदि से बचाने के लिए एक निश्चित दूरी पर बीज फसल को उगाया जाता है। मोटे तौर पर स्वयं परागित फसलों में 3 मीटर, आंशिक परपरागित फसलों में 30 मीटर तथा परपरागित फसलों में 200 मीटर दूरी रखी जाती है। कीट परपरागित (1000 मीटर तक) तथा वायु परागित फसलों में (वायु की दिशा के अनुसार) और अधिक दूरी रखनी पड़ती है। आधार बीज उत्पादन में प्रमाणित बीज की तुलना में अधिक (प्रायः दोगुनी) दूरी रखनी पड़ती है। यदि बीज फसल व अन्य खेतों के बीच में कोई रुकावट खड़ी कर दी जाये तो पृथक्करण दूरी कम की जा सकती है, जैसे संकर बीज उत्पादन में सीमान्त पंक्तियों का बोया़ जाना, किसी दूसरी असम्बन्धित फसल जैसे ढैंचा की पंक्तियां लगाना अथवा कोई भौतिक बाधा, जैसे 2 मीटर ऊंची पॉलिथीन शीट खड़ी करना। पौधे या पौधों के समूह को किसी तरह से ढककर, फूलों पर लिफाफे लगाकर, पृथक्करण वाले पौधे के फूलों से नर अंगों को अलग करके भी पृथक्करण किया जा सकता है। जब बीज फसल को भिन्न फसल के खेतों से अपेक्षित दूरी पर उगाना संभव नहीं होता तो बीज फसल को अगेती या पछेती फसल के रूप में उगाया जाता है, जिससे बीज फसल व निकटस्थ भिन्न फसल में पुष्पन भिन्न समय पर हो। भिन्न किस्मों के बीजों को कटाई के बाद अलग रखा जाता है और गहाई व संसाधन क्रियायें भी अलग-अलग की जाती हैं, जिससे यांत्रिक मिश्रण न हो पाये।

कृषि क्रियाएं(Farm operations)

(i) खेत की तैयारी (Preparation of the field) – खेत की तैयारी अच्छी होनी चाहिए। इससे फसल के बीजों का अंकुरण अच्छा होता है, खरपतवारों की रोकथाम तथा भूमि में जल प्रबंध अच्छा होता है।

(ii) बुवाई (Sowing)  – बीज फसल की बुवाई उपयुक्त समय पर उचित नमी अवस्था में की जानी चाहिए। बीज फसल में बीज की दर वाणिज्य फसल की अपेक्षा कम रखी जाती है और पंक्ति से पंक्ति व पौधे से पौधे की दूरी भी कुछ अधिक रखी जाती है, जिससे अवांछनीय पौधों के निकालने में सुविधा रहे। कभी-कभी बीजों को प्रसुप्ति समाप्त करने, जीवाणु निवेशन व बीजजन्य कीड़ों व बीमारियों की रोकथाम के लिए उपचारित करने की आवश्यकता होती है। संकर बीज उत्पादन में दो जनकों को वांछित अनुपात (4 मादा : 2 नर अथवा 6 मादा : 2 नर) में पाया जाता है, जिनके चारों ओर सीमान्त पंक्तियां लगायी जाती हैं।

(iii) खाद एवं उर्वरक (Manures and fertilizers) – बीज फसल में पौधों व दानों के उचित विकास के लिए नत्रजन, फॉस्फोरस व पोटाश जैसे प्रमुख पोषक तत्व यथासमय पर्याप्त मात्रा में देने की आवश्यकता होती है, जो जैविक खादों व उर्वरकों के द्वारा पूरी की जा सकती है। कभी-कभी कुछ अन्य पोषक तत्वों जैसे – कैल्शियम, मैग्नीशियम, लोहा, तांबा, जस्ता गंधक, बोरान, मैगनीज और मोलिब्डिनम की पूर्ति भी भूमि परीक्षण में इनकी कमी मिलने पर की जाती है। जैविक खाद (गोबर की खाद, कंपोस्ट आदि) बुवाई से 1 माह पूर्व खेत में मिला देनी चाहिए। नत्रजन वाले उर्वरक 2-3 बार (बुवाई के समय, 30-40 दिन बाद व पुष्पन से पूर्व) लेकिन फॉस्फोरस पोटाश बुवाई से पूर्व या बुवाई के समय दिये जाते हैं।

(iv) सिंचाई व जल निकास (Irrigation and drainage) – बीज फसल से अच्छी उपज लेने के लिए कई सिंचाइयाँ करनी पड़ती हैं। कुछ फसलों में फालतू पानी के निकास की भी आवश्यकता होती हैै।

(v) फसल सुरक्षा (Plant protection) – बीज फसल को खरपतवारों, कीड़ों व बीमारियों से मुक्त रखने के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए तथा आवश्यकतानुसार खरपतवारनाशकों, कीटनाशकों का छिड़काव भी करना चाहिए।

अवांछनीय पौधों को निकालना (Roguing)

बीज फसल से समय-समय पर अन्य किस्मों के पौधों, खरपतवारों व रोगी पौधों को निकालते रहना चाहिए, जिससे परपरागण व रोगों के प्रसार से बीज खराब न होने पाये। पौधों को पूरे (जड़ सहित) उखाड़ कर थैलों या लिफाफों में बन्द करके खेत से बाहर ले जाकर गड्ढे में दबा या जला देना चाहिए जिससे वह संदूषण रोग आज ना फैलाएं, जिससे वे संदूषण (रोग आदि) न फैलायें। भिन्न पौधों को ऊँचाई, तने व पत्ती के रंग, पत्ती के आकार व शक्ल के आकार व शक्ल आदि के आधार पर पहचाना जा सकता है।

कटाई व गहाई (Harvesting)

बीजों के पूर्णता: परिपक्व हो जाने पर उचित नमी अवस्था में कटाई की जाती है। अधिक नमी अवस्था में कटाई करने पर गहाई व सफाई करने में बीज क्षति होती है, कवकों व कीड़ों का आक्रमण शीघ्र होता है और अंकुरण क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। साथ ही कटाई में देरी से धूप, वर्षा आदि से बीज गुणता में हास होता है और कुछ फसलों में दाने खेत में बिखरने की समस्या होती है। कटाई व गहाई मौसम व फसल के अनुसार मशीन या मजदूरों व बैलों से की जा सकती हैं। इस सब में यांत्रिक क्षति व संदूषण से बचाव किया जाता है। बीज की गहाई पक्के फर्श अथवा तिरपाल पर की जानी चाहिए।

 बीज संसाधन (Seed processing)

प्रायः कटाई के समय बीज फसल में नमी की मात्रा सुरक्षित अवस्था में अधिक होती है। अतः उसे सुरक्षित आर्द्रता मात्रा के स्तर तक लाने के लिए धूप या कृत्रिम सुखाई द्वारा सुखाया जाता है। विभिन्न फसलों में सुरक्षित आर्द्रता मात्रा भिन्न होती है। उदाहरण के लिए, खाद्यान्न फसलों में 12% सोयाबीन व कपास में 10% दालों में 9% तिलहनों में 8% तथा सब्जियों में 7-8% से अधिक आर्द्रता नहीं होनी चाहिए। इसके बाद उसमें से संदूषक पदार्थ (अन्य बीज व अक्रिय पदार्थ) अलग करके उसकी उचित सफाई की जाती है।

बीज उपचार(Seed treatment)

बीजजनित कीड़ों व रोगों से भण्डारण के समय बीज को होने वाली क्षति और खेत में इनके प्रसार से बचाव के लिए बीजों को विभिन्न कीटनाशकों व कवकनाशकों से उपचारित किया जाना आवश्यक होता है।

बीज भण्डारण (Seed storage)

बीजों को निम्न ताप व निम्न नमी की दशाओं में भण्डारित किया जाता है। जिससे भण्डारण के समय कीड़ों के फैलने का भय न रहे। इसके लिए बीज बोरों व साइलो बिन (Silo bins) में रखा जाता है। बोरों को प्रयोग से पूर्व अच्छी तरह साफ कर लेना चाहिए, क्योंकि उनमें पहले से अन्य फसल के बीज या कीड़े आदि हो सकते हैं। अच्छा रहे, उन्हें डी.डी.टी. के 3% घोल में डुबोकर अच्छी तरह सुखा लिया जाये।

 बीज परीक्षण (Seed testing)

बीज में आनुवंशिक व भौतिक शुद्धता, अंकुरण प्रतिशत व नमी प्रतिशत आदि के लिए परीक्षण किए जाते हैं, जिनका ब्यौरा उन पर लगाये जाने वाले अकंन पत्रों में दिया जाता है।

 थैले भरना(Bagging)

संसाधित व परीक्षित बीज को उपयुक्त नमीयुक्त थैलों में भरकर सील किया जाता है और प्रमाणपत्र संलग्न किये जाते हैं। थैलों में बीज के बारे में पूर्ण जानकारी सहित लेबिल व टैग आदि लगाये जाते हैं।