यदि एसआरआई पद्धति System of Rice Intensification यानि श्रीविधि से करें तो गेहूं के उत्पादन में ढाई से तीन गुना वृद्धि हो सकती है। इस विधि से खेती करने पर गेहूं की खेती में लागत परंपरागत विधि की तुलना में आधी आती है।इस नई पद्धति का मुख्य उद्देश्य भूमि, जल, जैविक कृषि संसाधनों तथा सौर किरणों का समुचित उपयोग करते हुए अधिकतम उत्पादन लेना है।इस विधि में खेत को समतल करने, निश्चित दूरी व उचित गहराई पर बीजों को बोने, जैविक खाद के प्रयोग और समय-समय पर गुड़ाई करने व उचित नमी रखने से मिट्टी में आॅक्सीजन का संचार होता है। इससे पौधों की जड़ें गहरी व स्वस्थ रहती है और पौधों का विकास अच्छा होता है जिससे गेहूँ का उत्पादन अधिक होता है क्योंकि कल्ले अधिक होते हैं, दाना डेढ़ गुना होता है और दाना मोटा होता है। पौधों की लम्बाई अधिक एवं तना अधिक मोटा, अनाज एवं भूसा का अधिक उत्पादन होता है।
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खेत तैयार करना
पहले सामान्य विधि के अनुसार ही खेत तैयार करना होता है, अवशेष फसल निकालकर, खरपतवार निकालकर खेत को तीन चार बार जोतकर पाटा लगाकर,मिटटी को भुरभुरा महीन कर लें. खेत को समतल बनाकर पानी की निकासी का प्रबंध करें, दीमक इत्यादि के उपचार हेतु दीमक नाशक दवा का प्रयोग करें।उचित फसल के लिए बुवाई का समय अत्यंत महत्वपूर्ण कारक है, नवम्बर और दिसम्बर का समय इसके लिए ठीक होता है. इससे ज्यादा पहले या बाद में बुवाई करने पर फसल की गुणवत्ता और उपज प्रभावित होती है. बुवाई के समय खेत में नमी होनी चाहिए, नमी न हो तो खेत को पलेवा कर लें. खेत में क्यारी बना लें. स्थानीय जलवायु और भूमि के प्रकार के अनुसार उन्नत किस्म के बीज का चयन करना चाहिए.
बीज शोधन
उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीज का चयन करें। बीज शोधन के लिए प्रति एकड़ १० किलो बीज, ४ लीटर गोमूत्र ,२० लीटर ६० डिग्री तक गुनगुना पानी , २ किलो गुड , ५ किलो केंचुआ खाद एकत्र कर लेवें।
बीजों को गुनगुने पानी में डालें और तैरने वाले बीजों को अलग कर दें. इस प्रक्रिया को तब तक दोहरायें जब तक बीज ऊपर तैरने बंद ना हों। केवल उन्हीं बीजों का चयन करना चाहिए जो पानी में नीचे बैठ जायें। अब पानी में गुड, केंचुआ खाद, गोमूत्र, को भलीभांति मिला लें.
बीजों की बुवाई
गेहूँ के साथ अनेक प्रकार के खरपतवार भी खेत में उग्जाते हैं और पोषक तत्वों, प्रकाश, नमी आदि ख़तम करते है। इन पर नियंत्रण नही किया तो उपज मे ४५ प्रतिशत तक हानि संभावित है। । गेहूँ के खेत में चौड़ी पत्ती वाले खरपतावारों का प्रकोप होता है। इसके अलावा सिंचाई करने के पश्चात मृदा की एक कठोर परत निर्मित हो जाती है जिससे भूमि में हवा का आवागमन तो अवरुद्ध होता ही है, पोषक तत्व व जल अवशोषण भी कम होता है । अतः खेत में सिचाई उपरांत निंदाई-गुड़ाई करना आवश्यक होता है. पहली सिंचाई के बाद २-३ दिन बाद कुदाल या रोतोवीडर से मिटटी को ढीला करें और खरपतवार निकालें. इसी तरह दूसरी और तीसरी सिंचाई के २-३ बाद दूसरी और तीसरी निराई गुड़ाई करें.
परिचय
प्राचीन काल से ही भारत जैविक आधारित कृषि प्रधान देश रहा है। हमारे ग्रन्थों में भी इसका उल्लेख किया गया है। पंचगव्य का अर्थ है पंच+गव्य (गाय से प्राप्त पाँच पदार्थों का घोल) अर्थात गौमूत्र, गोबर, दूध, दही, और घी के मिश्रण से बनाये जाने वाले पदार्थ को पंचगव्य कहते हैं। प्राचीन समय में इसका उपयोग खेती की उर्वरक शक्ति को बढ़ाने के साथ पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता था।
विशेषतायें
2 Comments
शोभाराम सिन्हा · October 15, 2017 at 6:19 am
उपयोगी पोस्ट है। बहुत बहुत धन्यवाद।
admin · October 15, 2017 at 3:31 pm
धन्यवाद शोभाराम जी