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आज हम बात करेंगे ड्रिप सिंचाई विधि के बारे में।
यह विधि सबसे आधुनिक और दक्षतापूर्ण है सबसे पहले सिंचाई की इस विधि का प्रचलन इजराइल देश में हुआ था किंतु अब इस विधि का प्रयोग उन सभी क्षेत्रों में किया जाने लगा है जहां पानी की कमी है तथा जल लवणीय है। इस विधि में जल पौधों की जड़ों में बूंद-बूंद के रूप में ड्रिपर्स द्वारा  टपकाकर दिया जाता है। इस विधि में प्रत्येक पौधे के पास प्लास्टिक पाइप लगा होता है, जिसका सीधा संबंध पानी लाने वाले पाइप से होता है।
इस विधि में पानी को प्लास्टिक पाइप (PVC) पाइप के द्वारा ड्रिपर्स (पानी उगलने वाले छिद्रों) तक, जोकि सहायक नलों में लगे या बने होते हैं, पहुंचाया जाता है। ये सहायक पाइप पौधों की पंक्तियों की अगल-बगल में बिछाये जाते हैं। ड्रिपर्स में पानी का दबाव कम करने की व्यवस्था होती है। अतः पानी लगभग न्यूनतम अथवा शून्य दबाव पर ही बूंदों के रूप में बाहर टपकता है। इसी आधार पर इस विधि का नाम ड्रिप या र्टिकिल सिंचाई विधि रखा गया है।
इस विधि का संचालन निम्नलिखित उपकरणों द्वारा संपन्न होता है-
(i) पानी का स्रोत (पम्प सैट) फिल्टर, कंट्रोल वाल्व, फलश वाल्व, प्रेशर गेज, पानी का मीटर
(ii) उर्वरक बॉक्स तथा उर्वरक बॉक्स में लगे पाइप।
(iii) मुख्य प्रवाह धारा।
• मुख्य प्रवाह धारा जोकि 38 मिमी उपमुख्य धारा के नलों में जल प्रवाहित करती है। इस उपमुख्य लाइन में 12.7 मिमी वाली लचीली P.V C. पाइप 90° के कोण पर भूमि के धरातल पर बिछायी जाती है। इन लचीली पाइप में पानी उगलने वाले डिपर्स लगे होते हैं। इन ड्रिपर्स की दूरी भूमि की किस्म तथा फसल के अनुसार निर्धारित की जाती है। सामान्यत: प्रत्येक ड्रिपर्स का जल प्रवाह 2 लीटर प्रति घंटा रखा जा सकता है।
• इस सिंचाई का उद्देश्य पौधों के सीधे मूल क्षेत्र में बिना दबाव डालें उतना जल प्रवाहित करने से है जितना कि उनकी प्रतिदिन की जल की आवश्यकता होती है।
• टपक सिंचाई के लाभ)> टपक सिंचाई विधि से निम्नलिखित लाभ होते हैं-
(i) इस विधि में सिंचाई जल उपयोग क्षमता अधिक होती है। सभी सतही सिंचाई विधियों में जल की पर्याप्त मात्रा रिसाव अन्त:स्रवण तथा वाष्पीकरण आदि क्रियाओं द्वारा नष्ट हो जाती है।
(ii) तेज वायु चलने पर भी सिंचाई में कोई परेशानी नहीं होती है। जबकि बौछारी सिंचाई में तेज वायु में समान सिंचाई नहीं हो पाती है।
(iii) सिंचाई की अन्य विधियों की अपेक्षा टपकाव विधि से सिंचाई करने पर 50% जल की बचत होती है। अतः लगभग दोगुने क्षेत्र पर खेती करना संभव हो जाता है। इसी कारण इसे वाटर माइजर (water miser) विधि भी कहते हैं।
(iv) सभी पौधों को पानी समान रूप में मिलता है। खेतों को समतल करने की आवश्यकता नहीं होती
(v) इस विधि में नालियां, मेंड़, बरहे बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ती अतः फसल क्षेत्र में वृद्धि हो जाती है।
(vi) शुष्क क्षेत्रों में सिंचाई की यह विधि अधिक उपयोगी है।
(vii)  यह विधि उर्वरक देने तथा लवणयुक्त पानी का प्रयोग किये जाने के लिये भी उपयुक्त है।
(viii) दीमक की सम्भावना कम हो जाती है।
(ix) इस विधि में सिंचाई के साथ उर्वरक भी दे सकते हैं, क्योंकि जल के साथ घुला उर्वरक पौधों की जड़ों को सीधा जाता है।
(x) खरपतवारों की समस्या पर नियंत्रण किया जा सकता है।
◆ योजना के लाभार्थी/पात्रता)>
• योजना का लाभ सभी वर्ग के कृषकों के लिए अनुमन्य है।
• योजना का लाभ प्राप्त करने हेतु इच्छुक कृषक के पास स्वयं की भूमि एवं जल स्रोत उपलब्ध हो।
• योजना का लाभ सहकारी समिति के सदस्यों, सेल्फ हेल्प ग्रुप, इनकॉर्पोरेटेड कम्पनीज, पंचायती राज संस्थाओं, गैर सहकारी संस्थाओं, ट्रस्ट्स, उत्पादक कृषकों के समूह के सदस्यों को भी अनुमन्य है।
• ऐसे लाभार्थियों/ संस्थाओं को भी योजना का लाभ अनुमन्य होगा जो संविदा खेती (कॉन्टैट्स फार्मिंग) अथवा न्यूनतम 7 वर्ष की लीज एग्रीमेंट की भूमि पर बागवानी/खेती करते हैं।
• एक लाभार्थी कृषक/संस्था को उसी भू-भाग पर दूसरी बार 7 वर्ष के पश्चात ही योजना का लाभ अनुमन्य होगा।
• लाभार्थी कृषक अनुदान के अतिरिक्त विशेष धनराशि स्वयं के स्रोत से अथवा ऋण प्राप्त कर वहन करने हेतु सक्षम व सहमत हों।
◆ अनुमन्य क्षेत्रफल)>
• प्रत्येक लाभार्थी कृषक को अधिकतम 5 हेक्टेयर क्षेत्रफल तक योजना का लाभ अनुमन्य होगा। जिन लाभार्थियों ने केंद्र पोषित माइक्रो इरीगेशन योजना अंतर्गत अनुदान का लाभ अनुमन्य क्षेत्रफल तक पहले प्राप्त कर लिया है, उन्हें उसी भूमि पर सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली की स्थापना पर अगले 7 वर्ष तक अनुदान  देय नहीं होगा।
◆ पंजीकरण कैसे कराएं)>
• इच्छुक लाभार्थी कृषक किसान पारदर्शी योजना के पोर्टल www.upagriculture.com पर अपना पंजीकरण कराकर प्रथम आवक प्रथम पावक के सिद्धांत पर योजना का लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
• पंजीकरण हेतु किसान के पहचान हेतु आधार कार्ड, भूमि की पहचान हेतु खतौनी एवं अनुदान की धनराशि के अंतरण हेतु बैंक पासबुक के प्रथम पृष्ठ की छाया प्रति अनिवार्य है।
   ◆ निर्माता फर्म का चयन)>
• प्रदेश में ड्रिप सिंचाई प्रणाली स्थापित करने वाली पंजीकृत निर्माता फर्मों में से किसी भी फर्म से कृषक अपनी इच्छा अनुसार आपूर्ति/स्थापना का कार्य कराने के लिए स्वतंत्र हैं।
• निर्माता फर्मों अथवा उनके अधिकृत डीलर/डिस्ट्रीब्यूटर द्वारा बी.आई.एस. मानकों के अनुरूप विभिन्न घटकों की आपूर्ति करना अनिवार्य होगा और न्यूनतम 3 वर्ष तक फ्री ऑफ्टर सेल्स सर्विस की सुविधा की व्यवस्था सुनिश्चित की जायेगी।
◆ अनुदान भुगतान)>
• निर्माता फर्मों के स्वयं मूल्य प्रणाली के आधार पर भारत सरकार द्वारा निर्धारित इकाई लागत के सापेक्ष जनपद स्तरीय समिति द्वारा भौतिक सत्यापन के उपरांत अनुदान की धनराशि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांस्फ़र (डी.वी.टी.) द्वारा सीधे लाभार्थी के खाते में अंतरित की जाती है।

4 Comments

श्याम · February 28, 2018 at 5:57 pm

Sir Ji
मुझा मिनी फव्वारै मिनी स्प्रीकलर कै बारै मै जीनकारी दे
पुर्ण जानकारी मो what’s no 9669107710

Nasir Imam Rizvi · February 28, 2018 at 7:37 pm

name of nearest agency from Dist.Sitapur UP

Jitendra Kumar Malav · March 22, 2018 at 6:05 am

Seeds production high quality

S c tyagi · June 30, 2018 at 6:12 pm

I want to know that I have no means of water for my crops. my neighbor is ready to give it who have a tubewell but an another Farmer stop me whose land is between the two. Any rulling is available for it .even for underground pipes . Thanks.

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