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“आंवला की खेती”
किसान भाइयों आवंले की खेती ऊसर, बंजर परती एवं बेकार पड़ी भूमियों पर भी सुगमता से उगाया जा सकता है।जिससे किसान भाई खाली या बेकार पड़ी भूमि से लाभ कमा सकते हैं।
जलवायु)- आंवला उष्ण जलवायु का वृक्ष है परंतु इसे उपोष्ण जलवायु में भी सफलतापूर्वक उगा सकते हैं। इसके वृक्ष लू और पाले से अधिक प्रभावित नहीं होते हैं। यह 0-46 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान सहन करने की क्षमता रखता है। पुष्पन के समय गर्म वातावरण अनुकूल होता है।
भूमि)- किसान भाइयों आंवले को लगभग सभी प्रकार की (लवणीय तथा क्षारीय ) भूमि में उगाया जा सकता है।
किस्में )-
(01) एन. ए. 7 (NA-7)- यह फ्रांसिस किस्म के चयन से विकसित की गयी है। इसके वृक्ष ओजस्वी और सीधे बढ़ने वाले होते हैं। फल बड़े, चिकनी त्वचा वाले तथा आकार में चपटे अंडाकार होते हैं। प्रति शाखा अधिक मादा पुष्प होने के कारण फलत अच्छी होती है और आंतरिक ऊतक क्षय रोग से प्रभावित ना होने के कारण व्यावसायिक उत्पादन हेतु एक आदर्श किस्म है।
(02) एन.ए. 6 (NA-6) – इस प्रजाति के वृक्ष फैलने वाले होते हैं। फल आकार में छोटे व चपटे श्वेताभ पीले होते होते हैं। इसकी फलत अच्छी होती है। फलों में रेशा बहुत कम होने के कारण यह मुरब्बा, जैम तथा कैंडी बनाने के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है।
03• चकैया – इसके वृक्ष सीधे बढ़ने वाले होते हैं। तथा फलत अच्छी होती है। फल छोटे से मध्यम आकार के चपटे, सफेदी लिए हरे रंग के होते हैं। गूदा में रेशा की मात्रा अधिक होती है। फल कम गिरते हैं। यह अचार और लच्छे बनाने के लिए उत्तम किस्म है-
प्रसारण (Propagation)-
(अ) बीज द्वारा )-देश के अनेक भागों में आंवले का प्रसारण बीज द्वारा होता है परंतु परपरागित होने के कारण बीज से तैयार वृक्ष मातृ वृक्ष के अनुरूप नहीं होते हैं अतः केवल मूल वृंत तैयार करने हेतु बीजों का प्रयोग करते हैं बीज की बुवाई मार्च में करते हैं।
(ब) वानस्पतिक विधि बीज द्वारा तैयार मूल वृंत पर कली चढ़ाई जाती है। बीजू पौधे जब 4 माह के हो जाते हैं तब इन पर जून से लेकर अगस्त तक कलिकायन करते हैं आंवला में व्यावसायिक रूप से पैबन्दी चश्मा रुपांतरित छल्ला चश्मा ढाल चश्मा की विधि अपनाई जाती है।
रोपड़)- पौध रोपण के लिए गड्ढे जून में खोदते हैं। गड्ढे का आकार 1 x 1 x 1 मीटर रखते हैं। गड्ढे के अंदर कंकर की कठोर पर्त को तोड़ देते हैं। गड्ढे से गड्ढे की दूरी किस्म के अनुसार 8 से 10 मीटर रखते हैं। पौधे वर्गाकार विधि से लगाते हैं। गड्ढे की भराई के समय प्रति गड्ढा 25 किग्रा गोबर की सड़ी हुई खाद तथा 100 ग्राम क्यूनालफॉस धूल को मिलाकर जमीन से 10 सेमी ऊंचाई तक भरकर सिंचाई करते हैं ताकि गड्ढे की मिट्टी अच्छी तरह से बैठ जाए इन्हीं गड्ढों में जुलाई से सितंबर के बीच या उचित सिंचाई का प्रबंध होने पर जनवरी से मार्च के बीच पौध रोपण का कार्य किया जाता है। प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि रोपण का कार्य जनवरी-फरवरी में करने पर अच्छी सफलता मिलती है वैज्ञानिकों एवं सफल किसानों की सलाह के अनुसार कम से कम 2 किस्में अवश्य लगाने चाहिए जो एक दूसरे के लिए परागकण करता का कार्य करती हैं। चकैया, एन.ए.6 अच्छे परागणकर्त्ता का कार्य करती है। आंवला के बाग में 5% परागद किस्में लगाने से उपज अच्छी मिलती है।
• आंवला के लिए खाद व उर्वरकों की मात्रा)- आंवले के लिए खाद एवं और उर्वरक की मात्र इस प्रकार से देते है-
• सिंचाई)- सामान्यता पौधों को शीत ऋतु में 10 से 15 दिन के अंतर पर तथा ग्रीष्म ऋतु में 7 दिन के अंतर पर सिंचाई करते हैं। किसान भाइयों फूल आने के समय (फरवरी-मार्च) में सिंचाई नहीं करनी चाहिए। अप्रैल से जून तक सिंचाई का विशेष महत्त्व है।किसान भाई टपक सिंचाई से आंवले में अच्छी उपज प्राप्त होती है।तथा खरपतवार भी कम उगते हैं।
• निराई-गुड़ाई)- किसान भाइयों अच्छी उपज प्राप्त हेतु निराई गुड़ाई करते रहना अती आवश्यक है। थाले की सफाई के लिए अच्छी तरह से गुड़ाई कर खरपतवार निकालते रहते हैं। थाले के चारों ओर पलवार (mulch) बिछा देने से खरपतवार कम हो जाते हैं, तथा नमी संरक्षित रहती है।
• अन्तराशस्यन)- किसान भाइयों प्रारम्भ के दिनों में जब बाग से कोई आमदनी नहीं होती है तथा पौधे छोटे होते हैं तो पंक्तियों के बीच में पालक, टमाटर, लहसुन, मैंथी, धनियां, मटर आदि की फसलें उगाते हैं , खाली स्थानों पर कम समय में तैयार होने वाले फल, जैसे- करौंदा, फालसा, पपीता को भी पूरक फसल के रूप में उगा कर अधिक लाभ कमा सकते हैं।
• कांट- छांट)- किसान भाइयों आंवला के वृक्षों में विशेष कांट-छांट की आवश्यकता नहीं होती है। सामान्य रूप से बागवान स्वस्थ्य वृक्ष के विकास हेतु, कांट छांट कर सूखी एवं रोगग्रस्त टहनियों को अलग कर देना चाहिए।
• पुष्पन एवं फलन)- वानस्पतिक प्रसारण द्वारा तैयार आंवला के वृक्ष तीन साल में फूलने लगते हैं, परंतु पांच या छह वर्षों बाद ही फलत लेना पौधे के स्वस्थ्य की दृष्टि से लाभदायक होता है। आंवला में फूल फरवरी-मार्च में आते हैं।
• तुड़ाई एवं उपज )- फल किस्मों के अनुसार नवम्बर से लेकर फ़रवरी तक पकते रहते हैं। तुड़ाई उस समय करनी चाहिए जब छिलके का रंग चमकदार हरापन लिए हुए पीला हो जाये। तुड़ाई हाथ से करनी चाहिए, जिससे फलों में खरोंच न आये।।आंवला के 10-12 वर्ष पुराने पेड़ से 150-200 किग्रा फल प्राप्त होते हैं।
किसान भाइयों से आग्रह है कि वे परती पड़ी व बंजर भूमि पर आंवले की खेती करें।जिससे वे अधिक लाभ कमा सकते हैं।
1 Comment
सोहनलाल कूमावत बालराई · August 8, 2018 at 5:24 am
श्रीमान
एक हेक्टेयर मे एलोवीरा लगाना है
एक हेक्टेयर में आँवला लगाना है
मोबाइल 9414549694