नमस्कार दोस्तों! Thekrishi में आप सभी का स्वागत है। दोस्तों रबी की फसल काटने के बाद आप सोचते हैं कि ऐसी कौन सी फसल लगायें जिसकी बाज़ार में मांग अधिक हो तथा उसका मूल्य भी अच्छा प्राप्त हो? आइये जानते हैं उस फसल के बारे में

 

★अदरक की खेती★

 

 

• किसान भाइयों भारत में उगाई जाने वाली मसालों की फसलों में अदरक का प्रमुख स्थान है। प्राचीन काल से इसका उपयोग मसाले के रूप में साग-भाजी, सलाद, चटनी तथा अचार और विभिन्न प्रकार की भोजन सामग्रियों के निर्माण एवं नाना प्रकार की औषधियों के निर्माण में होता है। इसे सुखाकर सौंठ बनाई जाती है। आजकल अदरक की खेती का विस्तार तीव्र गति से हो रहा है, क्योंकि अन्य फसलों की तुलना में अदरक की खेती अधिक लाभप्रद पाई गई है।

 

◆ जलवायु – किसान भाइयों अदरक वैसे तो गर्म तथा आद्र जलवायु का पौधा है, परंतु हिमाचल प्रदेश में इसकी खेती समुद्र तल से 1500 मीटर की ऊंचाई तक के स्थानों पर सफलतापूर्वक की जा सकती है। अदरक के लिए ऐसे स्थान सर्वोत्तम होते हैं, जहां नम वातावरण हो, फसल की वृद्धि काल में 50 से 60 सेमी वार्षिक वर्षा हो, भूमि में पानी नहीं ठहरता हो और हल्की छाया हो। पुराने आम के बागों की भूमि का उपयोग अदरक की खेती के लिए कर सकते हैं।

 

◆ भूमि और उसकी तयारी – किसान भाइयों अदरक की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है। लेकिन उचित जल निकास वाले दोमट या रेतीली दोमट भूमि इसकी खेती के लिए अच्छी होती है।

• अप्रैल-मई में मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करनी चाहिए और उसके उपरान्त 4-5 जुताइयां देशी हल से करके पाटा चला कर मिट्टी को भुरभुरा एवं समतल कर लेना चाहिए।

• सूत्रकृमि से बचाव के लिए बुवाई से पूर्व मिट्टी में थीमेट 10जी (10-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) दवा अवश्य मिलनी चाहिए।

 

◆ बोने का समय – अदरक की बुवाई क्षेत्र विशेष के मौसम के अनुसार मई-जून में की जाती है। जहां पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो वहां पर इसकी बुवाई अप्रैल से मई के मध्य तक करनी चाहिए। परंतु जहां पर वर्षा आधारित फसल उगानी हो वहां पर पहली वर्षा के ठीक बाद बुवाई करनी चाहिए। किसान भाइयों बुवाई के समय का उपज पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

 

◆ किस्में – अदरक की किस्मों को वानस्पतिक भागों की वृद्धि, गांठ के रंग-रूप एवं उसमें उचित रेशों के आधार पर विभाजित करते हैं। आमतौर पर अदरक की स्थानीय किस्में ही उगाई जाती हैं जिनसे उपज तो कम मिलती ही है साथ ही अदरक की गुणवत्ता निम्न कोटि की होती है। किसान भाइयों अब इसकी उन्नत किस्में उपलब्ध हैं-

 

(i) सुप्रभा – इस किस्म में फुटाव अधिक होता है। इसके प्रकन्द लंबे अण्डाकार सिरों वाले, चमकीले भूरे रंग के होते हैं। जिनमें रेशा 4.4 प्रतिशत तेल 1.9 प्रतिशत, ओलेरिओसिन 8.91 प्रतिशत होता है। यह किस्म पर्वतीय क्षेत्रों के लिए अति उत्तम है।

 

(ii) सुरुचि – यह एक अधिक उपज देने वाली किस्म है। इसके प्रकन्द हरापन लिए पीले रंग के होते हैं जिनमें रेशा 3.8 प्रतिशत, तेल 2 प्रतिशत और ओलेरिओसिन 10% होता है। इसमें रोग कम लगते हैं।

 

(iii) सुरभि –  इस किस्म को उत्परिवर्तन से विकसित किया गया है। यह एक अधिक उपज देने वाली किस्म हे। इसके प्रकन्दों में रेशा 4%, तेल 2.1% पाया जाता है। प्रकन्द अधिक संख्या में बनते हैं जिनका छिलका गहरे चमकीले रंग का होता है।

 

 

◆ बीज की मात्रा –  एक हेक्टेयर के लिए लगभग 20 से 25 कुंतल बीज प्रकन्दों की आवश्यकता होती है। बोने के लिए रोगमुक्त बीज प्रकन्दों की आवश्यकता होती है। जिन्हें 4 से 5 सेमी के टुकड़ों में विभाजित कर लेते हैं। प्रत्येक टुकड़े का भार 25 से 30 ग्राम होना चाहिए और उसमें दो आंखें अवश्य हो।

 

◆ बोने की विधि –  किसान भाइयों बीज प्रकन्दों को बोने से पूर्व 0.25 प्रतिशत डाइथेन एम-45 और वाविस्टोन (0.1%) के मिश्रित घोल में एक घण्टे तक डुबोना चाहिए। फिर एक-दो दिन छाया में सुखाना चाहिए। बाद में इन्हें 4 सेमी. की गहराई में भूमि में दबा देते हैं। पंक्तियों की आपसी दूरी 25 से 30 सेमी और पौधों की आपसी दूरी 15 से 20 सेमी रखते हैं। बीज प्रकन्दों को मिट्टी से भलीभांति ढक देना चाहिए।

• बुवाई के तुरंत बाद ऊपर से घास-फूस, पत्तियों व गोबर की खाद से भलीभांति ढक देना चाहिए। ऐसा करने से मिट्टी के अंदर नमी बनी रहती है और तेज धूप के कारण अंकुरण पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।

 

◆ खाद एवं उर्वरक – अदरक की फसल के लिए कितना खाद व उर्वरक होना चाहिए इसका पता लगाने के लिए मृदा जांच अनिवार्य है। यदि किसी कारणवश मृदा जांच ना हो सके तो उस स्थिति में गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद 20-25 टन भूमि की तैयारी से पूर्व खेत में मिला देनी चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की सम्पूण मात्रा प्रकन्द लगाते समय डालना चाहिए तथा नाइट्रोजन की शेष मात्रा को बुवाई के 50-60 दिन बाद खेत में डालकर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए।

 

 

◆ सिंचाई – अदरक की फसल में भूमि में बराबर नमी बनी रहनी चाहिए। पहली सिंचाई बुवाई के कुछ दिन बाद ही करते हैं और जब तक वर्षा प्रारंभ ना हो जाए, 15 दिन के अन्तर पर सिंचाई करते रहते हैं। गर्मियों में प्रति सप्ताह सिंचाई करनी चाहिए।

 

 

◆ निराई गुड़ाई –  अदरक के खेत को खरपतवार रहित रखने और मिट्टी को भुरभुरी बनाये रखने के लिए आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। अदरक की फसल अवधि में 2-3 बार निराई-गुड़ाई करना पर्याप्त होता है। प्रत्येक गुड़ाई के उपरांत मिट्टी अवश्य चढ़ायें।

 

◆ पलवार –  पत्तियों का पलवार देने से अंकुरण अच्छा होता है और खरपतवार भी कम लगते हैं। तीन बार पलवार देने से अधिकतम उपज मिलती है। 5000 किलोग्राम हरी पत्तियों का पलवार बुवाई के तुरंत बाद इतनी ही पत्तियों का पलवार 30 दिन व 60 दिन बाद देते हैं। जब पौधे 20-25 सेमी ऊंचे हो जायेें तो उन पर मिट्टी चढ़ा देते हैं।

 

◆ खुदाई – बुवाई के लगभग 7-8 महीनों बाद फसल को खोदा जा सकता है। परंतु सौंठ के लिए फसल को पूर्ण रूप से पक जाने पर ही खोदते हैं। फसल के पकने में मौसम और किस्म के अनुसार 7-8 माह लगते हैं। जब पौधों की पत्तियां सूखने लगे, तब प्रकंदों को फावड़े, कस्सी अथवा खुरपी से खोदकर निकाल लेते हैं।

 

◆ उपज – किसान भाइयों प्रति हेक्टेयर 100-150 कुंतल प्रकंद मिल जाते हैं। सूखने पर इससे 20 से 30 कुंतल तक सौंठ प्राप्त होती है।

 

◆ भण्डारण –  भण्डारण से पूर्व क्विनालफोस (0.025%) नामक दवा से 1/2 घंटे तक उपचारित करके व सुखाकर ही भण्डार गृह में रखना चाहिए।


1 Comment

laxman singh khangarot · September 13, 2018 at 6:07 pm

abhi bhi lga skte h kya

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