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            “सेब की खेती”

◆ महत्त्व_ किसान भाइयों सेब ठंडी जलवायु में उगाया जाने वाला फल है। यह पोषक तत्वों की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण फल है। स्वास्थ्य के लिए अत्यंत उपयोगी है। सेब में विटामिन ‘बी’ तथा ‘सी’ पाए जाते हैं। इसमें खनिज लवण भी पाए जाते हैं। सेब का सेवन हृदय, मस्तिष्क,जिगर, तथा आमाशय को बल देता है। गर्मी तथा रुक्षता को भी यह दूर करता है। सेब की चटनी,मुरब्बा, जेम तथा जेली इत्यादि पदार्थ बनाए जाते हैं। सेब की कुछ जातियां साग भाजी के रूप में भी प्रयोग की जाती है।

 

◆ जलवायु_ सेब समशीतोष्ण जलवायु का फल है।समुद्र तल से 1800 मीटर से लेकर 2700 मीटर तक की ऊंचाई पर सेब का पेड़ खूब फलता-फूलता है। सेब 60 सेमि० से 200 सेमी० वार्षिक वर्षा वाले तथा 5 डिग्री सेल्सियस से 20 डिग्री सेल्सियस ताप वाले स्थानों पर सफलतापूर्वक उगाया जाता है।

 

◆ जातियां _ किसान भाइयों इसकी जातियों को तीन भागों में बांटा जा सकता है-

(i) शीघ्र पकने वाली जातियां- समर गोल्डनपिपिन, जेम्स ग्रीव तथा अरली शेनबरी, फैनी।

(ii) मध्य पकने वाली जातियां- बेनोनी, विंटर, बेनाना किंग ऑफ दी टोमकिन्स काउन्टी।

(iii) पछेती जातियां_ रोम ब्यूटी डेलिशस,विस्मार्क, राइमर, किंगऑफ पिपिन, जोनाथेन, रैड डेलीशस, गोल्डन डेलिशस, अंबरी कश्मीरी, रोम ब्यूटी।

• रेड डेलिशस, गोल्डन डेलिशस, अम्बरी कश्मीर, रोम ब्यूटी, जोनाथेन,अर्ली शेनबरी, विंटर बेनाना तथा चौबटिया अनुपम आदि सेब की अधिक उपज देने वाली जातियां हैं।

◆ भूमि_ सेब के लिए मृतिका दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है। भूमि से पानी के निकास का उत्तम प्रबंध होना चाहिए। सेब की अच्छी उपज के लिए भूमि पर्याप्त रूप से गहरी होनी चाहिए। कुछ-कुछ अम्लीय भूमि सेब के लिए अनुकूल रहती है।

◆ खाद तथा उर्वरक_ प्रत्येक गड्ढे में अच्छी उपज के लिए 10 से 12 किलोग्राम अच्छी सड़ी गोबर की खाद डालनी चाहिए। प्रत्येक पेड़ के थाले में 30 ग्राम नाइट्रोजन 25 ग्राम फास्फोरस तथा 50 ग्राम पोटास डालना चाहिए। प्रथम वर्ष में मार्च-अप्रैल में प्रत्येक गढ्ढे में 150 ग्राम के हिसाब से कैल्शियम अमोनिया नाइट्रेट भी मिलाना चाहिए।

 

◆ निकाई _ किसान भाइयों गुड़ाई एवं सिंचाई_ सेब के प्रत्येक गड्ढे की दो या तीन बार निकाई गुड़ाई करना आवश्यक होता है क्योंकि पहली सिंचाई के पश्चात थालो में छोटी-छोटी घास उग जाती है।बसन्त ऋतु में पौधों को एक या दो वर्ष तक अधिक सिचाई की आवश्यकता होती है।पर्याप्त वर्षा के कारण सेब को सींचने की बहुत कम जरूरत पड़ती है।

 

◆ कटाई एवं छटाई_ किसान भाइयों बाग में पेड़ लगाने के तुरंत बाद उसे लगभग 70 से 80 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर काट देना चाहिए। इसके बाद पेड़ का ढांचा बनाने के लिए कटाई छटाई करते रहना चाहिए। इसके लिए मोडीफाइड लीडर विधि ठीक रहती है। इस विधि में मुख्य तने को बढ़ने दिया जाता है तथा उसके पास की 6 या 7 शाखाओं को चुन लेना चाहिए। शाखाओं की आपस की दूरी 20 से 30 सेंटीमीटर रहनी चाहिए। इन शाखाओं का चुनाव करने में 3 या 4 वर्ष का समय लग जाता है। जब सभी शाखाएं बन जाएं तो मुख्य तने को काट देना चाहिए। शाखाएं तने से सटी नहीं होनी चाहिए। छटाई करते समय शाखाओं के सिरे नहीं काटने चाहिए। सुखी, रोगी व टूटी हुई शाखाओं को काट देना चाहिए। कटाई व छटाई सर्दी में करनी चाहिए क्योंकि इन दिनों में पेड़ की बढ़वार नहीं होती।

 

◆ कीट तथा बीमारियां एवं रोकथाम_ किसान भाइयों सेब के पेड़ पर निम्नलिखित कीट तथा बीमारियां पाई जाती है-

“कीट”

(i) जड़ छेदक_ इस कीट की इल्ली सेब की जड़ को खाती है। इसके नियंत्रण के लिए प्रत्येक गड्ढे में 250 ग्राम एल्ड्रिन चूर्ण मिट्टी में मिला देना चाहिए।

(ii) तना छेदक_ यह कीट तने में छेद करता है। इसके नियंत्रण के लिए क्लोरोफॉर्म क्रियोजोट(1:3) दवा के घोल में रुई भिगोकर छेद में लगा देनी चाहिए और छेद को मिट्टी से बंद कर देना चाहिए। क्लोरोफॉर्म की जहरीली गैस से किट मर जाता है।

बूली एफिड_ इसकी माहू पेड़ का रस चूसती है। इसके नियंत्रण के लिए मेटासिस्टाक्स का.1% का घोल स्हिछिड़कना चाहिए।

गुबरेले कीट_ यह कीट पत्ती खाता है। इसके नियंत्रण के लिए साईपरमेथ्रीन 1 पॉइंट 5 मि० लीटर 1 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

“रोग”

(i) जड़ सड़न रोग_ इस रोग से जड़े कमजोर हो जाती है तथा सड़ जाती हैं। इसकी रोकथाम के लिए 10 से 15 दिन तक जड़ों से मिट्टी हटाकर खुला छोड़ने के बाद 1% ब्रेसिकाल 75 डब्लू० पि० नामक दवा का घोल 8 से 10 लीटर प्रति पेड़ के हिसाब से डालिये जिसमें 0.2% के हिसाब से थायोडान 35 ई०सी०नामक दवा भी मिला लेनी चाहिए।

 

(ii) तने का भूरा, काला और गुलाबी रोग_ इस रोग के नियंत्रण के लिए रोगी टहनियों को काट देना चाहिए।लाइम सल्फर नामक दवा का 1:15 अनुपात का पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

 

(iii) चूर्णी फफूंदी रोग_ इस रोग में भी लाइम सल्फर दवा का छिड़काव लाभकारी रहता है। इसके स्थान पर करथेन दवा का भी .1% का घोल छिड़का जा सकता है।

 

(iv) शूटी ब्लाच_ इस रोग के नियंत्रण के लिए जुलाई अगस्त माह में इंडोफिल एम 45 दवा का पॉइंट 25% का घोल बनाकर छिड़कना चाहिए।

 

(v) स्केब रोग_ इस रोग की रोकथाम के लिए लाइम सल्फर दवा (एक भाग दवा 60 भाग पानी) का घोल छिड़कना चाहिए।

 

 

◆ फलों की तुड़ाई_ किसान भाइयों फलो को तोड़ते समय ध्यान रखना चाहिए कि फलों का डंठल सहित तोड़ा जाए तथा फलों में आपस में चोट नहीं आनी चाहिए। बाजार में अक्टूबर से दिसंबर तक फलों की पर्याप्त पूर्ति रहती है।

 

◆उपज_किसान भाइयों पहाड़ी क्षेत्रों में एक पेड़ से कुल उपज 2से 3 कुंतल पाई गई है जबकि उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में एक वृक्ष से 80 से 100 किलोग्राम फल प्रति वृक्ष प्राप्त होते है। इस प्रकार प्रति हेक्टेयर 200 से 250 कुंतल सेब मैदानों में तथा 500 से 600 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पहाड़ों पर प्राप्त होते हैं।