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                      “आम की खेती”
◆ महत्व_किसान भाइयों आम भारत का राष्ट्रीय फल है। प्राचीन काल से आम मनुष्य का एक महत्वपूर्ण फल रहा है। भारतीय जनता आम को बड़े चाव से खाती है। वर्तमान समय में भी आम संसार के सर्वश्रेष्ठ फलों में से एक है। आम को अनेक प्रकार से खाने के काम लिया जाता है; जैसे अमचूर, चटनी, अचार, मुरब्बा, स्क्वैश तथा पका आम चूसने और खाने के काम में लाया जाता है। आम विटामिन ‘ए’ तथा ‘सी’ काफी मात्रा में प्रदान करता है। कच्चे फलों का गूदा तथा शर्करा मिलाकर आमरस तैयार किया जाता है जो हैजे तथा प्लेग के रोगों के लिए बहुत लाभदायक माना जाता है। यहां तक कि आम की गुठलियों का भी प्रयोग किया जाता है। दस्त तथा दमा आदि की बीमारियों में आम की गुठलियाँ काम आती हैं। आम के पत्ते तथा लकड़ियाँ भी धार्मिक उत्सवों में सजावट तथा यज्ञ आदि में काम आती हैं।
हमारे देश में आम की फसल के अंतर्गत लगभग 10 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल है जिससे लगभग 85 लाख टन आम के फल प्राप्त होते हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में भारत के संपूर्ण क्षेत्रफल के आधे से अधिक क्षेत्रफल पर आम की खेती की जाती है। उत्तर प्रदेश के पश्चिमी तथा पूर्वी दोनों ही भागों में आम की काफी पैदावार होती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ तथा बुलंदशहर आदि जिलों में आम का अधिक उत्पादन होता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में मलिहाबादी, इलाहाबाद तथा लखनऊ जिलों में आम की बहुत अच्छी जातियाँ उगाई जाती हैं, जिनमें बहुत ही स्वादिष्ट मीठे रसीले आम प्राप्त होते हैं। मलिहाबादी, दशहरी आम बहुत प्रसिद्ध है।
◆ जलवायु_किसान भाइयों आम उष्ण प्रदेश का सर्वश्रेष्ठ फल है तथा यह ऊष्ण और उपोष्ण जलवायु में उगने वाला पौधा है। इसकी अच्छी वृद्धि एवं उपज के लिये 150-250 सेमी वार्षिक वर्षा पर्याप्त होती है। बौर (फूलों) के आने के समय आसमान साफ रहने तथा वर्षा आदि न होने से पेड़ों पर अधिक फल बनते हैं तथा उपज भी अधिक होती है। आम के वृक्ष उन स्थानों पर अच्छी तरह फलते-फूलते हैं, जहाँ शरद ऋतु में तापक्रम 4℃-5℃ से कम न हो तथा ग्रीष्म ऋतु 44℃ से ज्यादा ना होता हो।
◆ उन्नत जातियां_किसान भाइयों भारत में आम की अनेक जातियां पायी जाती हैं, परंतु पकने के समय के आधार पर मुख्य जातियां निम्नलिखित हैं-
(i) शीघ्र पकने वाली _ ये जातियां मई के अंत से मध्य जून तक पक कर तैयार हो जाती हैं, जैसे शाहबाद, बम्बई हरा, बम्बई पीला, गोपाल भोग, जाफरानी, अल्फांसो, गुलाब खास आदि।
(ii) मध्यम समय में पकने वाली_ ये जातियां जून के अंत से मध्य जुलाई तक पक कर तैयार हो जाती हैं, जैसे लंगड़ा, दशहरी, मल्लिका, कृष्ण भोग, सफेदा लखनऊ, सफेदा मलीहाबादी, आम्रपाली, मल्लिका,अरुणिमा, बस्ती-5 आदि।
(iii) देर से पकने वाली_ ये जातियाँ मध्य जुलाई से अगस्त तक पकती हैं; जैसे फजरी, चौसा, रामकेला तथा बानेशान, तैमूरिया, नीलम आदि।
• इन जातियों के अतिरिक्त आम की सिन्धु, मधुलिका, STH-1 तथा अरुणिमा भी नई विकसित जातियाँ हैं।
◆ भूमि_ आम कंकरीली, पथरीली, छिछली, अधिक क्षारीय तथा जलमग्न भूमियों को छोड़कर सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है। परंतु अच्छी बढ़वार और फसल के लिये दोमट भूमि अच्छी रहती है। भूमि का पीएच मान 5.5 से 7.5 के बीच ठीक रहता है।
◆ प्रवर्धन _ किसान भाइयों आम का प्रवर्धन मुख्यत: दो प्रकार से किया जाता है- (i) बीज द्वारा, (ii) वानस्पतिक विधियों द्वारा।
(i) बीज द्वारा_ यह सबसे प्राचीन, सस्ती एवं सुविधाजनक विधि है, परन्तु इस विधि से तैयार पौधे फलत करने में अधिक समय लेते हैं और अधिकांश अपने मातृ पौधों से खराब ही फल देते हैं। इसलिए अब आम को बीज द्वारा उत्पन्न नहीं करते हैं।
(ii) वानस्पतिक विधि से आम की पौध तैयार करना_ आम की जाति के गुणों को बनाये रखने के लिए वानस्पतिक विधियाँ अधिक उपयुक्त रहती हैं। प्रायः इसके लिए निम्नलिखित दो विधियां प्रयोग की जाती हैं-
(A) भेट कलम बाँधना _ इस विधि में एक वर्ष पुराने गमलों में लगे बीजू पौधों को जिन पर कलम बाँधनी होती है मातृ वृक्ष के समीप लाया जाता है। मातृ वृक्ष पर मूल व्रन्त के समान मोटी शाखा का चुनाव करते हैं। दोनों शाखाओं से 4-5 सेमी. लम्बी छाल और थोड़ी लकड़ी साइड से काट दी जाती है। फिर दोनों कटे भागों को सुतली या पॉलीथिन कागज से बांध देते हैं। लगभग 2 महीने में शाखा जुड़ जाती है। जब जोड़ पक्का हो जाये तो मातृ वृक्ष वाली शाखा को जोड़ के ठीक नीचे से काटकर अलग कर दिया जाता है। इसके बाद मूल वृन्त पौधे का ऊपरी भाग जोड़ के ऊपर से काट दिया जाता है। इस प्रकार तैयार किया गया कलमी पौधा पहले किसी छायादार स्थान पर रखा जाता है। इसके बाद इसे बाग में रोपाई के लिए प्रयोग करते हैं। भेंट कलम बांधने का उत्तम समय जून-जुलाई माह है।
(B) विनियर कलम चढ़ाना_ किसान भाइयों इस विधि में बीजू पौधों को मातृ वृक्ष के समीप ले जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। कलम बांधने के लिए 3-4 माह पुरानी, स्वस्थ शाखाओं का चुनाव किया जाता है। करीब एक सप्ताह पूर्व इन चुनी हुई शाखाओं की पत्तियों को तोड़ देते हैं। बीजू पौधे जिन पर कलम चढ़ाना है एक वर्ष की अवस्था के होने चाहिए। वे पौधों जिन पर कलम बांधी जाती है मूलवर्न्त कहलाते हैं। कलम बांधने के लिए मूलव्रन्त पर 4-5 सेमी लंबी छाल व कुछ लकड़ी छीलकर कटे हुए भाग के निचले छोर को ‘V’ आकार देना चाहिए। इसी तरह साँकुर डाली की छाल छील कर मूलव्रन्त के कटे भाग में जोड़ देना चाहिए। इसके बाद इस जोड़ को सुतली या पॉलिथीन से बांध देना चाहिए। साँकुर डाली की लंबाई 10-15 सेमी होनी चाहिए। विनियर कलम बांधने का उत्तम समय फरवरी-मार्च बाद जून-जुलाई है। इस विधि में 80-85% सफलता मिलती है। यह एक सस्ती और सरल विधि है।
◆ पौध की रोपाई अथवा पौधे लगाना_ खेत को अच्छी प्रकार जुताई करके तैयार किया जाता है। इसके बाद 10-10 मीटर के अन्तर पर 1 मीटर गहरे तथा 1 मीटर व्यास के गड्ढे बना लिए जाते हैं। एक गड्ढे में 30-40 किग्रा गोबर की खाद, 2.5 किग्रा सुपर फास्फेट तथा 150 ग्राम एल्ड्रिन डस्ट को गड्ढे से निकली ऊपर की मिट्टी में मिला कर गड्ढे को भर देते हैं और धरातल से 15 सेमी ऊपर रखते हैं। तैयार गड्ढे के बीच में पौधे की रोपाई करते हैं। पौधे की रोपाई का समय जुलाई-अगस्त का महीना है। रोपाई के तुरन्त बाद एक सिंचाई करनी आवश्यक होती है। एक हेक्टेयर में 10×10 मीटर की दूरी पर आम लगाने पर पौधों की संख्या 100 होती है।
◆ खाद तथा उर्वरक_ किसान भाइयों आम के पौधों में उनकी आयु के आधार पर खाद तथा उर्वरकों की मात्रा निम्न तालिका के अनुसार देनी चाहिए-
फॉस्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा रासायनिक उर्वरकों द्वारा दिसंबर माह में देनी चाहिए। नाइट्रोजन दो बार जनवरी तथा मार्च में रासायनिक उर्वरकों द्वारा देनी चाहिए। गोबर की खाद वर्षा के प्रारंभ में डाली जानी चाहिए। खाद तथा उर्वरक पेड़ के फैलाव में डालने के बाद भली-भांति गुड़ाई कर देनी चाहिए।
तांबा व जस्ता के लिये तांबा तथा जस्ता का 0.2% और चूने का घोल बनाकर पत्तियों पर छिड़काव करना चाहिए। बोरॉन के लिए बोरेक्स का एक प्रतिशत का घोल छिड़कना चाहिए। आम में पुष्पन व फलन जल्दी और अधिक होने के लिए जुलाई-अगस्त में 5-10 ग्राम पोली ब्यूटाजोल प्रतिवर्ष प्रति पेड़ भी देना अच्छा रहता है।
◆ निकाई गुड़ाई तथा सिंचाई _ पौधों के थालों की समय-समय पर निकाई-गुड़ाई करके खरपतवार आदि निकालते रहते हैं। यह कार्य वर्ष में दो बार जुलाई तथा दिसंबर में अवश्य कर देना चाहिये। आम के पौधों की सिंचाई 20 दिन के अन्तर पर कर देनी चाहिए परन्तु ग्रीष्म ऋतु में सिंचाई 10-15 दिन के अन्तर पर करते हैं। पौधों पर बौर (फूल) आने के समय सिंचाई नहीं करनी चाहिये।
 ◆पौधों के फूलने एवं फलने का समय_ किसान भाइयों कलम लगाये आमों पर 5 वर्ष की आयु के पौधों पर फूल एवं फल आने लगते हैं। साधारणतया फूल जनवरी के अंत अथवा फरवरी-मार्च माह में निकलने शुरू होते हैं। लगभग 3-4 माह में फल बनकर पककर तैयार हो जाते हैं। उत्तरी भारत में फल जून से अगस्त तक पकतें हैं।
◆ आम में एकान्तर फलत (आल्टरनेट बियरिंग)_ आम के पौधों पर प्रतिवर्ष फल नहीं आता, साधारणत: एक वर्ष का अन्तर छोड़कर हर तीसरे वर्ष फल आता है, इसे ही आम का एकान्तर फलन कहते हैं। जिस वर्ष फल आता है उसे ऑन इयर तथा जिस वर्ष फल नहीं लगते उसे ऑफ़ ईयर कहते हैं। एकान्तर फलन के बहुत से कारण हो सकते हैं, जो निम्न प्रकार हैं-
(i) भूमि में पोषक तत्वों का असन्तुलन हो जाना।
(ii) सिंचाई अथवा नमी का अभाव हो जाना।
(iii) वृक्षों को हवा, रोशनी तथा धूप का अभाव हो जाना।
(iv) फल वृक्षों की आयु अधिक हो जाना।
(v) भूमि में नाइट्रोजन की अधिकता हो जाना।
 ◆ कीट तथा बीमारियाँ एवं रोकथाम- किसान भाइयों आम की फसल में निम्नलिखित कीट लगते हैं-
(i) मैन्गो होपर (आम का भुनगा)_ यह छोटा गहरे स्लेटी रंग का फुदकने वाला कीट होता है। यह कीट पत्तियों, फूलों तथा नई कोमल शाखाओं से रस चूस कर बहुत हानि पहुंचाता है। इसकी रोकथाम के लिए 0.2 प्रतिशत सेविन (50%) दवा के घोल के 15 दिन के अन्तर से तीन छिड़काव जनवरी से फरवरी के महीनों में करनी चाहिए।
(ii) मैन्गो मीली बग (आम का सफेद मूंगा) इस कीट के निम्फ हल्के गुलाबी रंग के, दिसंबर के महीने में मिट्टी में दबे अण्डों से निकलकर पेड़ों पर चढ़कर मुलायम शाखाओं तथा फलों का रस चूस जाते हैं जिससे फलत बहुत कम हो जाती है और जो फल लगते हैं वह भी थोड़े समय पश्चात गिरने लगते हैं। इसका व्यस्क सफेद रंग का होता है। इसकी रोकथाम के लिए पेड़ों के तनों पर 30 सेमी चौड़ी पॉलिथीन की पट्टी बांधकर उसके निचले भाग पर ग्रीस लगा देते हैं। पट्टी से नीचे तने पर फालीडाल डस्ट (धूल) छिड़क देना चाहिये। पेड़ों के तने पर बिरोज या तारकोल की भी 30 सेमी चौड़ी पट्टी लगाई जा सकती है। यह क्रिया नवंबर के महीने में कर देनी चाहिये। दिसंबर-जनवरी के महीने में ग्रीज बेन्डिंग करने या ओस्टिको पदार्थ की पट्टी बांधकर भी इनको ऊपर चढ़ने से रोका जा सकता है।
मैन्गो फ्लाई (आम की मक्खी)_ यह मक्खी आम के गूदे में अण्डे देती है जिससे फलों में सड़ाव उत्पन्न होने लगता है। रोकथाम के लिए सड़े हुए फलों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिये।
◆ आम की फसल में निम्नलिखित बीमारियां लगती हैं-
(i) एन्थ्रोकनोज (काला वर्ण)_ यह एक कवकजनित रोग है जो पौधों की नवीन टहनी, पत्ते तथा फल आदि कोमल भागों पर प्रभाव डालता है तथा प्रभावित भाग सूखने लगता है। फलत कम होती है तथा फलों पर काले धब्बे पड़ जाते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिये 0.25% ब्लाइटॉक्स के 2-3 छिड़काव किए जाने चाहिये।
(ii) पाउडरी मिल्ड्यू या चूर्णी फफूँद या आम का खर्श रोग_ यह भी एक कवक जनित रोग है जो पौधे की पत्तियों फूल तथा फलों को प्रभावित करता है इस रोग में फूलों फलों और पत्तियों पर सफेद चोर जैसी फफूंदी उत्पन्न हो जाती है प्रभावित भाग सूख कर गिर जाता है इस रोग की रोकथाम के लिए फरवरी-मार्च में केरोसिन दवाई का 0.06 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए
(iv) बंची टॉप (आम का गम्मा) _ इस रोग में आम की टहनियों के अगले भाग सूखने लगते हैं यह भी एक कवक जनित रोग है इसकी रोकथाम के लिए ग्रसित टहनियों को काट कर जला देना चाहिए इस रोग में आम की नई शाखाएं शाखाओं तथा फूलों के भाग गुच्छेदार बन जाते हैं जिन पर फल नहीं लगते रोकथाम के लिए ऐसे भागों को काट कर नष्ट कर देना चाहिये।
(v) आम का कोयली रोग (ब्लैक टिप)_ इस रोग में आम के फलों का निचला भाग काला पड़कर सड़ने लगता है। यह रोग विशेषकर वहां लगता है जहां पर आम के बागों के पास ईंटों के भट्टे लगे होते हैं। ईंटों के भट्टे से निकलने वाले धुएं में सल्फरडाइ-ऑक्साइड गैस होती है जो फलों के नीचे के नुकीले भाग को काला कर देती है। इस रोग की रोकथाम के लिये आम के बाग से लगभग 2 किमी. की परिधि से बाहर की ईंटों के भट्टे लगाने चाहिएँ। यदि बाग भट्टे से 2 किमी. की परिधि केे अंदर पड़ता हो तो आम के पौधों पर अप्रैल-मई के महीने में 10-10 दिन के अन्तर से 2-3 बार बोरेक्स (सुहागा) का 0.6% का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये।
◆ कटाई-छंटाई _ आम के पौधों की अक्टूबर-नवंबर के महीनों में सूखी टहनियों, रोगग्रस्त शाखाओं तथा झुकी हुई टहनियों की कटाई-छंटाई कर देनी चाहिये।
◆ फल तोड़ना एवं उपज_ आम की फसल जून के प्रारंभ से लेकर अगस्त तक पकती है। प्रति पेड़ 1-2 क्विंटल तक आम प्राप्त हो जाते हैं। इस प्रकार प्रति हेक्टेयर 150-200 क्विंटल उत्पादन मिल जाता है।