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दोस्तों आज हम बात करेंगे तरबूज की फसल में लगने वाले विभिन्न रोग व उनकी रोकथाम के बारे में।
दोस्तों तरबूज का हमारे जीवन में बड़ा ही महत्व है।और यह बहुत ही लोकप्रिय भी है। कहते हैं, गर्मी बिन तरबूज के अधूरी सी लगती है, तरबूज को उसके लाल रंग और मिठास के कारण अधिक पसंद किया जाता है। और इसके बीजों की गिरी के बिना मिठाई सजी-सजाई नहीं लगती। इसके साथ ही यह बहुत से रोगों में भी लाभप्रद है। तरबूज के सेवन से लू से बचा जा सकता है तथा इसके रस को नमक के साथ सेवन करने से मूत्राशय में होने वाले रोगों से आराम मिलता है। तरबूज की 80% खेती नदियों के किनारे होती है। और इसे मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश तथा बिहार में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है।
  • तरबूज की फसल में निम्न रोग लगते हैं
  • (क) फफूंद द्वारा होने वाले मुख्य रोग)-
01• मृदुरोमिल आसिता – इस रोग के लक्षण पत्ती की ऊपरी सतह पर हल्के पीले कोणीय धब्बे दिखाई देते हैं। बाद में पत्ती की निचली सतह पर मृदुरोमिल फफूंद बैंगनी रंग की दिखाई देती है। फल आकार में छोटे हो जाते हैं। रोगी पौधों के पीले धब्बे शीघ्र ही लाल, भूरे रंग के हो जाते हैं।
नियन्त्रण- (i) फसल के पकने के बाद फसल के अवशेष को जला देना चाहिए।
(ii) खड़ी फसल पर मैन्कोजेब 0.2% की दर से छिड़काव करने से इस बीमारी को कम कर सकते हैं।
(iii) रोग रोधी प्रजातियां उगाना चाहिए।
02• म्लानि (विल्ट)  – इसमें पौधे की वृद्धि रुक जाती है।पौधा मुरझा कर सूख जाता है।पौधों की जड़े व भीतरी भाग भूरा हो जाता है। लक्षण सबसे स्पष्ट फूल आने व फल बनने की अवस्था पर ज्यादा दिखाई देते हैं।
• नियंत्रण -(i) रोगरोधी प्रजातियां उगानी चाहिए।
(ii) किसान भाइयों, भूमि सोर्यीकरण करने से भी इस बीमारी को कम कर सकते हैं।
(iii) बुवाई से पूर्व बीज को बेविस्टीन (1-2 ग्राम/लीटर पानी) से उपचारित करना चाहिए।
03• चूर्णिल आसिता – रोग ग्रसित पौधों की पत्तियों की ऊपरी सतह पर सफेद या धुंधले धूसर, गोल व चूर्ण रूप में छोटे धब्बे बनते हैं जो बाद में पूरी पत्ती पर फ़ैल जाते हैं।
• पत्तियों व फलों का आकार छोटा व विकृत हो जाता है। तीव्र संक्रमण होने पर पत्तियां गिर जाती हैं व पौधों का असमय निष्पत्रण हो जाता है।
• नियंत्रण – (i) रोग ग्रसित पौधों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए।
(ii) बीज सदैव स्वस्थ ही बोना चाहिए।
(iii) रोग के प्रारम्भिक अवस्था पर कैराथेन (1 ग्राम/लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करना चाहिए।
 (ख) विषाणु द्वारा होने वाले रोग
01• कुकुम्बर मौजेक – यह रोग वायरस द्वारा फैलता है। इस रोग के प्रभाव से पौधे छोटे रह जाते हैं, तथा पौधों की नयी पत्तियां छोटी, तथा उन पर पीले रंग के धब्बे दिखाई पड़ते हैं। पत्तियां सिकुड़ कर मुड़ जाती हैं। इस रोग से प्रभावित पौधों में फूल गुच्छों में होते हैं।तथा फल भी छोटे या नहीं लगते हैं।
नियन्त्रण – (i) बीज को उपचारित करके बोना चाहिए।
(ii) ग्रसित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए।
(iii) इमिडाक्लोप्रिड  (3-5मिली)10 लीटर पानी) दवा का एक सप्ताह अंतराल पर खड़ी फसल पर दो बार छिड़काव करें, जिससे रोगवाहक कीट नष्ट हो जाते हैं।
02• कलिका नेक्रोसिस- पत्तियों की शिराओं से नेक्रोसिस धारियां बन जाती हैं। इन्टरनोड छोटे रह जाते हैं, बाद में कलिका सूख जाती है। पत्तियां सिकुड़ कर पिली पड़ जाती हैं।
नियंत्रण – स्वस्थ बीज बोना चाहिए।
(ii) रोगी पौधों के भाग को इकट्ठा करके जलाना चाहिए।
(iii) इमिडाक्लोप्रिड  (3-5मिली)10 लीटर पानी) दवा का एक सप्ताह अंतराल पर खड़ी फसल पर दो बार छिड़काव करें, जिससे रोगवाहक कीट नष्ट हो जाते हैं।

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