सीमान्त किसान:-
इसके अन्तर्गत वे किसान आते हैं, जिनकी कृषि जोत का आकार अर्थात कृषि योग्य भूमि “एक हेक्टेयर” से कम होता है।
लघु किसान:-
इसके अन्तर्गत वे किसान आते हैं, जिनकी कृषि जोत का आकार अर्थात कृषि योग्य भूमि “एक हेक्टेयर” से “दो हेक्टेयर” के बीच होता है।
लघु एवं सीमान्त किसानों की विशेषताएं
इन कृषकों के पास अपनी जीविका चलाने के लिए सिवाय कृषि के और दूसरा साधन न होने से इनकी समस्याएँ बढ़ जाती हैं। इसके लिए आवश्यक कृषिगत सुधार के साथ-साथ कृषि से सम्बन्धित अन्य गतिविधियाँ जैसे- पशु-पालन, मत्स्य-पालन एवं कृषि के विविधीकरण में सुधार को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। हालाँकि सरकार द्वारा गत वर्ष से पशु-पालन एवं मत्स्य-पालन की गतिविधियों में सुधार के लिए एक वृहत कार्यक्रम प्रारम्भ किया है जो इस दिशा में एक प्रशंसनीय कदम माना जा सकता है। किन्तु कृषि के विविधीकरण के लिए प्रभावशाली विपणन एवं आधुनिक बाजार व्यवहार आवश्यक है क्योंकि सूक्ष्म स्तर पर किये गये कई अध्ययनों से यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि लघु एवं सीमान्त कृषकों की बाजार में बिकने योग्य उपज का लगभग 50 प्रतिशत भाग संकटकालीन बिक्री के रूप में निकल जाता है और तत्काल भुगतान प्राप्त करने के लिए यह कृषक 10 प्रतिशत से 15 प्रतिशत तक रियायत देने को भी तैयार हो जाते हैं। इसलिए आवश्यक है कि भण्डारण सुविधाओं का विकास किया जाए। साथ ही उन्हें नगदी फसलों को उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
1 Comment
Alish · November 12, 2018 at 6:28 pm
Good