नमस्कार किसान भाइयों,आज हम बात करेंगे धान की उन्नत खेती के बारे में

धान  सम्पूर्ण विश्व में पैदा होने वाली प्रमुख फसलों में से एक है। प्रमुख खाद्यान्न चावल इसी से प्राप्त होता है। धान भारत सहित, एशिया और विश्व के अधिकांश देशों का मुख्य खाद्य है। मक्का के बाद धान की फसल ही मुख्य रूप से विश्व में बड़े पैमाने पर उत्पन्न की जाती है। किसी अन्य खाद्यान्न की अपेक्षा धान की खपत विश्व में सर्वाधिक है। चीन के बाद भारत का चावल के उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है। धान की अच्छी उपज के लिए 100 सेमी. वर्षा की आवश्यक होती है।

खेत की तैयारी-

किसान भाइयों गरमी के मौसम में सही समय पर खेत की गहरी जुताई हल या प्लाउ चला कर करें, जिस से मिट्टी उलटपलट जाए। मेंड़ों की सफाई जरूर करें। गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद 10 से 12 टन प्रति हेक्टेयर की दर से अंतिम जुताई या बारिश से पहले खेत में फैला कर मिलाएं।

उन्नत प्रजातियां-

 जेआर-75, कलिंगा

शीघ्र पकने वाली प्रजातियां

दंतेश्वरी, जेआर 201,जेआर 345,पूर्णिमा

मध्यम अवधि में पकने वाली प्रजातियां

आईआर 36, आईआर 64, महामाया एमटीयू 1010, माधुरी,पूसा बासमती 1, पूसा सुगंधा 2

देर से पकने वाली प्रजातियां

स्वर्णा, श्यामला, महासुरी।

 

बीजोपचार-

बीज को थायरम या डायथेन एम 45 दवा 2.5 से 3 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करके बुवाई करें। बैक्टेरियल बीमारियों के बचाव के लिये बीजों को 0.02 प्रतिशत स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के घोल में डुबाकर उपचारित करना लाभप्रद होता है।

धान की खेती के प्रकार

(अ) निचली मृदाओं में धान की खेती

(A) लेहयुक्त मृदाओं में खेती

धान के खेत में लेह के लाभ-

• खेत से खरपतवारों को नष्ट करने एवं उनको लेहयुक्त सतह में दबाने में सहायक है।

• धान की फसल की अच्छी वृद्धि के लिए मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक दशाओं को उपयुक्त बनाती है।

• भूमि की सतह अधिक समतल हो जाती है।

• लेह लगाने से, लीचिंग द्वारा होने वाली पोषक तत्वों की हानि कम होती है।

(i) खेत में रोपण विधि या पौध विधि-

(a) पौध विधि – ऐसी मृदाओं में अधिकतर पौधे लगाकर ही धान की खेती करते हैं। पौध लगाने के लिए छोटी-छोटी क्यारियां (बीज शैयाओं) की आश्यकता होती है। बीज शैया के लिये ऐसी भूमि छाँटनी चाहिए जहां पर सिंचाई की सुविधा प्राप्त हो।

पौध तैयार करना- पौध उपजाऊ, जल निकास वाले खेत में उगानी चाहिये जो कि सिंचाई के साधन के पास हो। एक हैक्टेयर रोपाई के लिये 500 वर्ग मीटर पौध क्षेत्र (एक हेक्टेयर का बीसवां भाग) पर्याप्त होता है। धान की पौध के लियेे जया, आई.आर. 8, मध्यम देर से पकने वाली किस्मों; जैसे- रत्ना, आई.आर. 24, कावेरी, साकेत 4, आदि की बुवाई 15 जून के आसपास करनी चाहिए।

★ धान की पौध तैयार करने की निम्नलिखित विधियां हैं-

 

1. भीगी विधि – इस विधि द्वारा पौध तैयार करने के लिये खेत में पानी भरकर दो या तीन बार जुताई कीजिए ताकि मिट्टी लेहयुक्त हो जाये तथा खरपतवार नष्ट हो जायें। आखरी जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिये। इसके एक दिन बाद जब मिट्टी की सतह पर पानी ना रहे तब खेत को सवा से डेढ़ मीटर चौडी तथा सुविधाजनक लंबी क्यारियों में बांट लीजिए ताकि बुवाई, निराई, सिंचाई आदि क्रियाएं आसानी से की जा सकें। बीज दर प्रति 10 वर्ग मीटर (8 x 1.25 वर्ग मीटर) जया, आर. आई. 8, आदि मोटे दाने वाली किस्मों में 800 ग्राम से एक किग्रा तथा साकेत 4 वा आई.आर. 24 आदि पतले दाने वाली किस्में 500 ग्राम से 750 ग्रामरखना चाहिए। बोने से पहले प्रति 10 वर्ग मीटर क्षेत्र की दर से 500 ग्राम अमोनियम सल्फेट या 225 ग्राम यूरिया तथा 500 ग्राम सुपर फॉस्फेट अच्छी तरह मिला लेना चाहिए। अंकुरित बीजों को समान रुप से बिखेर देना चाहिये। वर्षा के कारण अगर बीज पानी में डूब जाये तथा धूप रहे तो पानी निकाल देना चाहिये ऐसा ना करने पर बीज सड़ जायेगा। आवश्यकतानुसार निराई, सिंचाई, रोगों तथा कीड़ों की रोकथाम आदि का उचित प्रबंध करना चाहिए।

2. शुष्क विधि – अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में शुष्क विधि अपनानी चाहिये। अगर लगातार वर्षा कम होती है तो मध्यम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी यह विधि उपयुक्त है। इसमें खेत को शुष्क या नम अवस्था में तैयार करते हैं। 3-4 बार जुताई कर मिट्टी भुरभुरी बना ली जाती है। खेत को समतल कर भीगी विधि में दिये गये आकार के अनुसार 20 सेमी ऊँची क्यारियां बनानी चाहिये तथा मेड़ की जगह 30 सेमी चौड़ी नाली बनानी चाहिये। सूखे बीज को 10 सेमी की दूरी पर लाइनों में 2 सेमी गहरा बो देना चाहिये। बीज, खाद आदि की मात्रा भीगी विधि के अनुसार ही प्रयोग करनी चाहिये।

03. डैपोग विधि – पौधे उगाने की तीसरी विधि डैपोग (Dapog) है जो फिलीपीन्स में प्रचलित है। इस विधि में पौध को बिना मृदा के उगाते हैं। बीज को 10-12 घंटे तक पानी में भिगोकर बाद में निकालकर इसको नम रखकर अंकुरित किया जाता है। अंकुरित बीजों को 0.5 सेमी मोटी तह, सीमेंट के फर्श पर फैलाकर (2-0% slope) ऊपर से इसे पॉलिथीन के चद्दर या पुआल पत्तियों (5 सेमी) से ढक दिया जाता है। लगातार इसको भी नम बनाये रखते हैं। प्रारंभ में इसकी सुरक्षा चिड़ियों वगैरह से भी रखनी पड़ती है। पौध तैयार करने में उर्वरक व खाद की आवश्यकता नहीं पड़ती है। पौध तैयार करने में उर्वरक व खाद की आवश्यकता नहीं पड़ती। पौध 10-15 दिन में तैयार हो जाती है।

 

● बीज शैय्या से पौधे उखाड़ते समय समय खेत का नम होना आवश्यक है जिससे कि पौध को उखाड़ते समय जड़ें न टूटने पायें। पौध की खेत में रोपाई 3 सेमी की गहराई पर करते हैं। डैपोग विधि से उगाई गई पौध से एक साथ 3-4 पौधे रोपते हैं। पौध रोपने के बाद खेत में 4-5 सेमी. पानी रहना आवश्यक है।

● रोपाई – जब पौध 20-25 दिन की हो जाये तो रोपाई कर देनी चाहिये। अच्छी तरह लेह लगाकर जुताई किये गये खेत में 20 x 30 सेमी. दूरी पर दो पौधों को रोपना चाहिये। पौध को 2 3 सेमी. से ज्यादा गहरा नहीं रोपना चाहिए रोपते समय खेत में पानी की पतली तह होनी चाहियेे ताकि पौध को उथला रोपा जा सके। पौध पुरानी हो जाने पर एक स्थान पर 4-5 पौधे रोपे जाने चाहिये।

 

(ii) सीधे खेत की बुआई विधि – लेहयुक्त मृदाओं में पौधरोपण के स्थान पर अंकुरित बीजों को खेत में छिटककर अथवा पंक्तियों में बो सकते हैं। सिंचाई की सुविधा होने पर लेह, वर्षा से 2 सप्ताह पहले लगाकर भी इस प्रकार की बुवाई कर सकते हैं। अगर सिंचाई की सुविधा नहीं है तो वर्षा आरंभ होने पर ही खेत में बुवाई करते हैं। छिटकवाँ विधि से 100-120 किग्रा बीज व पंक्तियों में 20 सेमी. की दूरी पर बने से 60-80 किग्रा बीज की प्रति हेक्टेयर आवश्यकता पड़ती है। प्रारंभ में खेत में 1 सेमी. पानी खड़ा रखते हैं लेकिन बाद में जैसे-जैसे फसल बढ़ती है खेत में पानी 2-5 सेमी. खड़ा रख सकते हैं।

धान की रोपाई एवं बुवाई का समय-

उत्तरी भारत में अधिकतर जून-जुलाई में धान की रोपाई होती है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में धान की फसल बोने और काटने के लिये समयानुसार धान की फसलों को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया गया है –

अपने देश में वर्षाकालीन फसल अधिकतर क्षेत्रों में उगाई जाती है। इस समय में अधिकतर लंबी अवधि वाली जातियां उगाई जाती हैं। अगेती (ओटम या ओस) फसल की खेती; ऊंची भूमियों पर की जाती है। इस फसल में 90-110 दिन की अवधि वाली जातियाँ उगाते हैं। धान की ग्रीष्मकालीन फसल कुछ क्षेत्रों में ही ऊगा पाते हैं। शीघ्र तैयार होने वाली जातियाँ इस समय उगाते हैं।

 

खाद एवं उर्वरक की मात्रा-

● गोबर की खाद या कम्पोस्ट- धान की फसल में 5 से 10 टन/ हेक्टेयर तक अच्छी सड़ी गोबर खाद या कम्पोस्ट का उपयोग करने से महंगे उर्वरकों के उपयोग में बचत की जा सकती है। हर वर्ष इसकी पर्याप्त उपलब्धता न होने पर कम से कम एक वर्ष के अंतर से इसका उपयोग करना बहुत लाभप्रद होता है।

● हरी खाद का उपयोग – रोपाई वाली धान में हरी खात के उपयोग में सरलता होती है, क्योंकि मचौआ करते समय इसे मिट्टी में आसानी से बिना अतिरिक्त व्यय के मिलाया जा सकता है। हरी खाद के लिए सनई का लगभग 25 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से रोपाई के एक महीना पहले बोना चाहिए। लगभग एक महीने की खड़ी सनई की फसल को खेत में मचौआ करते समय मिला देना चाहिए। यह 3-4 दिनों में सड़ जाती है। ऐसा करने से लगभग 50-60 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर उर्वरकों की बचत होगी।

उर्वरक – बोनी जातियों के लिए 120 किग्रा, नाइट्रोजन, 60 kg फॉस्फोरस, 50 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टेयर, किग्रा देशी जातियों के लिए 60 किग्रा नाइट्रोजन, 40 किग्रा फॉस्फोरस, 30 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टेयर।

• पर्वतीय क्षेत्रों के लिए 80 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फोरस व 40 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टेयर देना चाहिए।

• नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा आखिरी बार लेह लगाते समय एकसमान बिखेरकर ऊपरी 15 सेमी मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला देनी चाहिये। नाइट्रोजन की शेष मात्रा टॉप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिये, पहली टॉप ड्रेसिंग रोपाई के 20-30दिन बाद, दूसरी टॉप ड्रेसिंग रोपाई के 50-60 दिन बाद करनी चाहिये। किसी भी अवस्था में खाद डालते समय खेत में अधिक पानी खड़ा नहीं होना चाहिए।

यदि फसल में जस्ते की कमी के लक्षण पिछले वर्ष देखे गये हैं तो उन खेतों में 25-30 किग्रा जिंक सल्फेट बुवाई के समय ही दें। यदि ऐसा नहीं है तो कमी के उपरोक्त लक्षण दिखाई देने पर 500 ग्राम जिंक सल्फेट और 2 किग्रा यूरिया को 100 लीटर पानी में घोलकर (आवश्यकतानुसार इसी अनुपात में बनाकर) एक-एक सप्ताह बाद 2-3 बार लगातार छिड़काव करें। इस बात का ध्यान रखा जाये कि धान में जैसे ही फसल में लोहे की कमी के लक्षण देखे गये हैं तो फैरस सल्फेट के 1.0% घोल का छिड़काव एक सप्ताह के अन्तर पर 2-3 बार करें।

नीली हरी एलगी (काई) का धान के उत्पादन में महत्व-

नीले हरी एलगी की अधिकतर जातियां नत्रजन का मृदा में एकत्रीकरण करती हैं। नीली हरी एलगी की एक जाति टोलीपोथ्रिक्स टन्यूइस प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर 20-30 किग्रा नत्रजन तक इकट्ठी कर सकती है। अतः इस एलगी से धान की उपज बढ़ाने के लिये विभिन्न उर्वरकों को इसके साथ खेत में देते हुए उपज पर प्रभाव देखा और पाया गया है-

(i) अकार्बनिक उर्वरक एलगी के साथ खेत में दिए जा सकते हैं। एलगी के नत्रजन एकत्रीकरण पर इन उर्वरकों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

(ii) धान की फसल में एलगी के साथ 80 किग्रा नत्रजन प्रति हेक्टेयर उर्वरक देने पर अच्छी उपज प्राप्त होती है। अतः निष्कर्ष निकलता है कि एलगी के द्वारा 40 किग्रा नत्रजन प्रति हैक्टेयर धान की फसल को प्राप्त हो जाती है।प्रयोग के अन्दर फॉस्फोरस व पोटाश रोपाई के समय ही खेत में दे दिये गये। सीधे बोये गये खेत में या असिंचित क्षेत्रों में नाइट्रोजन 60 किग्रा, फॉस्फोरस 30 व पोटाश 25 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई पर ही देते हैं।

(iii) एलगी कुछ ऐसे जैविक पदार्थ (जैसे विटामिन व हार्मोन) बनाती है जो पौधों को स्वस्थ रखते हैं, नत्रजन आदि उर्वरकों की उपयोगिता बढ़ाती है, भूमि के गुणों में सुधार करती है। भूमि में सोडियम लवणों की मात्रा को कम करती है।

 

       जल प्रबंध –

रोपाई के दूसरे दिन हल्की सिंचाई करनी चाहिए। बाद में जल स्तर 5 सेमी. तक कर देना चाहिये। साधारण अवस्था में दानों के थोड़े-थोड़े सख्त होने या कटाई के समय तक इस जल स्तर को बनाए रखिए। खरीफ में वर्षा के रुक जाने पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिये। यदि खेत की मिट्टी पानी से तर है तो खेत को पानी से पूरा भरने की आवश्यकता नहीं होती है फिर भी खेत में भरा हुआ पानी घास-पात को बढ़ने से रोक देता है।

 

निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण-

खरपतवारों की समस्या प्रायः ऊंची भूमियों में अधिक होती है। धान की खेती जिन क्षेत्रों में ऊंची मृदाओं में करते हैं, वहां पर अवसर मिलने पर 20-25 दिन बाद एक निराई-गुड़ाई खुर्पी की सहायता से कर देते हैं। दूसरी निराई की आवश्यकता पड़ने पर; रोपाई के 40-45 दिन बाद करते हैं।

 

रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण

रासायनिक विधि से खरपतवानाशियों; जैसे -2,4-डी के अमाइन व इस्टर यौगिक, स्टाम एफ-34 (प्रोपेलिन) मैचैटी व सैटर्न का प्रयोग किया जाता है।

स्टाम एफ-34 रसायन को खेत में छिड़कने से पहले, खेत में पानी का निकास कर देना चाहिये तथा पुनः 2-3 दिन बाद पानी खेत में लगा सकते हैं। नाइट्रोजन व कीटनाशी दवाई के साथ मिलाकर न छिड़कें।मैलाथियान व पैराथियान, इस दवाई के छिड़कने से 15 दिन पूर्व व 15 दिन बाद तक न छिड़कें।

धान के प्रमुख खरपतवार-

साावां,मकरा, कौंदों, मौथा, बानरा बनक, सफेद मुर्ग व भंगरा।

 

प्रमुख कीट –

01. धान की जड़ सूड़ी – इस कीट की गिडार उबले हुए चावल के समान होती हैं। यह कीट महीन जड़ों को खाकर नुकसान पहुंचाती है और पौधे पीले पड़ जाते हैं। इस कीट के नियंत्रण के लिए एल्ड्रिन 30 ई.सी. या गामा बी.एच.सी. 30 या 10% बिरलेन ग्रेन्यूल्स का प्रयोग करना चाहिए।

02. तना छेदक (धारीदार, गुलाबी, पीला, सफेद)- इस कीट की गिडार ही नुकसान पहुंचाती हैं। फसल की प्रारंभिक अवस्था में इसके प्रकोप से पौधों का मुख्य तना सूख जाता है, इसे dead heart कहते हैं तथा पकने की अवस्था पर बालियां सूख कर सफ़ेद (white head) दिखाई देने लगती हैं।

03. खरीफ के टिड्डे – निम्फ और प्रौढ़ दोनों ही नुकसान पहुंचाते हैं। इस कीट के प्रकोप से पत्तियां किनारे पर कटी हुई मिलती हैं। इस कीट के नियंत्रण हेतु 10% बी.एच.सी. चूर्ण या इंडोसल्फान का प्रयोग करना चाहिए।

 

 कटाई

कटाई विभिन्न जातियाँ 100 से 150 दिन में पककर तैयार होती हैं।बालियां निकलने के 25-30दिन बाद अधिकतर जातियाँ पक जाती हैं। दानों में दूध गाढ़ा, सख्त होने पर कटाई की जा सकती है। कटाई हंसिया आदि से करते हैं। शक्तिचालित यंत्रो से कटाई करने के लिए खेत पकने से पहले जल निकास करके खेत को सुखा लिया जाता है।

    उपज –

देशी जातियों की छिटकवाँ विधि से खेती करने पर 30-35 कुन्तल, उन्नतशील जातियों की 45-50 कुन्तल व संकर जातियों की उन्नतशील खेती करने पर 55-65 कुन्तल दाने की उपज प्रति हैक्टेयर आसानी से प्राप्त हो जाती है।

 


1 Comment

Parveen Kumar · August 10, 2018 at 10:31 am

Don Mapla nitrogen kitne din baad dalna chahiye

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