कृषि वानिकी (Agro Forestry)

फसलों (फसल उत्पादन) के साथ-साथ पेड़ पौधों को भी उगाना, ताकि अन्न उत्पादन के साथ-साथ ईंधन के लिए लकड़ी हरा-चारा, जीवांश खाद की भूमि में वृद्धि आदि का लाभ भी मिल सके, कृषि वानिकी में आता है, जैसे – गेहूं+पॉपलर पद्धति।

कृषि वानिकी के उद्देश्य –

• वर्षा का प्रभावी उपयोग करके अधिक से अधिक उत्पादन लेना।
• बेकार/बंजर भूमि का वैकल्पिक उपयोग कर पोषक तत्वों के जमाव से भूमि सुधार करना।
• बेरोजगारों एवं कृषि श्रमिकों को रोजगार के अवसर प्रदान करना।
• पर्यावरण, पारिस्थितिकी, जलवायु को सुव्यवस्थित कर सुधार करना।

• किसान अपनी जमीन से आवश्यक वस्तुयें, जैसे – भोजन, फल, चारा, जलावन लकड़ी इत्यादि प्राप्त करना।
• निम्न भू-उर्वरता, अधिक क्षरण व भू-अपरदन से प्रभावित भूमि के टिकाऊपन तथा भूमि-उत्पादकता में बढोत्तरी करना।

पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि वानिकी का विकास निम्न उद्देश्य से हुआ है-

01. भवन निर्माण के लिए सस्ती एवं हल्की लकड़ी का उपलब्ध होना।
02. स्थानीय लोगों के लिए जलावन हेतु लकड़ी का उत्पादन।
03. पशुओं के लिए तथा फसलों हेतु हरी खाद का उत्पादन
04. ठण्डी हवाओं से फसलों की सुरक्षा।

कृषि वानिकी के लाभ

01. कृषि वानिकी को सुनिश्चित कर खाद्यान्न को बढ़ाया जा सकता है।

02. बहुउद्देश्यीय वृक्षों से ईंधन, चारा व फलियां, इमारती लकड़ी, रेशा, गोंद, खाद आदि प्राप्त होते हैं।

03. कृषि वानिकी के द्वारा भूमि कटाव की रोकथाम की जा सकती है और भू एवं जल संरक्षण कर मृदा की उर्वरा शक्ति में वृध्दि कर सकते हैं।

04. कृषि एवं पशुपालन आधारित कुटीर एवं मध्यम उद्योगों को बढ़ावा मिलता है।

05. इस पध्दति के द्वारा ईंधन की पूर्ति करके 500 करोड़ मीट्रिक टन गोबर का उपयोग जैविक खाद के रूप में किया जा सकता है।

06. वर्षभर गांवों में कार्य उपलब्धता होने के कारण शहरों की ओर युवकों का पलायन रोका जा सकता है।

07. पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में इस पध्दति का महत्वपूर्ण योगदान है।

08. कृषि वानिकी में जोखिम कम है। सूखा पड़ने पर भी बहुउद्देशीय फलों से कुछ न कुछ उपज प्राप्त् हो जाती है।

09. कृषि वानिकी पध्दति से मृदा-तापमान विशेषकर ग्रीष्म ऋतु में बढ़ने से रोका जा सकता है जिससे मृदा के अंदर पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवाणुओं को नष्ट होने से बचाया जा सकता है, जो हमारी फसलों के उत्पादन बढ़ाने में सहायक होते है।

10. बेकार पड़ी बंजर, ऊसर, बीहड़ इत्यादि अनुपयोगी भूमि पर घास, बहुउद्देशीय वृक्ष लगाकर इन्हें उपयोग में लाया जा सकता है और उनका सुधार किया जा सकता है।

 

कृषि-वानिकी एवं औद्योगिकीकरण

कृषि वानिकी प्रणाली प्रणाली के अंतर्गत वृक्षों पर आधारित अनेक औद्योगिक इकाइयां मानव को रोजगार प्रदान करने के साथ-साथ उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति भी करती हैं। कृषि-वानिकी से सम्बन्धित प्रमुख उद्योग-रोज़गार निम्न हैं-

01. कागज उद्योग – इस उद्योग में विभिन्न प्रकार के पौधों जैसे- बांस, पॉपलर, चीड़ इत्यादि का प्रयोग किया जाता है।

02.लकड़ी उद्योग – कृषि-वानिकी पद्धति के अंतर्गत उगाये जाने वाले पौधों से ईधन के साथ-साथ बहुयोगी इमारती लकड़ी भी प्राप्त होती हैं, जिसका प्रयोग फर्नीचर, नाव, पानी के जहाज, खिलौनों इत्यादि में किया जाता है। इसमें साल, सागौन, शीशम, चीड़ इत्यादि की लकड़ियाँ प्रमुख रूप से उगायी की जाती हैं।

03. पत्तल उद्योग – इस उद्योग में ढाक/पलाश के पत्तों का प्रयोग किया जाता है। यह वृक्ष बंजर भूमि में भी उगाया जा सकता है।

04. माचिस उद्योग – माचिस की तीली बनाने में प्रयोग किये जाने वाले वृक्षों में सेमल एवं पॉपलर प्रमुख हैं, इन्हें भी कृषि-वानिकी के अन्तर्गत उगाया जाता है।

05. औषधि उद्योग – विभिन्न प्रकार के औषधीय वृक्षों को भी कृषि वानिकी के अंतर्गत लगाया जाता है। जिनमें आंवला, बेल, अशोक, अर्जुन, नीम करंज, हरड़, बहेड़ा इत्यादि प्रमुख हैं।

 

कृषि वानिकी की पद्धतियाँ

01. एग्री सिल्वी कल्चर (फसलें+ईंधन वाले पेड़) प्रणाली – यह पद्धति पेड़ उगाने और खाद्य फसलों की खेती तथा पेड़ो के बीच उपलब्ध स्थान पर चारा या फसल उगाने से सम्बन्धित है। इस प्रकार ऐसी प्रणाली अपनाने से किसान अपनी सीमित भूमि से लकड़ी, भोजन, चारा आदि प्राप्त कर लेता है। उदाहरण – बाजरा, मक्का, ज्वार आदि को अकेसिया एल्बिडा वृक्ष के साथ उगाना।

02. सिल्वी पेस्टरल (पेड़, चारागाह, पशु) प्रणाली – इस प्रणाली के अंतर्गत लकड़ी के उत्पादन के लिए सीमित भूमि पर वृक्ष उगाये जाते हैं तथा पशुओं को पालने के लिए पेड़ों के बीच में उपलब्ध स्थानों पर घासें उगाई जाती हैं।

03. हार्टि-एग्री-सिल्वी (फसलें+फल+ ईंधन वाले पेड़) – यह प्रणाली अनोखी तथा स्थानपरक होती है, क्योंकि विभिन्न प्रकार के वन-वृक्ष मुख्य रूप से भूमि पर उगाये जाते हैं। तथा उनके बीच उपलब्ध भूमि में फल वृक्ष उगाये जाते हैं, इसमें फल उत्पादकों को पैकिंग के लिए कच्चा माल भी मिल जाता है जो इसके अतिरिक्त लाभ के रूप में प्राप्त होता है, जैसे – मूंग, उर्द, तिल, ग्वार, (फसलें) +आवँला + खेजड़ी को साथ लेना।

04. एग्री हार्टीकल्चर (फसलें + फलदार पेड़ ) प्रणाली – कृषि वानिकी के इस स्वरूप में फसलों के साथ केवल फलदार वृक्ष ही लगाये जाते हैं। अतः इस पद्धति से प्रति इकाई क्षेत्र से अधिक लाभ प्राप्त होता है।
जैसे – आँवला के साथ मसूर, चना, मटर लेना।

05. एग्री सिल्वी पेस्टोरल (फसलें + पेड़ + चारागाह + पशु) प्रणाली – इस प्रणाली के अंतर्गत खाद्य फसलों की खेती के साथ-साथ लकड़ी के उत्पादन के लिए भूमि पर वृक्ष उगाये जाते हैं तथा पशुओं को पालने के लिए पेड़ो के बीच उपलब्ध स्थान पर घासें उगाई जाती हैं, जैसे – मूंग, उर्द, तिल, ग्वार, अकेसिया स्पेसीज + घासें + पशुपालन को साथ-साथ लेना।

कृषि वानिकी के लिए उपयुक्त फसलों एवं वृक्षों का चुनाव –

01. शीघ्र बढ़ने वाली जातियों/प्रजातियों का चयन किया जाना चाहिए और पौधे सीधे ऊपर की ओर वृद्धि करते हों तथा उनका फैलाव कम से कम हो।

02. कम से कम शाखायें निकलें अर्थात जमीन पर से ही अधिक घनी न हो।
03. साथ में लगी अन्य फसलों से प्रतिस्पर्धा ना करें।
04. कम से कम पोषक तत्व, सिंचाई व देखभाल की आवश्यकता पड़े।
05. प्रतिकूल दशाओं में भी सफलतापूर्वक वृद्धि कर सकें।
06. कृषकों के लिए उसकी पत्तियाँ, लकड़ी आदि लाभकारी हों।
07. पोषक तत्वों की पर्याप्त मात्रा प्रदान कर सकें।
08. रोगों के प्रति रोगरोधी हों, छाया से सहनशील होना चाहिए।
09. जड़े एवं उनकी वृद्धि की विशेषता ऐसी होनी चाहिए जिससे भूमि के विभिन्न सतहों पर कृषि फसल प्रभावित न हो।
10. पौधों के प्रत्येक भाग किसानों के लिए उपयोगी हो।